ترجمة سورة غافر

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة غافر باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

ह़ा मीम।
इस पुस्तक का उतरना अल्लाह की ओर से है, जो सब चीज़ों और गुणों को जानने वाला है।
पाप क्षमा करने, तौबा स्वीकार करने, क्षमायाचना का स्वीकारी, कड़ी यातना देने वाला, समाई वाला, जिसके सिवा कोई ( सच्चा) वंदनीय नहीं। उसी की ओर (सबको) जाना है।
नहीं झगड़ते हैं अल्लाह की आयतों में उनके सिवा, जो काफ़िर हो गये। अतः, धोखे में न डाल दे आपको उनकी यातायात देशों में।
झुठलाया इनसे पूर्व, नूह़ की जाति ने तथा बहुत-से समुदायों ने उनके पश्चात् तथा विचार किया प्रत्येक समुदाय ने अपने रसूल को बंदी बना लेने का तथा विवाद किया असत्य के सहारे, ताकि असत्य बना दें सत्य को। तो हमने उन्हें पकड़ लिया। फिर कैसी रही हमारी यातना?
और इसी प्रकार, सिध्द हो गई आपके पालनहार की बात उनपर, जो काफ़िर हो गये कि वही नारकी हैं।
वे (फ़रिश्ते) जो अपने ऊपर उठाये हुए हैं अर्श (सिंहासन) को तथा जो उसके आस-पास हैं, वे पवित्रता गान करते रहते हैं अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ तथा उसपर ईमान रखते हैं और क्षमा याचना करते रहते हैं उनके लिए, जो ईमान लाये हैं।[1] हे हमारे पालनहार! तूने घेर रखा है प्रत्येक वस्तु को (अपनी) दया तथा ज्ञान से। अतः, क्षमा कर दे उनको जो क्षमा माँगें तथा चलें तेरे मार्ग पर तथा बचा ले उन्हें, नरक की यातना से।
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1. यहाँ फ़रिश्तों के दो गिरोह का वर्णन किया गया है। एक वह जो अर्श को उठाये हुये है। और दूसरा वह जो अर्श के चारों ओर घूम कर अल्लाह की प्रशंसा का गान और ईमान वालों के लिये क्षमायाचना कर रहा है।
हे हमारे पालनहार! तथा प्रवेश कर दे उन्हें ,उन स्थायी स्वर्गों में, जिनका तूने उन्हें वचन दिया है तथा जो सदाचारी हैं, उनके पूर्वजों, पत्नियों और उनकी संतानों में से। निश्चय तू सब चीज़ों और गुणों को जानने वाला है।
तथा उन्हें सुरक्षित रख दुष्कर्मों से तथा तूने जिसे बचा लिया दुष्कर्मों से उस दिन, तो दया कर दी उसपर और यही बड़ी सफलता है।
जिन लोगों ने कुफ़्र किया है, उन्हें (प्रलय के दिन) पुकारा जायेगा कि अल्लाह का क्रोध तुमपर उससे अधिक था, जितना तुम्हें आज अपने ऊपर क्रोध आ रहा है, जब तुम संसार में ईमान की ओर बुलाये[1] जा रहे थे।
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1. आयत का अर्थ यह है कि जब काफ़िर लोग प्रलय के दिन यातना देखेंगे तो अपने ऊपर क्रोधित होंगे। उस समय उन से पुकार कर यह कहा जायेगा कि जब संसार में तुम्हें ईमान की ओर बुलाया जाता था फिर भी तुम कुफ़्र करते थे तो अल्लाह को इस से अधिक क्रोध होता था जितना आज तुम्हें अपने ऊपर हो रहा है।
वे कहेंगेः हे हमारे पालनहार! तूने हमें दो बार मारा[1] तथा जीवित (भी) दो बार किया। अतः, हमने मान लिया अपने पापों को। तो क्या (यातना से) निकलने की कोई राह (उपाय) है?
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1. देखियेः सूरह बक़रह आयतः28
(ये यातना) इस कारण है कि जब तुम्हें (संसार में) बुलाया गया अकेले अल्लाह की ओर, तो तुमने कुफ़्र कर दिया और यदि शिर्क किया जाता उसके साथ, तो तुम मान लेते थे। तो आदेश देने का अधिकार अल्लाह को है, जो सर्वोच्च, सर्वमहान् है।
वही दिखाता है तुम्हें अपनी निशानियाँ तथा उतारता है तुम्हारे लिए आकाश से जीविका और शिक्षा ग्रहण नहीं करता, परन्तु वही, जो (उसकी ओर) ध्यान करता है।
