ترجمة سورة الشعراء

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة الشعراء باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

ता, सीन, मीम।
ये प्रकाशमय पुस्तक की आयतें हैं।
संभवतः, आप अपना प्राण[1] खो देने वाले हैं कि वे ईमान लाने वाले नहीं हैं?
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1. अर्थात उन के ईमान न लाने के शोक में।
यदि हम चाहें, तो उतार दें उनपर आकाश से ऐसी निशानी कि उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी की झुकी रह जायें[1]।
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1. परन्तु ऐसा नहीं किया, क्यों कि दबाव का ईमान स्वीकार्य तथा मान्य नहीं होता।
और नहीं आती है उनके पालनहार, अति दयावान् की ओर से कोई नई शिक्षा, परन्तु वे उससे मुख फेरने वाले बन जाते हैं।
तो उन्होंने झुठला दिया! अब उनके पास शीघ्र ही उसकी सूचनाएँ आ जायेंगी, जिसका उपहास वे कर रहे थे।
और क्या उन्होंने धरती की ओर नहीं देखा कि हमने उसमें उगाई हैं, बहुत-सी प्रत्येक प्रकार की अच्छी वनस्पतियाँ?
निश्चय ही, इसमें बड़ी निशानी (लक्षण)[1] है। फिर उनमें अधिक्तर ईमान लाने वाले नहीं हैं।
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1. अर्थात अल्लाह के सामर्थ्य की।
तथा वास्तव में, आपका पालनहार ही प्रभुत्वशाली, अति दयावान् है।
(उन्हें उस समय की कथा सुनाओ) जब पुकारा आपके पालनहार ने मूसा को कि जाओ अत्याचारी जाति[1] के पास!
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1. यह उस समय की बात है जब मूसा (अलैहिस्सलाम) दस वर्ष मद्यन में रह कर मिस्र वापिस आ रहे थे।
फ़िरऔन की जाति के पास, क्या वे डरते नहीं?
उसने कहाः मेरे पालनहार! वास्तव में, मुझे भय है कि वे मुझे झुठला देंगे।
और संकुचित हो रहा है मेरा सीना और नहीं चल रही है मेरी ज़ुबान, अतः वह़्यी भेज दे हारून की ओर (भी)।
और उनका मुझपर एक अपराध भी है। अतः, मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार डालेंगे।
अल्लाह ने कहाः कदापि ऐसा नहीं होगा। तुम दोनों हमारी निशानियाँ लेकर जाओ, हम तुम्हारे साथ सुनने[1] वाले हैं।
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1. अर्थात तुम दोनों की सहायता करते रहेंगे।
तो तुम दोनों जाओ और कहो कि हम विश्व के पालनहार के भेजे हुए (रसूल) हैं।
कि तू हमारे साथ बनी इस्राईल को जाने दे।
(फ़िरऔन ने) कहाः क्या हमने तेरा पालन नहीं किया है, अपने यहाँ बाल्यवस्था में और तू (नहीं) रहा है, हममें अपनी आयु के कई वर्ष?
और तू कर गया वह कार्य,[1] जो किया और तू कृतघनों में से है!
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1. यह उस हत्या काण्ड की ओर संकेत है जो मूसा (अलैहिस्सलाम) से नबी होने से पहले हो गया था। (देखियेः सूरह क़स़स़)
(मूसा ने) कहाः मैंने ऐसा उस समय कर दिया, जबकि मैं अनजान था।
फिर मैं तुमसे भाग गया, जब तुमसे भय हुआ। फिर प्रदान कर दिया मुझे, मेरे पालनहार ने तत्वदर्शिता और मुझे बना दिया रसूलों में से।
और ये कोई उपकार है, जो तू मुझे जता रहा है कि तूने दास बना लिया है, इस्राईल के पुत्रों को।
फ़िरऔन ने कहाः विश्व का पालनहार क्या है?
(मूसा ने) कहाः आकाशों तथा धरती और उसका पालनहार, जो कुछ दोनों के बीच है, यदि तुम विश्वास रखने वाले हो।
उसने उनसे कहा, जो उसके आस-पास थेः क्या तुम सुन नहीं रहे हो?
(मुसा ने) कहाः तुम्हारा पालनहार तथा तुम्हारे पूर्वोजों का पालनहार है।
(फ़िरऔन ने) कहाः वास्तव में, तुम्हारा रसूल, जो तुम्हारी ओर भेजा गया है, पागल है।
(मूसा ने) कहाः वह, पूर्व तथा पश्चिम तथा दोनों के मध्य जो कुछ है, सबका पालनहार है।
(फ़िरऔन ने) कहाः यदि तूने कोई पूज्य बना लिया मेरे अतिरिक्त, तो तुझे बंदियों में कर दूँगा।
(मूसा ने) कहाः क्या यद्यपि मैं ले आऊँ तेरे पास एक खुली चीज़?
उसने कहाः तू उसे ले आ, यदि सच्चा है।
फिर उसने अपनी लाठी फेंक दी, तो अकस्मात वह एक प्रत्यक्ष अजगर बन गयी।
तथा अपना हाथ निकाला, तो अकस्मात वह उज्ज्वल था, देखने वालों के लिए।
उसने अपने प्रमुखों से कहा, जो उसके पास थेः वास्तव में, ये तो बड़ा दक्ष जादूगर है।
ये चाहता है कि तुम्हें, तुम्हारी धरती से निकाल[1] दे, अपने जादू के बल से, तो अब तुम क्या आदेश देते हो?
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1. अर्थात यह उग्रवाद कर के हमारे देश पर अधिकार कर ले।
सबने कहाः अवसर (समय) दो मूसा और उसके भाई (के विषय) को और भेज दो नगरों में एकत्र करने वालों को।
