ترجمة سورة القصص

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة القصص باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

ता, सीन, मीम।
ये इस खुली पुस्तक की आयतें हैं।
हम आपके समक्ष सुना रहे हैं, मूसा तथा फ़िरऔन के कुछ समाचार, सत्य के साथ, उन लोगों के लिए, जो ईमान रखते हैं।
वास्तव में, फ़िरऔन ने उपद्रव किया धरती में और कर दिया उसके निवासियों को कई गिरोह। वह निर्बल बना रहा था एक गिरोह को उनमें से, वध कर रहा था उनके पुत्रों को और जीवित रहने देता था उनकी स्त्रियों को। निश्चय वह उपद्रवियों में से था।
तथा हम चाहते थे कि उनपर दया करें, जो निर्बल बना दिये गये धरती में तथा बना दें उन्हीं को प्रमुख और बना दें उन्हीं को[1] उत्तराधिकारी।
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1. अर्थात मिस्र देश का राज्य उन्हीं को प्रदान कर दें।
तथा उन्हें शक्ति प्रदान कर दें और दिखा दें फ़िरऔन तथा हामान और उनकी सेनाओं को उनकी ओर से वह, जिससे वे डर रहे[1] थे।
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1. अर्थात बनी इस्राईल के हाथों अपने राज्य के पतन से।
और हमने वह़्यी[1] की मूसा की माता की ओर कि उसे दूध पिलाती रह और जब तुझे उसपर भय हो, तो उसे सागर में डाल दे और भय न कर और न चिन्ता कर, निःसंदेह, हम वापस लायेंगे उसे तेरी ओर और बना देंगे उसे रसूलों में से।
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1. जब मूसा का जन्म हुआ तो अल्लाह ने उन के माता के मन में यह बातें डाल दीं।
तो ले लिया उसे फ़िरऔन के कर्मचारियों ने,[1] ताकि वह बने उनके लिए शत्रु तथा दुःख का कारण। वास्तव में, फ़िरऔन तथा हामान और उनकी सेनाएँ दोषी थीं।
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1. अर्थात उसे एक संदूक में रख कर सागर में डाल दिया जिसे फ़िरऔन की पत्नि ने निकाल कर उसे (मूसा को) अपना पुत्र बना लिया।
और फ़िरऔन की पत्नि ने कहाः ये मेरी तथा आपकी आँखों की ठण्डक है। इसे वध न कीजिये, संभव है हमें लाभ पहुँचाये या उसे हम पुत्र बना लें और वे समझ नहीं रहे थे।
और हो गया मूसा की माँ का दिल व्याकूल, समीप था कि वह उसका भेद खोल देती, यदि हम आश्वासन न देते उसके दिल को, ताकि वह हो जाये विश्वास करने वालों में।
तथा (मूसा की माँ ने) कहा उसकी बहन से कि तू इसके पीछे-पीछे जा। और उसने उसे दूर ही दूर से देखा और उन्हें इसका आभास तक न हुआ।
और हमने अवैध (निषेध) कर दिया उस (मूसा) पर दाइयों को इससे[1] पूर्व। तो उस (की बहन) ने कहाः क्या मैं तुम्हें न बताऊँ ऐसा घराना, जो पालनपोषण करें इसका तुम्हारे लिए तथा वे उसके शुभचिनतक हों?
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1. अर्थात उस की माता के पास आने से पूर्व।
तो हमने फेर दिया उसे उसकी माँ की ओर, ताकि ठण्डी हो उसकी आँख और चिन्ता न करे और ताकि उसे विश्वास हो जाये कि अल्लाह का वचन सच है, परन्तु अधिक्तर लोग विश्वास नहीं रखते।
और जब वह अपनी युवावस्था को पहुँचा और उसका विकास पूरा हो गया, तो हमने उसे प्रबोध तथा ज्ञान दिया और इसी प्रकार, हम बदला देते हैं सदाचारियों को।
और उसने प्रवेश किया नगर में उसके वासियों की अचेतना के समय और उसमें दो व्यक्तियों को लड़ते हुए पाया, ये उसके गिरोह से था और दूसरा उसके शत्रु में[1] से। तो पुकारा उसने, जो उसके गिरोह से था, उसके विरुध्द, जो उसके शत्रु में से था। जिसपर मूसा ने उसे घूँसा मारा और वह मर गया। मूसा ने कहाः ये शैतानी कर्म है। वास्तव में, वह शत्रु है खुला, कुपथ करने वाला।
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1. अर्थात एक इस्राईली तथा दूसरा क़िब्ती फ़िरऔन की जाति से था।
उसने कहाः हे मेरे पालनहार! मैंने अपने ऊपर अत्याचार कर लिया, तू मुझे क्षमा कर दे। फिर अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया। वास्तव में, वह क्षमाशील, अति दयावान् है।
