ترجمة سورة الجاثية

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة الجاثية باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

ह़ा मीम।
इस पुस्तक[1] का उतरना अल्लाह, सब चीज़ों और गुणों को जानने वाले की ओर से है।
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1. इस सूरह में भी तौह़ीद तथा परलोक के संबन्ध में मुश्रिकों के संदेहा को दूर किया गया है तथा उन की दुराग्रह की निन्दा की गई है।
वास्तव में, आकाशों तथा धरती में बहुत-सी निशानियाँ (लक्षण) हैं, ईमान लाने वालों के लिए।
तथा तुम्हारी उत्पत्ति में तथा जो फैला[1] दिये हैं उसने जीव, बहुत-सी निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो विश्वास रखते हों।
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1. तौह़ीद (एकेश्वरवाद) के प्रकरण में क़ुर्आन ने प्रत्येक स्थान पर आकाश तथा धरती में अल्लाह के सामर्थ्य की फैली हुई निशानियों को प्रस्तुत किया है। और यह बताया है कि जैसे उस ने वर्षा द्वारा मनुष्य के आर्थिक जीवन की व्यवस्था कर दी है वैसे ही रसूलों तथा पुस्तकों द्वारा उस के आत्मिक जीवन की व्यवस्था कर दी है जिस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिये। यह विश्व की व्यवस्था स्वयं ऐसी खुली पुस्तक है जिस के पश्चात् ईमान लाने के लिये किसी और प्रमाण की आवश्यक्ता नहीं है।
तथा रात और दिन के आने जाने में तथा अल्लाह ने आकाश से जो जीविका उतारी है, फिर जीवित किया है उसके द्वारा धरती को, उसके मरने के पश्चात् तथा हवाओं के फेरने में, बड़ी निशानियाँ हैं, उनके लिए, जो समझ-बूझ रखते हों।
ये अल्लाह की आयतें हैं, जो वास्तव में हम तुम्हें सुना रहे हैं। फिर कौन सी बात रह गई है, अल्लाह तथा उसकी आयतों के पश्चात्, जिसपर वे ईमान लायेंगे?
विनाश है प्रत्येक झूठे पापी के लिए।
जो अल्लाह की उन आयतों को, जो उसके सामने पढ़ी जायें सुने, फिर भी वह अकड़ता हुआ (कुफ़्र पर) अड़ा रहे, जैसे कि उन्हें सुना ही न हो! तो आप उसे दुःखदायी यातना की सूचना पहुँचा दें।
और जब, उसे ज्ञान हो हमारी किसी आयत का, तो उसे उपहास बना ले। यही हैं, जिनके लिए अपमानकारी यातना है।
तथा उनके आगे नरक है और नहीं काम आयेगा उनके, जो कुछ उन्होंने कमाया है और न जिसे उन्होंने अल्लाह के सिवा संरक्षक बनाया है और उन्हीं के लिए कड़ी यातना है।
ये (क़ुर्आन) मार्गदर्शन है तथा जिन्होंने कुफ़्र किया अपने पालनहार की आयतों के साथ, तो उन्हीं के लिए यातना है, दुःखदायी यातना।
अल्लाह ही ने वश में किया है तुम्हारे लिए सागर को, ताकि नाव चलें उसमें उसके आदेश से और ताकि तुम खोज करो उसके अनुग्रह (दया) की और ताकि तुम उसके कृतज्ञ (आभारी) बनो।
तथा उसने तुम्हारी सेवा में लगा रखा है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, सबको अपनी ओर से। वास्तव में, इसमें बहुत-सी निशानियाँ हैं, उनके लिए, जो सोच-विचार करें।
(हे नबी!) आप उनसे कह दें जो ईमान लाये हैं कि क्षमा कर[1] दें उन्हें, जो आशा नहीं रखते हैं अल्लाह के दिनों[2] की, ताकि वह बदला दे एक समुदाय को उनकी कमाई का।
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1. अर्थात उन की ओर से जो दुःख पहुँचता है। 2. अल्लाह के दिनों से अभिप्राय वे दिन हैं जिन में अल्लाह ने अपराधियों को यातनायें दी हैं। (देखियेःसूरह इब्राहीम, आयतः 5)