तो तुम पुकारो अल्लाह को शुध्द करके उसके लिए धर्म को, यद्यपि बुरा लगे काफ़िरों को।
वह उच्च श्रेणियों वाला अर्श का स्वामी है। वह उतारता है अपने आदेश से रूह़[1] (वह़्यी), जिसपर चाहता है, अपने भक्तों में से, ताकि वह सचेत करे, मिलने के दिन से।
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1. यहाँ वह़्यी को रूह़ कहा गया है क्यों कि जिस प्रकार रूह़ (आत्मा) मनुष्य के जीवन का कारण होती है वैसे ही प्रकाशना भी अन्तरात्मा को जीवित करती है।
जिस दिन सब लोग (जीवित होकर) निकल पड़ेंगे। नहीं छुपी होगी अल्लाह पर उनकी कोई चीज़। किसका राज्य है आज?[1] अकेले प्रभुत्वशाली अल्लाह का।
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1. अर्थात प्रलय के दिन। (सह़ीह़ बुख़ारीः4812)
आज प्रतिकार दिया जायेगा प्रत्येक प्राणी को, उसके करतूत का। कोई अत्याचार नहीं है आज। वास्तव में, अल्लाह अति शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
तथा आप सावधान कर दें उन्हें आगामी समीप दिन से, जब दिल मुँह को आ रहे होंगे। लोग शोक से भरे होंगे। नहीं होगा अत्याचारियों का कोई मित्र, न कोई सिफ़ारिशी, जिसकी बात मानी जाये।
वह जानता है आँखों की चोरी तथा जो (भेद) सीने छुपाते हैं।
अल्लाह ही निर्णय करेगा सत्य के साथ तथा जिन्हें वे पुकारते हैं अल्लाह के अतिरिक्त, वे कोई निर्णय नहीं कर सकते। निश्चय अल्लाह ही भली-भाँति सुनने-देखने वाला है।
क्या वह चले-फिरे नहीं धरती में, ताकि देखते कि कैसा रहा उनका परिणाम, जो इनसे पूर्व थे? वे इनसे अधिक थे बल में तथा अधिक चिन्ह छोड़ गये धरती में। तो पकड़ लिया अल्लाह ने उन्हें उनके पापों के कारण और नहीं था उनके लिए अल्लाह से कोई बचाने वाला।
ये इस कारण हुआ कि उनके पास लाते थे हमारे रसूल खुली निशानियाँ, तो उन्होंने कुफ़्र किया। अन्ततः, पकड़ लिया उन्हें अल्लाह ने। वस्तुतः, वह अति शक्तिशाली, घोर यातना देने वाला है।
तथा हमने भेजा मूसा को अपनी निशानियों और हर प्रकार के प्रमाण के साथ।
फ़िरऔन और (उसके मंत्री) हामान तथा क़ारून के पास। तो उन्होंने कहाः ये तो बड़ा झूठा जादूगर है।
तो जब वह उनके पास सत्य लाया हमारी ओर से, तो सबने कहाः वध कर दो उनके पुत्रों को, जो ईमान लोये हैं उसके साथ तथा जीवित रहने दो उनकी स्त्रियों को और काफ़िरों का षड्यंत्र निष्फल (व्यर्थ) ही हुआ।[1]
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1. अर्थात फ़िरऔन और उस की जाति का। जब मूसा (अलैहिस्सलाम) और उन की जाति बनी इस्राईल को कोई हानि नहीं हुई। इस से उन की शक्ति बढ़ती ही गई यहाँ तक कि वह पवित्र स्थान के स्वामी बन गये।
और कहा फ़िरऔन ने (अपने प्रमुखों सेः) मुझे छोड़ो, मैं वध कर दूँ मूसा को और उसे चाहिये कि पुकारे अपने पालनहार को। वास्तव में, मैं डरता हूँ कि वह बदल देगा तुम्हारे धर्म[1] को अथवा पैदा कर देगा इस धरती (मिस्र) में उपद्रव।
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1. अर्थात शिर्क तथा देवी-देवता की पूजा से रोक कर एक अल्लाह की इबादत में लगा देगा। जो उपद्रव तथा अशान्ति का कारण बन जायेगा और देश हमारे हाथ से निकल जायेगा।
तथा मूसा ने कहाः मैंने शरण ली है अपने पालनहार तथा तुम्हारे पालनहार की प्रत्येक अहंकारी से, जो ईमान नहीं रखता ह़िसाब के दिन पर।
तथा कहा एक ईमान वाले व्यक्ति ने फ़िरऔन के घराने के, जो छुपा रहा था अपना ईमानः क्या तुम वध कर दोगे एक व्यक्ति को कि वह कह रहा हैः मेरा पालनहार अल्लाह है? जबकि वह तुम्हारे पास लाया है खुली निशानियाँ तुम्हारे पालनहार की ओर से? और यदि वह झूठा हो, तो उसी के ऊपर है उनका झूठ और यदि सच्चा हो, तो आ पड़ेगा वह कुछ, जिसकी तुम्हें धमकी दे रहा है। वास्तव में, अल्लाह मार्गदर्शन नहीं देता उसे, जो उल्लंघनकारी बहुत झूठा हो।