उसने कहाः उसके कारण, जो तूने मुझपर पुरस्कार किया है, अब मैं कदापि अपराधियों का सहायक नहीं बनूँगा।
फिर प्रातः वह नगर में डरता हुआ समाचार लेने गया, तो सहसा वही जिसने उससे कल सहायता माँगी थी, उसे पुकार रहा है। मूसा ने उससे कहाः वास्तव में, तूही खुला कुपथ है।
फिर जब पकड़ना चाहा उसे, जो उन दोनों का शत्रु था, तो उसने कहाः हे मूसा! क्या तू मुझे मार देना चाहता है, जैसे मार दिया एक व्यक्ति को कल? तू तो चाहता है कि बड़ा उपद्रवी बनकर रहे इस धरती में और तू नहीं चाहता कि सुधार करने वालों में से हो।
और आया एक पुरुष नगर के किनारे से दौड़ता हुआ, उसने कहाः हे मूसा! (राज्य के) प्रमुख प्रामर्श कर रहे हैं तेरे विषय में कि तुझे वध कर दें, अतः तू निकल जा। वास्तव में, मैं तेरे शुभचिन्तकों में से हूँ।
तो वह निकल गया उस (नगर) से डरा सहमा हुआ। उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे बचा ले अत्याचारी जाति से।
और जब वह जाने लगा मद्यन की ओर, तो उसने कहाः मूझे आशा है कि मेरा पालनहार मुझे दिखायेगा सीधा मार्ग।
और जब उतरा मद्यन के पानी पर, तो पाया उसपर लोगों का एक समूह, जो (अपने पशुओं को) पानी पिला रहा था तथा पाया उसके पीछे दो स्त्रियों को (अपने पशुओं को) रोकती हुईं। उसने कहाः तुम्हारी समस्या क्या है? दोनों ने कहाः हम पानी नहीं पिलातीं, जब तक चरवाहे चले न जायें और हमारे पिता बहुत बूढ़े हैं।
तो उसने पिला दिया दोनों के लिए। फिर चल दिया छाया की ओर और कहने लगाः हे मेरे पालनहार! तू, जोभी भलाई मुझपर उतार दे, मैं उसका आकांक्षी हूँ।
तो आई उसके पास दोनों में से एक स्त्री चलती हुई लज्जा के साथ, उसने कहाः मेरे पिता[1] आपको बुला रहे हैं। ताकि आपको उसका पारिश्रमिक दें, जो आपने पानी पिलाया है हमारे लिए। फिर जब (मूसा) उसके पास पहुँचा और पूरी कथा उसे सुनाई, तो उसने कहाः भय न कर। तू मुक्त हो गया अत्याचारी[2] जाति से।
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1. व्याख्या कारों ने लिखा है कि वह आदरणीय शोऐब (अलैहिस्सलाम) थे जो मद्यन के नबी थे। (देखियेः इब्ने कसीर) 2. अर्थात फ़िरऔनियों से।
कहा उन दोनों में से एक नेः हे पिता! आप इन्हें सेवक रख लें, सबसे उत्तम जिसे आपसेवक बनायें वही हो सकता है, जो प्रबल विश्वसनीय हो।
उसने कहाः मैं चाहता हूँ कि विवाह दूँ तुम्हें अपनी इन दो पुत्रियों में से एक से, इसपर कि मेरी सेवा करोगे आठ वर्ष, फिर यदि तुम पूरा कर दो दस (वर्ष) तो ये तुम्हारी इच्छा है। मैं नहीं चाहता कि तुमपर बोझ डालूँ और तुम मुझे पाओगे यदि अल्लाह ने चाहा, तो सदाचारियों में से।
मूसा ने कहाः ये मेरे और आपके बीच (निश्चित) है। मैं दो में से जो भी अवधि पूरी कर दूँ, मुझपर कोई अत्याचार न हो और अल्लाह उसपर, जो हम कह रहे हैं निरीक्षक है।
फिर जब पूरी कर ली मूसा ने अवधि और चला अपने परिवार के साथ, तो उसने देखी तूर (पर्वत) की ओर एक अग्नि। उसने अपने परिवार से कहाः रुको मैंने देखी है एक अग्नि, संभव है तुम्हारे पास लाऊँ वहाँ से कोई समाचार अथवा कोई अंगार अग्नि का, ताकि तुम ताप लो।
फिर जब वह वहाँ आया, तो पुकारा गया वादी के दायें किनारे से, शुभ क्षेत्र में वृक्ष सेः हे मूसा! निःसंदेह, मैं ही अल्लाह हूँ, सर्वलोक का पालनहार।
और फेंक दो अपनी लाठी, फिर जब उसे देखा कि रेंग रही है, मानो वह कोई सर्प हो, तो भागने लगा पीठ फेरकर और पीछे फिरकर नहीं देखा। हे मूसा! आगे आ तथा भय न कर, वास्तव में, तू सुरक्षितों में से है।
डाल अपना हाथ अपनी जेब में, वह निकलेगा उज्ज्वल होकर बिना किसी रोग के और चिमटा ले अपनी ओर अपनी भुजा, भय दूर करने के लिए, तो ये दो खुली निशानियाँ हैं तेरे पालनहार की ओर से फ़िरऔन तथा उसके प्रमुखों के लिए, वास्तव में, वह उल्लंघनकारी जाति हैं।
उसने कहाः मेरे पालनहार! मैंने वध किया है उनके एक व्यक्ति को। अतः, मैं डरता हूँ कि वे मुझे मार देंगे।