जिसने सदाचार किया, तो अपने भले के लिए किया तथा जिसने दुराचार किया, तो अपने ऊपर किया। फिर तुम (प्रतिफल के लिए) अपने पालनहार की ओर ही फेरे[1] जाओगे।
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1. अर्थात प्रलय के दिन। जिस अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया है उसी के पास तुम्हें जाना भी है।
तथा हमने प्रदान की इस्राईल की संतान को पुस्तक तथा राज्य और नबूअत (दूतत्व) और जीविका दी उन्हें, स्वच्छ चीज़ों से तथा प्रधानता दी उन्हें (उनके युग के) संसारवासियों पर।
तथा दिये हमने उन्हें, खुले आदेश। तो उन्होंने विभेद नहीं किया, परन्तु अपने पास ज्ञान[1] आ जाने के पश्चात्, आपस के द्वेष के कारण। निःसंदेह आपका पालनहार ही निर्णय करेगा उनके बीच परलय के दिन, जिस बात में वे विभेद कर रहे हैं।
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1. अर्थात वैध तथा अवैध, और सत्योसत्य का ज्ञान आ जाने के पश्चात्।
फिर (हे नबी!) हमने कर दिया आपको एक खुले धर्म विधान पर, तो आप अनुसरण करें इसका तथा न चलें उनकी आकांक्षाओं पर, जो ज्ञान नहीं रखते।
वास्तव में, वे आपके काम न आयेंगे अल्लाह के सामने कुछ। ये अत्याचारी एक-दूसरे के मित्र हैं और अल्लाह आज्ञाकारियों का साथी है।
ये (क़ुर्आन) सूझ की बातें हैं, सब मनुष्यों के लिए तथा मार्गदर्शन एवं दया है, उनके लिए, जो विश्वास करें।
क्या समझ रखा है जिन्होंने दुष्कर्म किया है कि हम कर देंगे उन्हें उनके समान, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये हैं कि उनका जीवन तथा मरण समान[1] हो जाये? वे बुरा निर्णय कर रहे हैं।
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1. अर्थात दोनों के परिणाम में अवश्य अन्तर होगा।
तथा पैदा किया है अल्लाह ने आकाशों एवं धरती को, न्याय के साथ और ताकि बदला दिया जाये प्रत्येक प्राणी को, उसके कर्म का तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
क्या आपने उसे देखा, जिसने बना लिया अपना पूज्य अपनी इच्छा को तथा कुपथ कर दिया अल्लाह ने उसे जानते हुए और मुहर लगा दी उसके कान तथा दिल पर और बना दिया उसकी आँख पर आवरण (पर्दा)? फिर कौन है, जो सीधी राह दिखायेगा उसे अल्लाह के पश्चात्? तो क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते?
तथा उन्होंने कहा कि हमारा यही सांसारिक जीवन है। हम यहीं मरते और जीते हैं और हमारा विनाश, युग (काल) ही करता है। उन्हें इसका ज्ञान नहीं। वे केवल अनुमान की बात[1] कर रहे हैं।
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1. ह़दीस में है कि अल्लाह फ़रमाता है कि मनुष्य मुझे बुरा कहता है। वह युग को बुरा कहता है जब कि युग मैं हूँ। रात और दिन मेरे हाथ में हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः6181) ह़दीस का अर्थ यह है कि युग को बुरा कहना अल्लाह को बुरा कहना है। क्योंकि युग में जो होता है उसे अल्लाह ही करता है।
और पढ़कर सुनाई जाती हैं उन्हें, हमारी खुली आयतें, तो उनका तर्क केवल ये होता है कि ले आओ हमारे पूर्वजों को, यदि तुम सच्चे हो।
आप कह दें: अल्लाह ही तुम्हें जीवन देता तथा मारता है, फिर एकत्र करेगा तुम्हें प्रलय के दिन, जिसमें कोई संदेह नहीं। परन्तु अधिक्तर लोग (इस तथ्य को) नहीं[1] जानते।
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1. आयत का अर्थ यह है कि जीवन और मौत देना अल्लाह के हाथ में है। वही जीवन देता है तथा मारता है। और उस ने संसार में मरने के बाद प्रलय के दिन फिर जीवित करने का समय रखा है। ताकि उन के कर्मों का प्रतिफल प्रदान करे।