हे मेरी जाति के लोगो! तुम्हारा राज्य है आज, तुम प्रभावशाली हो धरती में, तो कौन हमारी रक्षा करेगा अल्लाह की यातना से, यदि वह हमपर आ जाये? फ़िरऔन ने कहाः मैं तुम सब को वही समझा रहा हूँ, जिसे मैं उचित समझता हूँ और तुम्हें सीधी ही राह दिखा रहा हूँ।
तथा उसने कहा, जो ईमान लायाः हे मेरी जाति! मैं तुमपर डरता हूँ (अगले) समुदायों के दिन जैसे (दिन)[1] से।
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1. अर्थात उन की यातना के दिन जैसे दिन से।
नूह़ की जाति की जैसी दशा से तथा आद और समूद की एवं जो उनके पश्चात् हुए तथा अल्लाह नहीं चाहता कोई अत्याचार भक्तों के लिए।
तथा हे मेरी जाति! मैं डर रहा हूँ तुमपर, एक-दूसरे को पुकारने के दिन[1] से।
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1. अर्थात प्रलय के दिन से जब भय के कारण एक-दूसरे को पुकारेंगे।
जिस दिन तुम पीछे फिरकर भागोगे, नहीं होगा तुम्हें अल्लाह से कोई बचाने वाला तथा जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई पथ पर्दर्शक नहीं।
तथा आये यूसुफ़ तुम्हारे पास इससे पूर्व खुले प्रमाणों के साथ, तो तुम बराबर संदेह में रहे उससे, जो तुम्हारे पास लाये। यहाँतक कि जब वे मर गये, तो तुमने कहा कि कदापि नहीं भेजेगा अल्लाह उनके पश्चात् कोई रसूल।[1] इसी प्रकार अल्लाह कुपथ कर देता है उसे, जो उल्लंघनकारी डाँवाडोल हो।
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1. अर्थात तुम्हारा आचरण ही प्रत्येक नबी का विरोध रहा है। इसी लिये तुम समझते थे कि अब कोई रसूल नहीं आयेगा।
जो झगड़ते हैं अल्लाह की आयतों में, बिना किसी ऐसे प्रमाण के, जो उनके पास आया हो। तो ये बड़े क्रोध की बात है अल्लाह के समीप तथा उनके समीप, जो ईमान लाये हैं। इसी प्रकार, अल्लाह मुहर लगा देता है प्रत्येक अहंकारी अत्याचारी के दिल पर।
तथा कहा फ़िरऔन ने कि हे हामान! मेरे लिए बना दो एक उच्च भवन, संभवतः मैं उन मार्गों तक पहुच सकूँ।
आकाश के मार्गों तक, मैं देखूँ मूसा के पूज्य (उपास्य) को और निश्चय मैं उसे झूठा समझ रहा हूँ और इसी प्रकार, शोभनीय बना दिया गया फ़िरऔन के लिए उसका दुष्कर्म तथा रोक दिया गया संमार्ग से और फ़िरऔन का षड्यंत्र विनाश ही में रहा।
तथा उसने कहा जो ईमान लायाः हे मेरी जाति! मेरी बात मानो, मैं तुम्हें सीधी राह बता रहा हूँ।
हे मेरी जाति! ये सांसारिक जीवन कुछ साम्यिक लाभ है तथा वास्तव में, परलोक ही स्थायी निवास है।
जिसने दुष्कर्म किया, तो उसे उसी के समान प्रतिकार दिया जायेगा तथा जो सुकर्म करेगा; नर अथवा नारी में से और वह ईमान वाला (एकेश्वरवादी) हो, तो वही प्रवेश करेंगे स्वर्ग में। जीविका दिये जायेंगे उसमें अगणित।
तथा हे मेरी जाति! क्या बात है कि मैं बुला रहा हूँ तुम्हें मुक्ति की ओर तथा तुम बुला रहे हो मुझे नरक की ओर?
तुम मुझे बुला रहे हो, ताकि मैं कुफ़्र करूँ अल्लाह के साथ और साझी बनाऊँ उसका उसे, जिसका मुझे कोई ज्ञान नहीं है तथा मैं बुला रहा हूँ तुम्हें, प्रभावशाली, अति क्षमी की ओर।
निश्चित है कि तुम जिसकी ओर मूझे बुला[1] रहे हो, वह पुकारने योग्य नहीं है, न लोक में, न परलोक में तथा हमें जाना है अल्लाह ही की ओर तथा वास्तव में, अतिक्रमी ही नारकी हैं।
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1. क्योंकि लोक तथा परलोक में कोई सहायता नही कर सकते। (देखियेः सूरह फ़ातिर, आयतः140, तथा सूरह अह़्क़ाफ़, आयतः 5)