और मेरा भाई हारून मुझसे अधिक सुभाषी है, तू उसे भी भेज दे मेरे साथ सहायक बनाकर, ताकि वह मेरा समर्थन करे, मैं डरता हूँ कि वे मुझे झुठला देंगे।
उसने कहाः हम तुझे बाहुबल प्रदान करेंगे तेरे भाई द्वारा और बनायेंगे तुम दोनों के लिए ऐसा प्रभाव कि वे तुम दोनों तक नहीं पहुँच सकेंगे अपनी निशानियों द्वारा, तुम दोनों तथा तुम्हारे अनुयायी ही ऊपर रहेंगे।
फिर जब मूसा उनके पास हमारी खुली निशानियाँ लाया, तो उन्होंने कह दिया कि ये तो केवल घड़ा हुआ जादू है और हमने कभी नहीं सुनी ये बात अपने पूर्वजों के युग में।
तथा मूसा ने कहाः मेरा पालनहार अधिक जानता है उसे, जो मार्गदर्शन लाया है उसके पास से और किसका अन्त अच्छा होना है? वास्तव में, अत्याचारी सफल नहीं होंगे।
तथा फ़िरऔन ने कहाः हे प्रमुखो! मैं नहीं जानता तुम्हारा कोई पूज्य अपने सिवा। तो हे हामान! ईंटें पकवाकर मेरे लिए एक ऊँचा भवन बना दे। संभव है, मैं झाँककर देख लूँ मूसा के पूज्य को और निश्चय मैं उसे समझता हूँ झूठों में से।
तथा घमंड किया उसने तथा उसकी सेनाओं ने धरती में अवैध और उन्होंने समझा कि वह हमारी ओर वापस नहीं लाये जायेंगे।
तो हमने पकड़ लिया उसे और उसकी सेनाओं को, फिर फेंक दिया हमने उन्हें सागर में, तो देखो कि कैसा रहा अत्याचारियों का अन्त (परिणाम)।
और हमने उन्हें बना दिया ऐसा अगवा, जो बुलाते हों नरक की ओर तथा प्रलय के दिन उनकी सहायता नहीं की जायेगी।
और हमने पीछे लगा दिया उनके संसार में धिक्कार को और प्रलय के दिन वे बड़ी दुर्दशा में होंगे।
और हमने मूसा को पुस्तक प्रदान की इसके पश्चात् कि हमने विनाश कर दिया प्रथम समुदायों का, ज्ञान का साधन बनाकर लोगों के लिए तथा मार्गदर्शन और दया, ताकि वे शिक्षा लें।
और (हे नबी!) आप नहीं थे पश्चिमी दिशा में,[1] जब हमने पहुँचाया मूसा की ओर ये आदेश और आप नहीं थे उपस्थितों[2] में।
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1. पश्चिमी दिशा से अभिप्राय तूर पर्वत का पश्चिमी भाग है जहाँ मूसा (अलैहिस्सलाम) को तौरात प्रदान की गई। 2. इन से अभिप्राय वह बनी इस्राईल हैं जिन से धर्मविधान प्रदान करते समय उस का पालन करने का वचन लिया गया था।
परन्तु (आपके समय तक) हमने बहुत-से समुदायों को पैदा किया, फिर उनपर लम्बी अवधि बीत गयी तथा आप उपस्थित न थे मद्यन के वासियों में कि सुनाते उन्हें हमारी आयतें और परन्तु हमभी रसूलों को भेजने[1] वाले हैं।
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1. भावार्थ यह कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हज़ारों पर्ष पहले के जो समाचार इस समय सुना रहे हैं जैसे आँखों से देखें हों वह अल्लाह की ओर से वह़्यी के कारण ही सुना रहे हैं जो आप के सच्चे नबी होने का प्रमाण है।
तथा नहीं थे आप तूर के अंचल में, जब हमने उसे पुकारा, परन्तु आपके पालनहार की दया है, ताकि आप सतर्क करें जिनके पास नहीं आया कोई सचेत करने वाला आपसे पूर्व, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
तथा यदि ये बात न होती कि उनपर कोई आपदा आ जाती उनके करतूतों के कारण, तो कहते कि हमारे पालनहार! तूने क्यों नहीं भेजा हमारे पास कोई रसूल कि हम पालन करते तेरी आयतों का और हो जाते ईमान वालों में से[1]।
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1. अर्थात आप को उन की ओर रसूल बना कर इस लिए भेजा है ताकि प्रलय के दिन उन को यह कहने का अवसर न मिले कि हमारे पास कोई रसूल नहीं आया ताकि हम ईमान लाते।
फिर जब आ गया उनके पास सत्य हमारे पास से, तो कह दिया कि क्यों नहीं दिया गया उसे वही, जो मूसा को (चमत्कार) दिया गया? तो क्या उन्होंने कुफ़्र (इन्कार) नहीं किया उसका, जो मूसा दिये गये इससे पूर्व? उन्होंने कहाः दो[1] जादूगर हैं, दोनो एक-दूसरे के सहायक हैं और कहाः हम किसी को नहीं मानते।
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1. अर्थात मूसा (अलैहिस्सलाम) तथा उन के भाई हारून (अलैहिस्सलाम)। और भावार्थ यह है कि चमत्कारों की माँग, न मानने का बहाना है।