तथा अल्लाह ही का है आकाशों तथा धरती का राज्य और जिस दिन स्थापना होगी प्रलय की, तो उस दिन क्षति में पड़ जायेंगे झूठे।
तथा देखेंगे आप प्रत्येक समुदाय को घुटनों के बल गिरा हुआ। प्रत्येक समुदाय पुकारा जायेगा अपने कर्म-पत्र की ओर। आज, बदला दिया जायेगा तुम लोगों को, तुम्हारे कर्मों का।
ये हमारा कर्म-पत्र है, जो बोल रहा है तुमपर सह़ीह़ बात। वास्तव में, हम लिखवा रहे थे, जो कुछ तुम कर रहे थे।
तो जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उन्हें प्रवेश देगा उनका पालनहार अपनी दया में, यही प्रत्यक्ष (खुली) सफलता है।
परन्तु जिन्होंने कुफ़्र किया, (उनसे कहा जायेगाः) क्या मेरी आयतें तुम्हें पढ़कर नहीं सुनायी जा रही थीं? तो तुमने घमंड किया तथा तुम अपराधी बनकर रहे?
तो जब कहा जाता था कि निश्चय अल्लाह का वचन सच है तथा प्रलय होने में तनिक भी संदेह नहीं, तो तुम कहते थे कि प्रलय क्या है? हम तो केवल एक अनुमान रखते हैं तथा हम विश्वास करने वाले नहीं हैं।
तथा खुल जायेंगी उनके लिए, उनके दुष्कर्मों की बुराईयाँ और घेर लेगा उन्हें, जिसका वे उपहास कर रहे थे।
और कहा जायेगा कि आज हम तुम्हें भुला देंगे,[1] जैसे तुमने इस दिन से मिलने को भुला दिया और तुम्हारा कोई सहायक नहीं है।
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1. जैसे ह़दीस में आता है अल्लाह अपने कुछ बंदों से कहेगाः क्या मैं ने तुम्हें पत्नी नहीं दी थी? क्या मैं ने तुम्हें सम्मान नहीं दिया था? क्या मैं ने घोड़े तथा बैल इत्यादि तेरे आधीन नहीं किये थे? तू सरदारी भी करता तथा चुंगी भी लेता रहा। वह कहेगाः हाँ ये सह़ीह़ है, हे मेरे पालनहार! फिर अल्लाह उस से प्रश्न करेगाः क्या तुम्हें मुझ से मिलने का विश्वास था? वह कहेगाः "नहीं!" अल्लाह फ़रमायेगाः (तो आज मैं तुझे नरक में डाल कर भूल जाऊँगा जैसे तू मुझे भूला रहा। (सह़ीह़ मुस्लिमः 2968)
ये (यातना) इस कारण है कि तुमने बना लिया था अल्लाह की आयतों को उपहास तथा धोखे में रखा तुम्हें सांसारिक जीवन ने। तो आज वे नहीं निकाले जायेंगे (यातना से) और न उन्हें क्षमा माँगने का अवसर दिया जायेगा।[1]
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1. अर्थात अल्लाह की निशानियों तथा आदेशों का उपहास तथा दुनिया के धोखे में लिप्त रहना। यह दो अपराध ऐसे हैं जिन्होंने तुम्हें नरक की यातना का पात्र बना दिया। अब उस से निकलने की संभावना नहीं तथा न इस बात की आशा है कि किसी प्रकार तुम्हें तौबा तथा क्षमा याचना का अवसर प्रदान कर दिया जाये और तुम क्षमा माँग कर अल्लाह को मना लो।
तो अल्लाह के लिए सब प्रशंसा है, जो आकाशों तथा धरती का पालनहार एवं सर्वलोक का पनालनहार है।
और उसी की महिमा[1] है आकाशों तथा धरती में और वही प्रबल और सब गुणों को जानने वाला है।
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1. अर्थात महिमा और बड़ाई अल्लाह के लिये विशेष है। जैसा कि एक ह़दीस क़ुद्सी में अल्लाह तआला ने फ़रमाया है कि महिमा मेरी चादर है तथा बड़ाई मेरा तहबंद है। और जो भी इन दोनों में से किसी एक को मुझ से खींचेगा तो मैं उसे नरक में फेंक दूँगा। (सह़ीह़ मुस्लिमः 2620)
سورة الجاثية
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التفسيرات