वे तुम्हारे पास प्रत्येक बड़े दक्ष जादूगर को लायें।
तो एकत्र कर लिए गये जादूगर एक निश्चित दिन के समय के लिए।
तथा लोगों से कहा गया कि क्या तुम एकत्र होने वाले[1] हो?
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1. अर्थात लोगों को प्रेरणा दी जा रही है कि इस प्रतियोगिता में अवश्य उपस्थित हों।
ताकि हम पीछे चलें जादूगरों के यदि वही प्रभुत्वशाली (विजयी) हो जायें।
और जब जादूगर आये, तो फ़िरऔन से कहाः क्या हमें कुछ पुरस्कार मिलेगा, यदि हम ही प्रभुत्वशाली होंगे?
उसने कहाः हाँ! और तुम उस समय (मेरे) समीपवर्तियों में हो जाओगे।
मूसा ने उनसे कहाः फेंको, जो कुछ तुम फेंकने वाले हो।
तो उन्होंने फेंक दी उपनी रस्सियाँ तथा अपनी लाठियाँ तथा कहाः फ़िरऔन के प्रभुत्व की शपथ! हम ही अवश्य प्रभुत्वशाली (विजयी) होंगे।
अब मूसा ने फेंक दी अपनी लाठी, तो तत्क्षण वह निगलने लगी (उसे), जो झूठ वे बना रहे थे।
तो गिर गये सभी जादूगर[1] सज्दा करते हुए।
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1. क्यों कि उन्हें विश्वास हो गया कि मूसा (अलैहिस्सलाम) जादूगर नहीं, बल्कि वह सत्य के उपदेशक हैं।
और सबने कह दियाः हम विश्व के पालनहार पर ईमान लाये।
मूसा तथा हारून के पालनहार पर।
(फ़िरऔन ने) कहाः तुम उसका विश्वास कर बैठे, इससे पहले कि मैं तुम्हें आज्ञा दूँ? वास्तव में, वह तुम्हारा बड़ा (गुरू) है, जिसने तुम्हें जादू सिखाया है, तो तुम्हें शीघ्र ज्ञान हो जायेगा, मैं अवश्य तुम्हारे हाथों तथा पैरों को विपरीत दिशा[1] से काट दूँगा तथा तुम सभी को फाँसी दे दूँगा!
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1. अर्थात दाँया हाथ और बायाँ पैर या बायाँ हाथ और दायाँ पैर।
सबने कहाः कोई चिन्ता नहीं, हमतो अपने पालनहार हीकी ओर फिरकर जाने वाले हैं।
हम आशा रखते हैं कि क्षमा कर देगा, हमारे लिए, हमारा पालनहार, हमारे पापों को, क्योंकि हम सबसे पहले ईमान लाने वाले हैं।
और हमने मूसा की ओर वह़्यी की कि रातों-रात निकल जा मेरे भक्तों को लेकर, तुम सबका पीछा किया जायेगा।
तो फ़िरऔन ने भेज दिया नगरों में (सेना) एकत्र करने[1] वालों को।
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1. जब मूसा (अलैहिस्सलाम) अल्लाह के आदेशानुसार अपने साथियों को ले कर निकल गये तो फ़िरऔन ने उन का पीछा करने के लिये नगरों में हरकारे भेजे।
कि वे बहुत थोड़े लोग हैं।
और (इसपर भी) वे हमें अति क्रोधित कर रहे हैं।
और वास्तव में, हम एक गिरोह हैं सावधान रहने वाले।
अन्ततः, हमने निकाल दिया उन्हें, बागों तथा स्रोतों से।
तथा कोषों और उत्तम निवास स्थानों से।
इसी प्रकार हुआ और हमने उनका उत्तराधिकारी बना दिया, इस्राईल की संतान को।
तो उन्होंने उनका पीछा किया, प्रातः होते ही।
और जब दोनों गिरोहों ने एक-दूसरे को देख लिया, तो मूसा के साथियों ने कहाः हमतो निश्चय ही पकड़ लिए[1] गये।
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1. क्यों कि अब सामने सागर और पीछे फ़िरऔन की सेना थी।
(मूसा ने) कहाः कदापि नहीं, निश्चय मेरे साथ मेरा पालनहार है।
तो हमने मूसा को वह़्यी की कि मार अपनी लाठी से सागर को, अकस्मात् सागर फट गया तथा प्रत्येक भाग, भारी पर्वत के समान[1] हो गया।
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1. अर्थात बीच से मार्ग बन गया और दोनों ओर पानी पर्वत के समान खड़ा हो गया।
तथा हमने समीप कर दिया उसी स्थान के, दूसरे गिरोह को।
और मुक्ति प्रदान कर दी मूसा और उसके सब साथियों को।
फिर हमने डुबो दिया दूसरों को।
वास्तव में, इसमें बड़ी शिक्षा है और उनमें से अधिक्तर लोग ईमान वाले नहीं थे।
तथा वास्तव में, आपका पालनहार निश्चय अत्यंत प्रभुत्वशाली, दयावान् है।
तथा आप, उन्हें सुना दें, इब्राहीम का समाचार (भी)।
जब उसने कहा, अपने बाप तथा अपनी जाति से कि तुम क्या पूज रहे हो?
उन्होंने कहाः हम मूर्तियों की पूजा कर रहे हैं और उन्हीं की सेवा में लगे रहते हैं।
उसने कहाः क्या वे तुम्हारी सुनती हैं, जब तुम पुकारते हो?
या तुम्हें लाभ पहुँचाती या हानि पहुँचाती हैं?
उन्होंने कहाः बल्कि हमने अपने पूर्वोजों को ऐसा ही करते हुए पाया है।
उसने कहाः क्या तुमने कभी (आँख खोलकर) उसे देखा, जिसे तुम पूज रहे हो।
तुम तथा तुम्हारे पहले पूर्वज?
क्योंकि ये सब मेरे शत्रु हैं, पूरे विश्व के पालनहार के सिवा।
जिसने मुझे पैदा किया, फिर वही मुझे मार्ग दर्शा रहा है।
और जो मुझे खिलाता और पिलाता है।
और जब रोगी होता हूँ, तो वही मुझे स्वस्थ करता है।
तथा वही मुझे मारेगा, फिर[1] मुझे जीवित करेगा।