(हे नबी!) आप कह दें: तब तुम्हीं ले आओ कोई पुस्तक अल्लाह की ओर से, जो अधिक मार्गदर्शक हो इन दोनों[1] से, मैं चलूँगा उसपर, यदि तुम सच्चे हो।
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1. अर्थात क़ुर्आन और तौरात से।
फिर यदि वे पूरी न करें आपकी माँग, तो आप जान लें कि वे मनमानी कर रहे हैं और उससे अधिक कुपथ कौन है, जो अपनी मनमानी करे, अल्लाह की ओर से बिना किसी मार्गदर्शन के? वास्तव में, अल्लाह सुपथ नहीं दिखाता है अत्याचारी लोगों को।
और (हे नबी!) हमने निरन्तर पहुँचा दिया है उन्हें अपनी बात (क़ुर्आन), ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
जिन्हें हमने प्रदान की है पुस्तक[1] इस (क़ुर्आन) से पहले, वे[2] इसपर ईमान लाते हैं।
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1. अर्थात तौरात तथा इंजील। 2. अर्थात उन में से जिन्हों ने अपनी मूल पुस्तक में परिवर्तन नहीं किया है।
तथा जब उन्हें सुनाया जाता है, तो कहते हैं: हम इस (क़ुर्आन) पर ईमान लाये, वास्तव में, ये सत्य है, हमारे पालनहार की ओर से, हम तो इसके (उतरने के) पहले ही से मुस्लिम हैं[1]।
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1. अर्थात आज्ञाकारी तथा एकेश्वरवादी हैं।
यही दिये जायेंगे अपना बदला दुहरा,[1] अपने धैर्य के कारण और वे दूर करते हैं अच्छाई के द्वारा बुराई को और उसमें से, जो हमने उन्हें दिया है, दान करते हैं।
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1. अपनी पुस्तक तथा क़ुर्आन दोनों पर ईमान लाने के कारण। (देखियेः सह़ीह़ बुख़ारीः97, मुस्लिमः154)
और जब वह सुनते हैं व्यर्थ बात, तो विमुख हो जाते हैं, उससे तथा कहते हैं: हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। सलाम है तुमपर, हम (उलझना) नहीं चाहते अज्ञानों से ।
(हे नबी!) आप सुपथ नहीं दर्शा सकते, जिसे चाहें[1], परन्तु अल्लाह सुपथ दर्शाता है, जिसे चाहे और वह भली-भाँति जानता है सुपथ प्राप्त करने वालों को।
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1. ह़दीस में वर्णित है कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के (काफ़िर) चाचा अबू तालिब के निधन का समय हुआ, तो आप उन के पास गये। उस समय उन के पास अबू जह्ल तथा अब्दुल्लाह बिन अबि उमय्या उपस्थित थे। आप ने कहाः चाचा ((ला इलाहा इल्लल्लाह)) कह दें ताकि मैं क़्यामत के दिन अल्लाह से आप की क्षमा के लिये शिफ़ारिश कर सकूँ। परन्तु दोनों के कहने पर उन्हों ने अस्वीकार कर दिया और उन का अन्त कुफ़्र पर हुआ। इसी विषय में यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीस संख्याः4772)
तथा उन्होंने कहाः यदि हम अनुसरण करें मार्गदर्शन का आपके साथ, तो अपनी धरती से उचक[1] लिए जायेंगे। क्या हमने निवास स्थान नहीं बनाया है भयरहित "ह़रम"[2] को उनके लिए, खिंचे चले आ रहे हैं जिसकी ओर प्रत्येक प्रकार के फल, जीविका स्वरूप, हमारे पास से? और परन्तु उनमें से अधिक्तर लोग नहीं जानते।
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1. अर्थात हमारे विरोधी हम पर आक्रमण कर देंगे। 2. अर्थात मक्का नगर को।
और हमने विनाश कर दिया बहुत-सी बस्तियों का, इतराने लगी जिनकी जीविका। तो ये हैं उनके घर, जो आबाद नहीं किये गये उनके पश्चात्, परन्तु बहुत थोड़े और हम ही उत्तराधिकारी रह गये।
और नहीं है आपका पालनहार विनाश करने वाला बस्तियों को, जब तक उनके केंद्र में कोई रसूल नहीं भेजता, जो पढ़कर सुनायें उनके समक्ष हमारी आयतें और हम बस्तियों का विनाश करने वाले नहीं हैं, परन्तु जब उसके निवासी अत्याचारी हों।
तथा जो कुछ तुम दिये गये हो, वह सांसारिक जीवन का सामान तथा उसकी शोभा है और जो अल्लाह के पास है उत्तम तथा स्थायी है, तो क्या तुम समझते नहीं हो?
तो क्या जिसे हमने वचन दिया है एक अच्छा वचन और वह पाने वाला हो उसे, उसके जैसा हो सकता है, जिसे हमने दे रखा है सांसारिक जीवन का सामान, फिर वह प्रलय के दिन उपस्थित किये लोगों में होगा[1]?