तो तुम याद करोगे, जो मैं कह रहा हूँ तथा मैं समर्पित करता हूँ अपना मामला अल्लाह को। वास्तव में, अल्लाह देख रहा है भक्तों को।
तो अल्लाह ने उसे सुरक्षित कर दिया, उनके षड्यंत्र की बुराईयों से और घेर लिया फ़िरऔनियों को बुरी यातना ने।
वे[1] प्रस्तुत किये जाते हैं अग्नि पर, प्रातः तथा संध्या तथा जिस दिन प्रलय स्थापित होगी, (ये आदेश होगा) कि डाल दो फ़िरऔनियों को कड़ी यातना में।
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1. ह़दीस में है कि जब तुम में से कोई मरता है तो (क़ब्र में) उस पर प्रातः संध्या उस का स्थान प्रस्तुत किया जाता है। (अर्थात स्वार्गी है तो स्वर्ग और नारकी है तो नरक)। और कहा जाता है कि यही प्रलय के दिन तेरा स्थान होगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 1379, मुस्लिमः 2866)
तथा जब वे झगड़ेंगे अग्नि में, तो कहेंगे निर्बल उनसे, जो बड़े बनकर रहेः हम तुम्हारे अनुयायी थे, तो क्या तुम, दूर करोगे हमसे अग्नि का कुछ भाग?
वे कहेंगे, जो बड़े बनकर रहेः हमसब इसीमें हैं। अल्लाह निर्णय कर चुका है भक्तों (बंदों) के बीच।
तथा कहेंगे जो अग्नि में हैं, नरक के रक्षकों सेः अपने पालनहार से प्रार्थना करो कि हमसे हल्की कर दे किसी दिन, कुछ यातना।
वे कहेंगेः क्या नहीं आये तुम्हारे पास, तुम्हारे रसूल, खुले प्रमाण लेकर? वे कहेंगेः क्यों नहीं? वे कहेंगेः तो तुम ही प्रार्थना करो और काफ़िरों की प्रार्थना व्यर्थ ही होगी।
निश्चय हम सहायता करेंगे अपने रसूलों की तथा उनकी, जो ईमान लायें, सांसारिक जीवन में तथा जिस दिन[1] साक्षी खड़े होंगे।
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1. अर्थात प्रलय के दिन, जब अम्बिया और फ़रिश्ते गवाही देंगे।
जिस दिन नहीं लाभ पहुँचायेगी अत्याचारियों को उनकी क्षमा याचना तथा उन्हीं के लिए धिक्कार और उन्हीं के लिए बुरा घर है।
तथा हमने प्रदान किया मूसा को मार्गदर्शन और हमने उत्तराघिकारी बनाया इस्राईल की संतान को पुस्तक (तौरात) का।
जो मार्गदर्शन तथा शिक्षा थी समझ वालों के लिए।
तो (हे नबी!) आप धैर्य रखें। वास्तव में, अल्लाह का वचन[1] सत्य है तथा क्षमा माँगें अपने पाप[2] की तथा पवित्रता का वर्णन करते रहें अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ, संध्या और प्रातः।
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1. नबियों की सहायता करने का। 2. अर्थात भूल-चूक की। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः मैं दिन में 70 बार क्षमा माँगता हूँ। और 70 बार से अधिक तौबा करता हूँ। (सह़ीह़ बुफ़ारीः 6307) जब कि अल्लाह ने आप को निर्दोष (मासूम) बनाया है।
वास्तव में, जो झगड़ते हैं अल्लाह की आयतों में, बिना किसी प्रमाण के, जो आया[1] हो उनके पास, तो उनके दिलों में बड़ाई के सिवा कुछ नहीं है, जिस तक वे पहुचने वाले नहीं हैं। अतः, आप अल्लाह की शरण लें। वास्तव में, वही सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
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1. अर्थात बिना किसी ऐसे प्रमाण के जो अल्लाह की ओर से आया हो। उन के सब प्रमाण वे हैं जो उन्हों ने अपने पूर्वजों से सीखे हैं। जिन की कोई वास्तविक्ता नहीं है।
निश्चय आकाशों तथा धरती को पैदा करना, अधिक बड़ा है, मनुष्य को पैदा करने से। परन्तु, अधिक्तर लोग ज्ञान नहीं रखते।[1]
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1. और मनुष्य के पुनः जीवित किये जाने का इन्कार करते हैं।