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1. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों का फल भोगने के लिये।
तथा मैं आशा रखता हूँ कि क्षमा कर देगा, मेरे लिए, मेरे पाप, प्रतिकार (प्रलय) के दिन।
हे मेरे पालनहार! प्रदान कर दे मुझे तत्वदर्शिता और मुझे सम्मिलित कर सदाचारियों में।
और मुझे सच्ची ख्याति प्रदान कर, आगामी लोगों में।
और बना दे मुझे, सुख के स्वर्ग का उत्तराधिकारी।
तथा मेरे बाप को क्षमा कर दे,[1] वास्तव में, वह कुपथों में से है।
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1. (देखियेः सूरह तौबा, आयतः114)
तथा मुझे निरादर न कर, जिस दिन सब जीवित किये[1] जायेंगे।
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1. ह़दीस में वर्णित है कि प्रलय के दिन इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने बाप से मिलेंगे। और कहेंगेः हे मेरे पालनहार! तू ने मुझे वचन दिया था कि मुझे पुनः जीवित होने के दिन अपमानित नहीं करेगा। तो अल्लाह कहेगाः मैं ने स्वर्ग को काफ़िरों के लिये अवैध कर दिया है। (सह़ीह़ बुख़ारीः4769)
जिस दिन, लाभ नहीं देगा कोई धन और न संतान।
परन्तु, जो अल्लाह के पास स्वच्छ दिल लेकर आयेगा।
और समीप कर दी जायेगी स्वर्ग आज्ञाकारियों के लिए।
तथा खोल दी जायेगी नरक कुपथों के लिए।
तथा कहा जायेगाः कहाँ हैं वे, जिन्हें तुम पूज रहे थे?
अल्लाह के सिवा, क्या वे तुम्हारी सहायता करेंगे अथवा स्वयं अपनी सहायता कर सकते हैं?
फिर उसमें औंधे झोंक दिये जायेंगे वे और सभी कुपथ।
और इब्लीस की सेना सभी।
और वे उसमें आपस में झगड़ते हुए कहंगेः
अल्लाह की शपथ! वास्तव में, हम खुले कुपथ में थे।
जब हम तुम्हें, बराबर समझ रहे थे विश्व के पालनहार के।
और हमें कुपथ नहीं किया, परन्तु अपराधियों ने।
तो हमारा कोई अभिस्तावक (सिफ़ारिशी) नहीं रह गया।
तथा न कोई प्रेमी मित्र।
तो यदि हमें पुनः संसार में जाना होता,[1] तो हम ईमान वालों में हो जाते।
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1. इस आयत में संकेत है कि संसार में एक ही जीवन कर्म के लिये मिलता है। और दूसरा जीवन प्रलोक में कर्मों के फल के लिये मिलेगा।
निःसंदेह, इसमें बड़ी निशानी है और उनमें से अधिक्तर ईमान लाने वाले नहीं हैं।
और वास्तव में, आपका पालनहार ही अति प्रभुत्वशाली,[1] दयावान् है।
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1. परन्तु लोग स्वयं अत्याचार कर के नरक के भागी बन रहे हैं।
नूह़ की जाति ने भी रसूलों को झुठलाया।
जब उनसे उनके भाई नूह़ ने कहाः क्या तुम (अल्लाह से) डरते नहीं हो?
वास्तव में, मैं तुम्हारे लिए एक[1] रसूल हूँ।
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1. अल्लाह का संदेश बिना कमी और अधिक्ता के तुम्हें पहूँचा रहा हूँ।
अतः, तुम अल्लाह से डरो और मेरी बात मानो।
मैं नहीं माँगता इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला), मेरा बदला तो बस सर्वलोक के पालनहार पर है।
अतः, तुम अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
उन्होंने कहाः क्या हम तुझे मान लें, जबकि तेरा अनुसरण पतित (नीच) लोग[1] कर रहे हैं?
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1. अर्थात धनी नहीं, निर्धन लोग कर रहे हैं।
(नूह़ ने) कहाः मूझे क्य ज्ञान कि वे क्या कर्म करते रहे हैं?
उनका ह़िसाब तो बस मेरे पालनहार के ऊपर है, यदि तुम समझो।
और मैं धुतकारने वाला[1] नहीं हूँ, ईमान वालों को।
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1. अर्थात मैं हीन वर्ग के लोगों को जो ईमान लाये हैं अपने से दूर नहीं कर सकता जैसा कि तुम चाहते हो।
मैं तो बस खुला सावधान करने वाला हूँ।
उन्होंने कहाः यदि रुका नहीं, हे नूह़! तो तू अवश्य पथराव करके मारे हुओं में होगा।
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरी जाति ने मुझे झुठला दिया।
अतः, तू निर्णय कर दे मेरे और उनके बीच और मुक्त कर दे मुझे तथा उन्हें जो मेरे साथ हैं, ईमान वालों में से।
तो हमने उसे मुक्त कर दिया तथा उन्हें जो उसके साथ भरी नाव में थे।
फिर हमने डुबो दिया उसके पश्चात्, शेष लोगों को।
वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी (शिक्षा) है तथा उनमें से अधिक्तर ईमान लाने वाले नहीं।
और निश्चय आपका पालनहार ही अति प्रभुत्वशाली, दयावान् है।
झुठला दिया आद (जाति) ने (भी) रसूलों को।
जब कहा उनसे, उनके भाई हूद[1] नेः क्या तुम डरते नहीं हो?