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1. अर्थात दण्ड और यातना का अधिकारी होगा।
और जिस दिन वह[1] उन्हें पुकारेगा, तो कहेगाः कहाँ हैं मेरे साझी, जिन्हें तुम समझ रहे थे?
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1. अर्थात अल्लाह प्रलय के दिन पुकारेगा।
कहेंगे वे जिनपर सिध्द हो चुकी है ये बातः[1] हे हमारे पालनहार! यही हैं, जिन्हें हमने बहका दिया और हमने इन्हें बहकाया, जैसे हम बहके, हम उनसे अलग हो रहे हैं तेरे समक्ष, ये हमारी पूजा[2] नहीं कर रहे थे।
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1. अर्थात दण्ड और यातना का अधिकारी होने की। 2. यह हमारे नहीं बल्कि अपने मन के पुजारी थे।
तथा कहा जायेगाः पुकारो अपने साझियों को। तो वे पुकारेंगे और वे उन्हें उत्तर तक नहीं देंगे तथा वे यातना देख लेंगे, तो कामना करेंगे कि उन्होंने सुपथ अपनाया होता।
और वह (अल्लाह) उस दिन उन्हें पुकारेगा, फिर कहेगाः तुमने क्या उत्तर दिया रसूलों को?
तो नहीं सूझेगा उन्हें कोई उत्तर उस दिन और न वह एक-दूसरे से प्रश्न कर सकेंगे।
फिर जिसने क्षमा माँग ली[1] तथा ईमान लाया और सदाचार किया, तो आशा कर सकता है कि वह सफल होने वालों में से होगा।
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1. अर्थात संसार में से।
और आपका पालनहार उत्पन्न करता है जो चाहे तथा निर्वाचित करता है। नहीं है उनके लिए कोई अधिकार, पवित्र है अल्लाह तथा उच्च है उनके साझी बनाने से।
और आपका पालनहार ही जानता है, जो छुपाते हैं उनके दिल तथा जो व्यक्त करते हैं।
तथा वही अल्लाह[1] है, कोई वन्दनीय (सत्य पूज्य) नहीं है उसके सिवा, उसी के लिए सब प्रशंसा है लोक तथा परलोक में तथा उसी के लिए शासन है और तुम उसी की ओर फेरे[2] जाओगो।
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1. अर्थात जो उत्पत्ति करता तथा सब अधिकार और ज्ञान रखता है। 2.अर्थात ह़िसाब और प्रतिफल के लिये।
(हे नबी!) आप कहियेः तुम बताओ कि यदि बना दे तुमपर रात्रि को निरन्तर क़्यामत के दिन तक, तो कौन पूज्य है अल्लाह कि सिवा, जो ले आये तुम्हारे पास प्रकाश? तो क्या तुम सुनते नहीं हो?
आप कहियेः तुम बताओ, यदि अल्लाह कर दे तुमपर दिन को निरन्तर क़्यामत के दिन तक, तो कौन पूज्य है अल्लाह के सिवा, जो ले आये तुम्हारे लिए रात्रि, जिसमें तुम शान्ति प्राप्त करो, तो क्या तुम देखते नहीं[1] हो?
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1. अर्थात रात्रि तथा दिन के परिवर्तन को।
तथा अपनी दया ही से उसने बनाये हैं तुम्हारे लिए रात्रि तथा दिन, ताकि तुम शान्ति प्राप्त करो उसमें और ताकि तुम खोज करो उसके अनुग्रह (जीविका) की और ताकि तुम उसके कृतज्ञ बनो।
और अल्लाह, जिस दिन उन्हें पुकारेगा, तो कहेगाः कहाँ हैं वे, जिन्हें तुम मेरा साझी समझ रहे थे?
और हम निकाल लायेंगे प्रत्येक समुदाय से एक गवाह, फिर कहेंगेः लाओ अपने[1] तर्क? तो उन्हें ज्ञान हो जायेगा कि सत्य अल्लाह ही की ओर है और उनसे खो जायेंगी, जो बातें वे घड़ रहे थे।
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1. अर्थात शिर्क के प्रमाण।
क़ारून[1] था मूसा की जाति में से। फिर उसने अत्याचार किया उनपर और हमने उसे प्रदान किया इतने कोष कि उसकी कुंजियाँ भारी थीं एक शक्तिशाली समुदाय पर। जब कहा उससे उसकी जाति नेः मत इतरा, वास्तव में, अल्लाह प्रेम नहीं करता है इतराने वालों से।
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1. यहाँ से धन के गर्व तथा उस के दुष्परिणाम का एक उदाहरण दिया जा रहा है कि क़ारून, मूसा (अलैहिस्सलाम) के युग का एक धनी व्यक्ति था।
तथा खोजकर उससे, जो दिया है अल्लाह ने तुझे आख़िरत (परलोक) का घर और मत भूल अपना सांसारिक भाग और उपकार कर, जैसे अल्लाह ने तुझपर उपकार किया है तथा मत खोज कर धरती में उपद्रव की, निश्चय अल्लाह प्रेम नहीं करता है उपद्रवियों से।