سورةُ (الجاثية) من السُّوَر المكية، وقد جاءت ببيانِ اتصاف الله بكمال العِزَّة والحِكْمة، والقدرة والعدل؛ ومن ذلك: قيامُه بجَمْعِ الخلائق يوم القيامة، والفصلِ بينهم على أعمالهم في يوم مَهُولٍ تجثو فيه الناسُ على رُكَبِها، وفي ذلك حثٌّ على صدق العمل في الدنيا؛ فاللهُ مُحْصٍ كلَّ عمل؛ عظُمَ أو صغُرَ، وجاءت السورة بتذكيرِ اللهِ خَلْقَه بنِعَمِه عليهم، والردِّ على الدَّهْريين.

ترتيبها المصحفي
45
نوعها
مكية
ألفاظها
488
ترتيب نزولها
65
العد المدني الأول
37
العد المدني الأخير
37
العد البصري
37
العد الكوفي
37
العد الشامي
37

* قوله تعالى: {وَقَالُواْ مَا هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا اْلدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا يُهْلِكُنَآ إِلَّا اْلدَّهْرُۚ وَمَا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنْ عِلْمٍۖ إِنْ هُمْ إِلَّا يَظُنُّونَ} [الجاثية: 24]:

عن أبي هُرَيرةَ رضي الله عنه، عن النبيِّ صلى الله عليه وسلم، قال: «كان أهلُ الجاهليَّةِ يقولون: إنَّما يُهلِكُنا الليلُ والنهارُ، وهو الذي يُهلِكُنا ويُمِيتُنا ويُحْيِينا، فقال اللهُ في كتابه: {وَقَالُواْ مَا هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا اْلدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا يُهْلِكُنَآ إِلَّا اْلدَّهْرُۚ} [الجاثية: 24]، قال: فيسُبُّون الدَّهْرَ، فقال اللهُ تبارَكَ وتعالى: يُؤذِيني ابنُ آدَمَ؛ يسُبُّ الدَّهْرَ، وأنا الدَّهْرُ، بِيَدي الأمرُ، أُقلِّبُ الليلَ والنهارَ». "الصحيح المسند من أسباب النزول" (1 /183).

* سورة (الجاثية):

اختصَّتْ سورةُ (الجاثية) بذكرِ لفظ (جاثية)، الذي يتعلق بيوم القيامة وأهواله، يوم تجثو الناسُ على رُكَبِها من الفزع؛ قال تعالى: {وَتَرَىٰ كُلَّ أُمَّةٖ جَاثِيَةٗۚ كُلُّ أُمَّةٖ تُدْعَىٰٓ إِلَىٰ كِتَٰبِهَا اْلْيَوْمَ تُجْزَوْنَ مَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ} [الجاثية: 28].

* سورة (الشَّريعة):

سُمِّيت بهذا الاسم؛ لوقوع لفظ (شريعة) فيها، ولم يقَعْ في غيرها من القرآن؛ قال تعالى: {ثُمَّ جَعَلْنَٰكَ عَلَىٰ ‌شَرِيعَةٖ مِّنَ اْلْأَمْرِ فَاْتَّبِعْهَا وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَآءَ اْلَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ} [الجاثية: 18].

1. مصدر القرآن الكريم، وإثباتُ وَحْدانية الله (١-٦).

2. جزاء المكذِّبين بآيات الله (٧-١١).

3. التذكير بنِعَم الله على عباده (١٢-١٥).

4. نِعَمُه الخاصة ببني إسرائيل، وإنزالُ الشرائع (١٦-٢٠).

5. عدلُه في المحسِنين والمسِيئين (٢١-٢٣).

6. الرد على الدَّهْريِّين (٢٤-٢٧).

7. من مَشاهد يوم القيامة (٢٨-٣٧).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (7 /161).

إثباتُ صِفَتَيِ العِزَّة والحِكْمة لله عز وجل؛ فمن كمال عِزَّته وحِكْمته: جمعُ الخلائق يوم القيامة للفصل بينهم، وجزاؤُهم على أعمالهم، بعد أن بيَّن لهم طريقَيِ الخير والشر، وأقام الحُجة عليهم.

واسمُ السورة دالٌّ أتمَّ الدلالة على هذا المقصد، و(الجاثية) اسمٌ من أسمائها يدل على هولِ ما يحصل فيها.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /476).