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1. आद जाति के नबी हूद (अलैहिस्सलाम) को उन का भाई कहा गया है क्यों कि वह भी उन्हीं के समुदाय में से थे।
वस्तुतः, मैं तुम्हारे लिए एक न्यासिक (अमानतदार) रसूल हूँ।
अतः, अल्लाह से डरो और मेरा अनुपालन करो।
और मैं तुमसे कोई पारिश्रमिक (बदला) नहीं माँगता, मेरा बदला तो बस सर्वलोक के पालनहार पर है।
क्यों तुम बना लेते हो, हर ऊँचे स्थान पर एक यादगार भवन, व्यर्थ में?
तथा बनाते हो, बड़े-बड़े भवन, जैसे कि तुम सदा रहोगे।
और जबकिसी को पकड़ते हो, तो पकड़ते हो, महा अत्याचारी बनकर।
तो अल्लाह से डरो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
तथा उससे भय रखो, जिसने तुम्हारी सहायता की है उससे, जो तुम जानते हो।
उसने सहायता की है तुम्हारी चौपायों तथा संतान से।
तथा बाग़ों (उद्यानो) तथा जल स्रोतों से।
मैं तुमपर डरता हूँ, भीषण दिन की यातना से।
उन्होंने कहाः नसीह़त करो या न करो, हमपर सब समान है।
ये बात तो बस प्राचीन लोगों की नीति[1] है।
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1. अर्थात प्राचीन युग से होती चली आ रही है।
और हम उनमें से नहीं हैं, जिन्हें यातना दी जायेगी।
अन्ततः, उन्होंने हमें झुठला दिया, तो हमने उन्हें ध्वस्त कर दिया। निश्चय इसमें एक बड़ी निशानी (शिक्षा) है और लोगों में अधिक्तर ईमान लाने वाले नहीं हैं।
और वास्तव में, आपका पालनहार ही अत्यंत प्रभुत्वशाली, दयावान् है।
झुठला दिया समूद ने (भी)[1] रसूलों को।
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1. यहाँ यह बात याद रखने की है कि एक रसूल का इन्कार सभी रसूलों का इन्कहार है क्यों कि सब का उपदेश एक ही था।
जब कहा उनसे उनके भाई सालेह़ नेः क्या तुम डरते नहीं हो?
वास्तव में, मैं तुम्हारा विश्वसनीय रसूल हूँ।
तो तुम अल्लाह से डरो और मेरा कहा मानो।
तथा मैं नहीं माँगता इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक, मेरा पारिश्रमिक तो बस सर्वलोक के पालनहार पर है।
क्या तुम छोड़ दिये जाओगे उसमें, जो यहाँ हैं निश्चिन्त रहकर?
बाग़ों तथा स्रोतों में।
तथा खेतों और खजूरों में, जिनके गुच्छे रस भरे हैं।
तथा तुमपर्वतों को तराशकर घर बनाते हो, गर्व करते हुए।
अतः, अल्लाह से डरो और मेरा अनुपालन करो।
और पालन न करो उल्लंघनकारियों के आदेश का।
जो उपद्रव करते हैं धरती में और सुधार नहीं करते।
उन्होंने कहाः वास्तव में, तू उनमें से है, जिनपर जादू कर दिया गया है।
तू तो बस हमारे समान एक मानव है। तो कोई चमत्कार ले आ, यदि तू सच्चा है।
कहाः ये ऊँटनी है,[1] इसके लिए पानी पीने का एक दिन है और तुम्हारे लिए पानी लेने का निश्चित दिन है।
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1. अर्थता यह ऊँटनी चमत्कार है जो उन की माँग पर पत्थर से निकली थी।
तथा उसे हाथ न लगाना बुराई से, अन्यथा तुम्हें पकड़ लेगी एक भीषण दिन की यातना।
तो उन्होंने वध कर दिया उसे, अन्ततः, पछताने वाले हो गये।
और पकड़ लिया उन्हें यातना ने। वस्तुतः, इसमें बड़ी निशानी है और नहीं थे उनमें से अधिक्तर ईमान वाले।
और निश्चय आपका पालनहार ही अत्यंत प्रभुत्वशाली, दयावान् है।
झुठला दिया लूत की जाति ने (भी) रसूलों को।
जब कहा उनसे उनके भाई लूत नेः क्या तुम डरते नहीं हो?
वास्तव में, मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार रसूल हूँ।
अतः अल्लाह से डरो और मेरा अनुपालन करो।
और मैं तुमसे प्रश्न नहीं करता, इसपर किसी पारिश्रमिक (बदले) का। मेरा बदला तो बस सर्वलोक के पालनहार पर है।
क्या तुम जाते[1] हो पुरुषों के पास, संसार वासियों में से।
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1. इस कुकर्म का आरंभ संसार में लूत (अलैहिस्सलाम) की जाति से हुआ। और अब यह कुकर्म पूरे विश्व में विशेष रूप से यूरोपीय सभ्य देशों में व्यापक है। और समलैंगिक विवाह को यूरोप के बहुत से देशों में वैध मान लिया गया है। जिस के कारण कभी भी उन पर अल्लाह की यातना आ सकती है।
तथा छोड़ देते हो उसे, जिसे पैदा किया है तुम्हारे पालनहार ने, अर्थात अपनी प्तनियों को, बल्कि तुम एक जाति हो, सीमा का उल्लंघन करने वाली।
उन्होंने कहाः यदि तू नहीं रुका, हे लूत! तो अवश्य तेरा बहिष्कार कर दिया जायेगा।
उसने कहाः वास्तव में, मैं तुम्हारे करतूत से बहुत अप्रसन्न हूँ।
मेरे पालनहार! मुझे बचा ले तथा मेरे परिवार को उससे, जो वे कर रहे हैं।
तो हमने उसे बचा लिया तथा उसके सभी परिवार को।
परन्तु, एक बुढ़िया[1] को, जो पीछे रह जाने वालों में थी।
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1. इस से अभिप्रेत लूत (अलैहिस्सलाम) की काफ़िर पत्नी थी।