तथा समान नहीं होता अंधा तथा आँख वाला और न जो ईमान लाये और सत्कर्म किये हैं और दुष्कर्मी। तुम (बहुत) कम ही शिक्षा ग्रहण करते हो।
निश्चय, प्रलय आनी ही है। जिसमें कोई संदेह नहीं। परन्तु, अधिक्तर लोग ईमान (विश्वास) नहीं रखते।
तथा कहा है तुम्हारे पालनहार ने कि मुझीसे प्रार्थना[1] करो, मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करूँगा। वास्तव में, जो अभिमान (अहंकार) करेंगे मेरी इबादत (वंदना-प्रार्थना) से, तो वे प्रवेश करेंगे नरक में अपमानित होकर।
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1. ह़दीस में है कि प्रार्थना ही वंदना है। फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने यही आयत पढ़ी। (तिर्मिज़ीः 2969) इस ह़दीस की सनद ह़सन है।
अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए रात्रि बनाई, ताकि तुम विश्राम करो उसमें तथा दिन को प्रकाशमान बनाया।[1] वस्तुतः, अल्लाह बड़ा उपकारी है लोगों के लिए। किन्तु, अधिक्तर लोग कृतज्ञ नहीं होते।
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1. ताकि तुम जीविका प्राप्त करने के लिये दौड़-धूप करो।
यही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, प्रत्येक वस्तु का रचयिता, उत्पत्तिकार। नहीं है कोई ( सच्चा) वंदनीय उसके सिवा, फिर तुम कहाँ बहके जाते हो?
इसी प्रकार, बहका दिये जाते हैं वे, जो अल्लाह की आयतों को नकारते हैं।
अल्लाह ही है, जिसने बनाया तुम्हारे लिए धरती को निवास स्थान तथा आकाश को छत और तुम्हारा रूप बनाया, तो सुन्दर रूप बनाया तथा तुम्हें जीविका प्रदान की स्व्छ चीज़ों से। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है, तो शुभ है अल्लाह, सर्वलोक का पालनहार।
वह जीवित है, कोई ( सच्चा) वंदनीय नहीं है, उसके सिवा। अतः, विशेष रूप से उसकी इबादत करते हुए उसी को पुकारो। सब प्रशंसा सर्वलोक के पालनहार, अल्लाह के लिए हैं।
आप कह दें: निश्चय मुझे रोक दिया गया है कि इबादत करूँ उनकी, जिन्हें तुम पुकारते हो अल्लाह के सिवा, जब आ गये मेरे पास खुले प्रमाण तथा मुझे आदेश दिया गया है कि मैं सर्वलोक के पालनहार का आज्ञाकारी रहूँ।
वही है, जिसने तुम्हें पैदा किया मिट्टी से, फिर वीर्य से, फिर बंधे रक्त से, फिर तुम्हें निकालता है (गर्भाशयों से) शिशु बनाकर। फिर बड़ा करता है, ताकि तुम अपनी पूरी शक्ति को पहुँचो। फिर बूढ़े हो जाओ तथा तुममें कुछ इससे पहले ही मर जाते हैं और ये इसलिए होता है, ताकि तुम अपनी निश्चित आयु को पहुँच जाओ तथा ताकि तुम समझो।[1]
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1. अर्थात तुम यह समझो कि जो अल्लाह तुम्हें अस्तित्व में लाता है तथा गर्भ से ले कर आयु पूरी होने तक तुम्हारा पालन-पोषण करता है तुम स्वयं अपने जीवन और मरण के विषय में कोई अधिकार नहीं रखते तो फिर तुम्हें वंदना भी उसी एक की करनी चाहिये। यही समझ-बूझ का निर्णय है।
वही है, जो तुम्हें जीवन देता तथा मारता है, फिर जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है, तो कहता हैः "हो जा", तो वह हो जाता है।
क्या आपने नहीं देखा कि जो झगड़ते[1] हैं अल्लाह की आयतों में, वे कहाँ बहकाये जा रहे हैं?
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1. अर्थात अल्लाह की आयतों का विरोध करते हैं।
जिन्होंने झुठला दिया पुस्तक को और उसे, जिसके साथ हमने भेजा अपने रसूलों को, तो शीघ्र ही वे जान लेंगे।
जब तौक़ होंगे उनके गलों में तथा बेड़ियाँ, वे खींचे जायेंगे।
खौलते पानी में, फिर अग्नि में झोंक दिये जायेंगे।