उसने कहाः मैं तो उसे दिया गया हूँ बस अपने ज्ञान के कारण। क्या उसे ये ज्ञान नहीं हुआ कि अल्लाह ने विनाश किया है उससे पहले बहुत-से समुदायों को, जो उससे अधिक थे धन तथा समूह में और प्रश्न नहीं किया जाता[1] अपने पापों के संबन्ध में अपराधियों से।
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1. अर्थात विनाश के समय।
एक दिन, वह निकला अपनी जाति पर, अपनी शोभा में, तो कहा उन लोगों ने, जो चाहते थे सांसारिक जीवनः क्या ही अच्छा होता कि हमारे लिए (भी) उसी के समान (धन-धान्य) होता, जो दिया गया है क़ारून को! वास्तव में, वह बड़ा सौभाग्यशाली है।
तथा उन्होंने कहा जिन्हें ज्ञान दिया गयाः तुम्हारा बुरा हो! अल्लाह का प्रतिकार उसके लिए उत्तम है, जो ईमान लाये तथा सदाचार करे और ये सोच, धैर्यवानों ही को मिलती है।
तथा हमने धंसा दिया उसके तथा उसके घर सहित, धरती को, तो नहीं रह गया उसका कोई समुदाय, जो सहायता करे उसकी अल्लाह के आगे और न वह स्वयं अपनी सहायता कर सका।
और जो कामना कर रहे थे उसके स्थान की कल, कहन लगेः क्या तुम देखते नहीं कि अल्लाह अधिक कर देता है जीविका, जिसके लिए चाहता हो अपने दासों में से और नापकर देता है (जिसे चाहता है)। यदि हमपर उपकार न होता अल्लाह का, तो हमें भी धंसा देता। क्या तुम देखते नहीं कि काफ़िर (कृतघ्न) सफल नहीं होते?
ये परलोक का घर (स्वर्ग) है, हम उसे विशेष कर देंगे उनके लिए, जो नहीं चाहते बड़ाई करना धरती में और न उपद्रव करना और अच्छा परिणाम अज्ञाकारियों[1] के लिए है।
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1. इस में संकेत है कि धरती में गर्व तथा उपद्रव का मूलाधार अल्लाह की अवैज्ञा है।
जो भलाई लायेगा, उसके लिए उससे उत्म (भलाई) है और जो बुराई लायेगा, तो नहीं बदला दिये जायेंगे वे, जिन्होंने बुराईयाँ की हैं, परन्तु वही जो वे करते रहे।
और (हे नबी!) जिसने आपपर क़ुर्आन उतारा है, वह आपको लौटाने वाला है आपके नगर (मक्का) की[1] ओर। आप कह दें कि मेरा पालनहर भली-भाँति जानने वाला है कि कौन मार्गदरशन लाया है और कौन खुले कुपथ में है?
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1. अर्थात आप जिस शहर मक्का से निकाले गये हैं उसे विजय कर लेंगे। और यह भविष्यवाणी सन् 8 हिजरी में पूरी हुई। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4773)
और आप आशा नहीं रखते थे कि अवतरित की जायेगी आपकी ओर ये पुस्तक[1], परन्तु ये दया है, आपके पालनहार की ओर से, अतः आप कदापि न हों सहायक, काफ़िरों के।
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1. अर्थात क़ुर्आन पाक।
और वह आपको न रोकें अल्लाह की आयतों से, इसके पश्चात् कि उतार दी गई आपकी ओर और आप बुलाते रहें अपने पालनहार की ओर और कदापि आप न हों मुश्रिकों में से।
और आप न पुकारें किसी अन्य पूज्य को अल्लाह के साथ, नहीं है कोई वंदनीय (सत्य पूज्य) उस (अल्लाह) के सिवा। प्रत्येक वस्तु नाशवान है सिवाय उसके स्वरूप के। उसी का शासन है और उसी की ओर तुमसब फेरे[1] जाओगे।
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1. अर्थात प्रयलय के दिन ह़िसाब तथा अपने कर्मों का फल पाने के लिये।
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سورة (القَصَص) من السُّوَر المكية التي جاءت ببيانِ إعجاز هذا الكتاب، وبيانِ صِدْقِ نبوة مُحمَّد صلى الله عليه وسلم؛ من خلال قَصِّ القِصَص التي علَّمها اللهُ نبيَّه صلى الله عليه وسلم، وذكَرتِ السورةُ قصةَ موسى عليه السلام مع فِرْعون، وخروجَه من (مِصْرَ) إلى (مَدْيَنَ)، والتقاءَه بابنتَيْ شُعَيبٍ عليه السلام، وما تَبِع ذلك من التفاصيل التي كان مقصودُها بيانَ صراعِ الحقِّ والباطل، وأن النُّصرةَ لهذا الدِّين، وكذلك بيَّنت السورةُ تواضع الأنبياء مع الله عز وجل، ورَدَّ الأمرِ والفضل كلِّه لله عز وجل.