फिर हमने विनाश कर दिया दूसरों का।
और वर्षा की उनपर, एक घोर[1] वर्षा। तो बुरी हो गयी डराये हुए लोगों की वर्षा।
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1. अर्थात पत्थरों की वर्षा। (देखियेः सूरह हूद, आयतः82-83)
वास्तव में, इसमें एक बड़ी निशानी (शिक्षा) है और उनमें से अधिक्तर ईमान लाने वाले नहीं थे।
और निश्चय आपका पालनहार ही अत्यंत प्रभुत्वशाली, दयावान् है।
झुठला दिया ऐय्का[1] वालों ने रसूलों को।
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1. ऐय्का का अर्थ झाड़ी है। यह मद्यन का क्षेत्र है जिस में शोऐब अलैहिस्सलाम को भेजा गया था।
जब कहा उनसे शोऐब नेः क्या तुम डरते नहीं हो?
मैं तुम्हारे लिए एक विश्वसनीय रसूल हूँ।
अतः, अल्लाह से डरो तथा मेरी आज्ञा का पालन करो।
और मैं नहीं माँगता तुमसे इसपर कोई पारिश्रमिक, मेरा पारिश्रमिक तो बस समस्त विश्व के पालनहार पर है।
तुम नाप-तोल पूरा करो और न बनो कम देने वालों में।
और तोलो सीधी तराज़ू से।
और मत कम दो लोगों को उनकी चीज़ें और मत फिरो धरती में उपद्रव फैलाते।
और डरो उससे, जिसने पैदा किया है तुम्हें तथा अगले लोगों को।
उन्होंने कहाःवास्तव में, तू उनमें से है, जिनपर जादू कर दिया गया है।
और तू तो बस एक पुरुष[1] है, हमारे समान और हम तो तुझे झूठों में समझते हैं।
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1. यहाँ यह बात विचारणीय है कि सभी विगत जातियों ने अपने रसूलों को उन के मानव होने के कारण नकार दिया। और जिस ने स्वीकार भी किया तो उस ने कुछ युग व्यतीत होने के पश्चात् अति कर के अपने रसूलों को प्रभु अथवा प्रभु का अंश बना कर उन्हीं को पूज्य बना लिया। तथा एकेश्वरवाद को कड़ा आघात पहुँचा कर मिश्रणवाद का द्वार खोल लिया और कुपथ हो गये। वर्तमान युग में भी इसी का प्रचलन है और इस का आधार अपने पूर्वजों की रीतियों को बनाया जाता है। इस्लाम इसी कुपथ का निवारण कर के एकेश्वरवाद की स्थापना के लिये आया है और वास्तव में यही सत्धर्म है। ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मूझे वैसे न बढ़ा चढ़ाना जैसे ईसाईयों ने मर्यम के पुत्र (ईसा) को बढ़ा चढ़ा दिया। वास्तव में मैं उस का दास हूँ। अतः मुझे अल्लाह का दास और उस का रसूल कहो। (देखिये सह़ीह़ बुख़ारीः 3445)
तो हमपर गिरा दे कोई खण्ड आकाश का, यदि तू सच्चा है।
उसने कहाः मेरा पालनहार भली प्रकार जानता है उसे, जो कुछ तुम कर रहे हो।
तो उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः, पकड़ लिया उन्हें छाया के[1] दिन की यातना ने। वस्तुतः, वह एक भीषण दिन की यातना थी।
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1. अर्थात उन की यातना के दिन उन पर बादल छा गया। फिर आग बरसने लगी और धरती कंपित हो गई। फिर एक कड़ी ध्वनि ने उन की जानें ले लीं। (इब्ने कसीर)
निश्चय ही, इसमें एक बड़ी निशानी (शिक्षा) है और नहीं थे उनमें अधिक्तर ईमान लाने वाले।
और वास्तव में, आपका पालनहार ही अत्यंत प्रभुत्वशाली, दयावान् है।
तथा निःसंदेह, ये (क़ुर्आन) पूरे विश्व के पालनहार का उतारा हुआ है।
इसे लेकर रूह़ुल अमीन[1] उतरा।
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1. रूह़ुल अमीन से अभिप्राय आदरणीय फ़रिश्ता जिब्रील (अलैहिस्सलाम) हैं। जो मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अल्लाह की ओर से वह़्यी ले कर उतरते थे जिस के कारण आप रसूलों की और उन की जातियों की दशा से अवगत हुये। अतः यह आप के सत्य रसूल होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
आपके दिल पर, ताकि आप हो जायें सावधान करने वालों में।
खुली अरबी भाषा में।
तथा इसकी चर्चा[1] अगले रसूलों की पुस्तकों में (भी) है।
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1. अर्थात सभी आकाशीय ग्रन्थों में अन्तिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आगमन तथा आप पर पुस्तक क़ुर्आन के अवतरित होने की भविष्वाणी की गई है। और सब नबियों ने इस की शुभ सूचना दी है।
क्या और उनके लिए ये निशानी नहीं है कि इस्राईलियों के विद्वान[1] इसे जानते हैं।
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1. बनी इस्राईल के विद्वान अब्दुल्लाह बिन सलाम आदि जो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और क़ुर्आन पर ईमान लाये वह इस के सत्य होने का खुला प्रमाण हैं।
और यदि हम इसे उतार देते किसी अजमी[1] पर।