फिर कहा जायेगा उनसेः कहाँ हैं वे, जिन्हें तुम साझी बना रहे थे।
अल्लाह के सिवा? वे कहेंगे कि वे खो गये हम से, बल्कि, हम नहीं पुकारते थे इससे पूर्व, किसी चीज़ को। इसी प्रकार, अल्लाह कुपथ कर देता है काफ़िरों को।
ये यातना इसलिए है कि तुम धरती में अवैध इतराते थे तथा इस कारण कि तुम अकड़ते थे।
प्रवेश कर जाओ नरक के द्वारों में, सदावासी होकर उसमें। तो बुरा स्थान है अभिमानियों का।
तो आप धैर्य रखें निश्चय अल्लाह का वचन सत्य है। फिर यदि आपको दिखा दें उस (यातना) में से, जिसका वचन उन्हें दे रहे हैं या आपका निधन कर दें, तो वह हमारी ओर ही फेरे जायेंगे।[1]
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1. अर्थता प्रलय के दिन। फिर वह अपनी यातना देख लेंगे।
तथा (हे नबी!) हम भेज चुके हैं बहुत-से रसूलों को आपसे पूर्व, जिनमें से कुछ का वर्णन हम आपसे कर चुके हैं तथा कुछ का वर्णन आपसे नहीं किया है तथा किसी रसूल के (वश)[1] में ये नहीं था कि वह कोई आयत (चमत्कार) ले आये, परन्तु अल्लाह की अनुमति से। फिर जब आ जायेगा अल्लाह का आदेश, तो निर्णय कर दिया जायेगा सत्य के साथ और क्षति में पड़ जायेंगे वहाँ, क्षूठे लोग।
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1. मक्का के काफ़िर लोग, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से यह माँग कर रहे थे कि आप अपने सत्य रसूल होने के प्रमाण में कोई चमत्कार दिखायें। जिस के अनेक उत्तर आगामी आयतों में दिये जा रहे हैं।
अल्लाह ही है, जिसने बनाये तुम्हारे लिए चौपाये, ताकि सवारी करो कुछ पर और कुछ को खाओ।
तथा तुम्हारे लिए उनमें बहुत लाभ हैं और ताकि तुम उनपर पहुँचो, उस आवश्यक्ता को, जो तुम्हारे[1] दिलों में है तथा उनपर और नावों पर तुम्हें सवार किया जाता है।
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1. अर्थात दूर की यात्रा करो।
तथा वह दिखाता है तुम्हें अपनी निशानियाँ। तो तुम अल्लाह की किन-किन निशानियों का इन्कार करोगे?
तो क्या वह चले-फिरे नहीं धरती में, ताकि देखते कि कैसा रहा उनका परिणाम, जो उनसे पूर्व थे? वे उनसे अधिक कड़े थे, शक्ति में और धरती में अधिक चिन्ह[1] छोड़ गये। तो नहीं आया उनके काम, जो वे कर रहे थे।
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1. अर्थात निर्माण तथा भवन इत्यादि।
जब आये उनके पास हमारे रसूल, निशानियाँ लेकर, तो वे इतराने लगे उस ज्ञान पर,[1] जो उनके पास था और घेर लिया उन्हें उसने जिसका वे उपहास कर रहे थे।
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1. अर्थात सत्यविरोधी ज्ञान।
तो जब उन्होंने देखा हमारी यातना को, तो कहने लगेः हम ईमान लाये अकेले अल्लाह पर तथा नकार दिया उसे, जिसे उसका साझी बना रहे थे।
तो ऐसा नहीं हुआ कि उन्हें लाभ पहुँचाता उनका ईमान, जब उन्होंने देख लिया हमारी यातना को। यही अल्लाह का नियम है, जो उसके भक्तों में चला आ रहा है और क्षति में पड़ गये यहीं काफ़िर।
سورة غافر
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سورةُ (غافرٍ) من السُّوَر المكِّية، بُدِئت بعد حمدِ الله بإثبات صفةِ المغفرة له عزَّ وجلَّ، ولا تكون مغفرةٌ إلا عن عِزَّةٍ وعلم وقدرة، فأثبتت هذه السورة كثيرًا من صفاتِ الكمال لله عزَّ وجلَّ، كما أظهرت قُدْرتَه عزَّ وجلَّ على العقاب؛ فالله غافرُ الذَّنب وقابلُ التَّوب، لكنه شديدُ العقاب، كما جاءت السورةُ على حُجَجِ المشركين وأدحضَتْها، ودعَتْ إلى الإيمان بالله ورسوله صلى الله عليه وسلم؛ فالله ناصرٌ دِينَه، ومُعْلٍ كتابَه.