ترتيبها المصحفي
28
نوعها
مكية
ألفاظها
1438
ترتيب نزولها
49
العد المدني الأول
88
العد المدني الأخير
88
العد البصري
88
العد الكوفي
88
العد الشامي
88

* قوله تعالى: {إِنَّكَ ‌لَا ‌تَهْدِي ‌مَنْ ‌أَحْبَبْتَ وَلَٰكِنَّ اْللَّهَ يَهْدِي مَن يَشَآءُۚ} [القصص: 56]:

عن أبي هُرَيرةَ رضي الله عنه، قال: «قال رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم لعَمِّه: «قُلْ: لا إلهَ إلا اللهُ، أشهَدُ لك بها يومَ القيامةِ»، قال: لولا أن تُعيِّرَني قُرَيشٌ، يقولون: إنَّما حمَلَه على ذلك الجَزَعُ؛ لأقرَرْتُ بها عينَك؛ فأنزَلَ اللهُ: {إِنَّكَ ‌لَا ‌تَهْدِي ‌مَنْ ‌أَحْبَبْتَ وَلَٰكِنَّ اْللَّهَ يَهْدِي مَن يَشَآءُۚ} [القصص: 56]». أخرجه مسلم (٢٥).

* سورة (القَصَص):

سُمِّيت سورةُ (القَصَص) بذلك؛ لوقوع لفظ (القَصَص) فيها في قوله تعالى: {فَلَمَّا جَآءَهُۥ وَقَصَّ عَلَيْهِ ‌اْلْقَصَصَ} [القصص: 25].