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1. अर्थात ऐसे व्यक्ति पर जो अरब देश और जाति के अतिरिक्त किसी अन्य जाति का हो।
और वह, इसे उनके समक्ष पढ़ता, तो वे उसपर ईमान लाने वाले न होते[1]।
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1. अर्थात अर्बी भाषा में न होता तो कहते कि यह हमारी समझ में नहीं आता। (देखियेः सूरह ह़ा, मीम, सज्दा, आयतः44)
इसी प्रकार, हमने घुसा दिया है इस (क़ुर्आन के इन्कार) को पापियों के दिलों में।
वे नहीं ईमान लायेंगे उसपर, जब तक देख नहीं लेंगे दुःखदायी यातना।
फिर, वह उनपर सहसा आ जायेगी और वे समझ भी नहीं पायेंगे।
तो कहेंगेः क्या हमें अवसर दिया जायेगा?
तो क्या वे हमारी यातना की जल्दी मचा रहे हैं?
(हे नबी!) तो क्या आपने विचार किया कि यदि हम लाभ पहुँचायें इन्हें वर्षों।
फिर आ जाये उनपर वह, जिसकी उन्हें धमकी दी जा रही थी।
तो कुछ काम नहीं आयेगा उनके, जो उन्हें लाभ पहुँचाया जाता रहा?
और हमने किसी बस्ती का विनाश नहीं किया, परन्तु उसके लिए सावधान करने वाले थे।
शिक्षा देने के लिए और हम अत्याचारी नहीं हैं।
तथा नहीं उतरे हैं (इस क़ुर्आन) को लेकर शैतान।
और न योग्य है उनके लिए और न वे इसकी शक्ति रखते हैं।
वास्तव में, वे तो (इसके) सुनने से भी दूर[1] कर दिये गये हैं।
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1. अर्थात इस के अवतरित होने के समय शैतान आकाश की ओर जाते हैं तो उल्का उन्हें भष्म कर देते हैं।
अतः, आप न पुकारें अल्लाह के साथ किसी अन्य पूज्य को, अन्यथा आप दण्डितों में हो जायेंगे।
और आप सावधान कर दें अपने समीपवर्ती[1] संबंधियों को।
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1. आदरणीय इब्ने अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) कहते हैं कि जब यह आयत उतरी तो आप सफ़ा पर्वत पर चढ़े। और क़ुरैश के परिवारों को पुकरा। और जब सब एकत्र हो गये, और जो स्वयं नहीं आ सका तो उस ने किसी प्रतिनिधि को भेज दिया। और अबू लहब तथा क़ुरैश आ गये तो आप ने फ़रमायाः यदि मैं तुम से कहूँ कि उस वादी में एक सेना है जो तुम पर आक्रमण करने वाली है, तो क्या तुम मुझे सच्चा मानोगे? सब ने कहाः हाँ। हम ने आप को सदा ही सच्चा पाया है। आप ने कहाः मैं तुम्हें आगामी कड़ी यातना से सावधान कर रहा हूँ। इस पर अबू लहब ने कहाः तेरा पूरे दिन नाश हो! क्या हमें इसी के लिये एकत्र किया है? और इसी पर सूरह लह्ब उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः4770)
और झुका दें अपना बाहु[1] उसके लिए, जो आपका अनुयायी हो, ईमान वालों में से।
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1. अर्थात उस के साथ विनम्रता का व्यवहार करें।
और यदि वे आपकी अवज्ञा करें, तो आप कह दें कि मैं निर्दोष हूँ उससे, जो तुम कर रहे हो।
तथा आप भरोसा करें अत्यंत प्रभुत्वशाली, दयावान् पर।
जो देखता है आपको, जिस समय (नमाज़) में खड़े होते हैं।
और आपके फिरने को सज्दा करने[1] वालों में।
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1. अर्थात प्रत्येक समय अकेले हों या लोगों के बीच हों।
निःसंदेह, वही सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
क्या मैं तुम सबको बताऊँ कि किसपर शैतान उतरते हैं?
वे उतरते हैं, प्रत्येक झूठे पापी[1] पर।
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1. ह़दीस में है कि फ़रिश्ते बादल में उतरते हैं, और आकाश के निर्णय की बात करते हैं, जिसे शैतान चोरी से सुन लेते हैं। और ज्योतिषियों को पहुँचा देते हैं। फिर वह उस में सौ झूठ मिलाते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः3210)
वे पहुँचा देते हैं, सुनी सुनाई बातों को और उनमें अधिक्तर झूठे हैं।
और कवियों का अनुसरण बहके हुए लोग करते हैं।
क्या आप नहीं देखते कि वे प्रत्येक वादी में फिरते[1] हैं।
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1. अर्थात कल्पना की उड़ान में रहते हैं।
और ऐसी बात कहते हैं, जो करते नहीं।
परन्तु वो (कवि), जो[1] ईमान लाये, सदाचार किये, अल्लाह का बहुत स्मरण किया तथा बदला लिया इसके पश्चात् कि उनके ऊपर अत्याचार किया गया! तथा शीघ्र ही जान लेंगे, जिन्होंने अत्याचार किया है कि व किस दुष्परिणाम की ओर फिरते हैं!
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1. इन से अभिप्रेत ह़स्सान बिन साबित आदि कवि हैं जो क़ुरैश के कवियों की भर्त्सना किया करते थे। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारीः4124)
سورة الشعراء
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الأقوال
التفسيرات