ترتيبها المصحفي
40
نوعها
مكية
ألفاظها
1226
ترتيب نزولها
60
العد المدني الأول
84
العد المدني الأخير
84
العد البصري
82
العد الكوفي
85
العد الشامي
86

* سورة (غافرٍ):

سُمِّيت سورةُ (غافرٍ) بهذا الاسم؛ لورود هذه الصفةِ لله في أوَّل السورة.

1. صفات الله تعالى (١-٣).

2. نشاط المشركين العقليُّ ضد الرسول صلى الله عليه وسلم (٤-٦).

3. إعانة المسلمين للتصدي للمشركين (٧-٩).

4. مصير المشركين، وندَمُهم (١٠-١٢).

5. صفاته تعالى، وإفراده بالعبادة (١٣-١٧).

6. يوم الفصل، وأحوالُ الناس فيه (١٨-٢٢).

7. صور من مسيرة الدعاة (٢٣-٢٧).

8. مؤمن آل فرعون (٢٨-٤٥).

9. حُجَجٌ تدعو إلى الإيمان (٢٨-٢٩).

10. نماذجُ تطبيقية (٣٠-٣٤).

11. حُجَج المشركين الداحضةُ (٣٥- ٣٧).

12. حُجَجٌ تستوجب التوبةَ والإيمان (٣٨-٤٥).

13. ندمُ المشركين على كفرهم، وعذابُهم (٤٥-٥٠).

14. عهدٌ من الله لنصرِ المؤمنين (٥١-٥٥).

15. أسباب تمسُّك المشركين بشِرْكِهم (٥٦-٥٩).

16. توجيه المؤمنين لتوثيق رأيِهم بالسُّنَن الكونية (٦٠- ٦٨).

17. وعيدٌ للمشركين بمصيرهم الأُخْروي (٦٩-٧٧).

18. وعد الرسول بالانتصار له، وضربُ الأمثلة من الواقع (٧٨-٨٥).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (6 /530).

مقصودُها بيانُ اتصافِ الله عزَّ وجلَّ بالعِزَّة الكاملة والعلمِ الشامل، ومغفرتِه لمن يشاء من عباده؛ فإنه لا يَقدِر على غفران ما يشاء لكل من يشاء إلا كاملُ العِزَّة، ولا يَعلَم جميعَ الذُّنوب ليسمى غافرًا لها إلا بالغُ العلم.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /435).