اشتملت سورةُ (القَصَص) على الموضوعات الآتية:

1. طغيان فرعون، ووعد الله تعالى بإنقاذ المضطهدين، وعقوبة المفسدين (١-٦).

2. ميلاد موسى ونجاته من القتل (٧-١٣).

3. قتل القِبْطي خطأً، والخروج إلى (مَدْيَنَ) (١٤-٢١).

4. اللجوء إلى (مَدْيَنَ)، وزواج موسى عليه السلام (٢٢-٢٨).

5. بعثة موسى وهارون عليهما السلام، وتأييدهما (٢٩-٣٥).

6. بَدْء الدعوة، وتكذيب فرعون وجنوده، ونزول العقاب بهما (٣٦-٤٢).

7. إيتاء التوراة لموسى والقرآن لمُحمَّد عليهما السلام (٤٣-٥٠).

8. الإشارة إلى مؤمني أهلِ الكتاب، وتحذير كفار قريش من الرُّكون إلى الدنيا (٥١-٦١).

9. موقف المشركين يوم القيامة ودعوتهم للتوبة /توحيد الله تعالى (٦٢-٧٥).

10. قصة قارون وعاقبة البَغْي والتكبُّر (٧٦-٨٤).

11. بشارة النبيِّ بالعودة إلى مكَّةَ سالمًا (٨٥-٨٨).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (5 /516).

مقصدُ سورة (القَصَص): هو بيانُ صراع الحقِّ والباطل، ونُصْرة الله لهذا الدِّين، وبيانُ تواضع الأنبياء لله عزَّ وجلَّ، ونتج عن هذا التواضعِ ردُّ الأمر كلِّه لله؛ كما تَجلَّى ذلك في قصة موسى عليه السلام مع المرأتين، ومردُّ ذلك إلى الإيمان بالآخرة، والإيمانِ بنبوَّة مُحمَّد صلى الله عليه وسلم، الثابتةِ بإعجاز القرآن، الذي أخبر بالغيب الذي لم يطَّلِعْ عليه أحد، وإنما هو من عند الله عزَّ وجلَّ، بما علَّمه اللهُ من القِصص الصادقة.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /338).