سورةُ (الشُّعَراء) سورةٌ مكِّية، افتُتِحت بتعظيم القرآن، وخُتِمت بذلك، وتخلَّلَ البدايةَ والخاتمة ذِكْرُ قِصَصِ عددٍ من الأنبياء، ومقصودُ السورة الأعظم: بيانُ عُلُوِّ هذا الكتاب وإعجازِه، وسُمُوِّه عن أن يكونَ شِعْرًا، أو مِن كلامِ بشَرٍ، وجاءت الآيةُ على وصفِ الشُّعَراء وطريقِهم بالغَواية في أصلها إلا مَن اتَّقَى؛ وذلك شأنُ الأقلِّ من الشُّعَراء.

ترتيبها المصحفي
26
نوعها
مكية
ألفاظها
1320
ترتيب نزولها
47
العد المدني الأول
226
العد المدني الأخير
226
العد البصري
226
العد الكوفي
227
العد الشامي
227

* سورة (الشُّعَراء):

سُمِّيت سورةُ (الشُّعَراء) بهذا الاسم؛ لاختتامِها بذِكْرِهم في قوله: {وَاْلشُّعَرَآءُ يَتَّبِعُهُمُ اْلْغَاوُۥنَ} [الشعراء: 224].

* سورة (الظُّلَّةِ):

سُمِّيت بذلك؛ لقوله تعالى فيها: {فَكَذَّبُوهُ فَأَخَذَهُمْ عَذَابُ يَوْمِ ‌اْلظُّلَّةِۚ} [الشعراء: 189].

جاءت موضوعات سورة (الشُّعَراء) على النحو الآتي:

1. تعظيم القرآن، وتَسْريةٌ للرسول عليه السلام (١-٩).

2. قصص الأنبياء (١٠-١٩١).

3. قصة موسى عليه السلام (١٠-٦٨).

4. قصة إبراهيمَ عليه السلام (٦٩-١٠٤).

5. قصة نُوحٍ عليه السلام (١٠٥- ١٢٢).

6. قصة هُودٍ عليه السلام (١٢٣-١٤٠).

7. قصة صالح عليه السلام (١٤١-١٥٩).

8. قصة لُوطٍ عليه السلام (١٦٠- ١٧٥).

9. قصة شُعَيبٍ عليه السلام (١٧٦-١٩١).

10. تعظيم القرآن، وإثبات نبوَّة محمد صلى الله عليه وسلم، وتفنيد شُبهات المشركين (١٩٢-٢٢٧).

ينظر: "التفسير الموضوعي للقرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (5 /327).

مقصودُ سورةِ (الشُّعَراءِ): إعلاءُ شأنِ هذا الكتاب، وأنَّه بيِّنٌ في نفسه: بإعجازه أنه من عند الله، مُبيِن لكل ملتبِس: بالإشارة إلى إهلاك مَن عَلِمَ منه دوامَ العصيان، ورحمةِ من أراده للهداية والإحسان.

وتسميتُها بـ(الشُّعَراء) أدلُّ دليلٍ على ذلك؛ بما يفارِقُ به القرآنُ الشِّعْرَ من عُلُوِّ مقامه، واستقامةِ مناهجه، وعِزِّ مَرامِه، وصِدْقِ وعده ووعيده، وعدلِ تبشيره وتهديده، وفيه وصفُ طريقِ القرآن بكمال الهداية والرَّشاد.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /326).