ترجمة سورة القلم

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة القلم باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

नून और शपथ है लेखनी (क़लम) की तथा उसकी[1] जिसे वो लिखते हैं।
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1. अर्थात क़ुर्आन की। जिसे उतरने के साथ ही नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) लेखकों से लिखवाते थे। जैसे ही कोई सूरह या आयत उतरती, लेखक क़लम तथा चमड़ों और झिल्लियों के साथ उपस्थित हो जाते थे, ताकि पूरे संसार के मनुष्यों को क़र्आन अपने वास्तविक रूप में पहुँच सके। और सदा के लिये सुरक्षित हो जाये। क्योंकि अब आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पश्चात् कोई नबी और कोई पुस्तक नहीं आयेगी। और प्रलय तक के लिये अब पूरे संसार के नबी आप ही हैं। और उन के मार्ग दर्शन के लिये क़ुर्आन ही एकमात्र धर्म पुस्तक है। इसी लिये इसे सुरक्षित कर दिया गया है। और यह विशेषता किसी भी आकाशीय ग्रन्थ को प्राप्त नहीं है। इस लिये अब मोक्ष के लिये अन्तिम नबी तथा अन्तिम धर्म ग्रन्थ क़ुर्आन पर ईमान लाना अनिवार्य है।
नहीं है आप, अपने पालनहार के अनुग्रह से पागल।
तथा निश्चय प्रतिफल (बदला) है आपके लिए अनन्त।
तथा निश्चय ही आप बड़े सुशील हैं।
तो शीघ्र आप देख लेंगे तथा वे (काफ़िर भी) देख लेंगे।
कि पागल कौन है।
वास्तव में, आपका पालनहार ही अधिक जानता है उसे, जो कुपथ हो गया उसकी राह से और वही अधिक जानता है उन्हें, जो सीधी राह पर हैं।
तो आप बात न मानें झुठलाने वालों की।
वे चाहते हैं कि आप ढीले हो जायें, तो वे भी ढीले हो[1] जायें।
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1. जब काफ़िर, इस्लाम के प्रभाव को रोकने में असफल हो गये तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को धमकी और लालच देने के पश्चात्, कुछ लो और कुछ दो की नीति पर आ गये। इस लिये कहा गया कि आप उन की बातों में न आयें। और परिणाम की प्रतीक्षा करें।
और बात न मानें[1] आप किसी अधिक शपथ लेने वाले, हीन व्यक्ति की।
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1. इन आयतों में किसी विशेष काफ़िर की दशा का वर्णन नहीं बल्कि काफ़िरों के प्रमुखों के नैतिक पतन तथा कुविचारों और दुराचारों को बताया गया है जो लोगों को इस्लाम के विरुध्द उकसा रहे थे। तो फिर क्या इन की बात मानी जा सकती है?
जो व्यंग करने वाला, चुगलियाँ खाता फिरता है।
भलाई से रोकने वाला, अत्याचारी, बडा पापी है।
घमंडी है और इसके पश्चात् कुवंश (वर्ण संकर) है।
इसलिए कि वह धन तथा पुत्रों वाला है।
जब पढ़ी जाती है उसपर हमारी आयतें, तो कहता हैः ये पूर्वजों की कल्पित कथायें हैं।
शीघ्र ही हम दाग़ लगा देंगे उसके सूंड[1] पर।
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1. अर्थात नाक पर जिसे वह घमंड से ऊँची रखना चाहता है। और दाग़ लगाने का अर्थ अपमानित करना है।
निःसंदेह, हमने उन्हें परीक्षा में डाला[1] है, जिस प्रकार बाग़ वालों को परीक्षा में डाला था। जब उन्होंने शपथ ली कि अवश्य तोड़ लेंगे उसके फल भोर होते ही।
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1. अर्थात मक्का वालों को। इस लिये यदि वह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लायेंगे तो उन पर सफलता की राह खुलेगी। अन्यथा संसार और परलोक दोनों की यातना के भागी होंगे।
और इन् शा अल्लाह (यदि अल्लाह ने चाहा) नहीं कहा।
तो फिर गया उस बाग़ पर एक कुचक्र, आपके पालनहार की ओर से और वे सोये हुए थे।
तो वह हो गया जैसे उजाड़ खेती हो।
अब वे एक-दूसरे को पुकारने लगे भोर होते हीः
कि तड़के चलो अपनी खेती पर, यदि फल तोड़ने हैं।
फिर वे चल दिये आपस में चुपके-चुपके बातें करते हुए।
कि कदापि न आने पाये उस (बाग़) के भीतर आज तुम्हारे पास कोई निर्धन।[1]
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1. ताकि उन्हें कुछ दान न करना पड़े।
और प्रातः ही पहुँच गये कि वे फल तोड़ सकेंगे।
फिर जब उसे देखा तो कहाः निश्चय हम राह भूल गये।
बल्कि हम वंचित हो[1] गये।
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1. पहले तो सोचा कि राह भूल गये हैं। किन्तु फिर देखा कि बाग़ तो उन्हीं का है तो कहा कि यह तो ऐसा उजाड़ हो गया है कि अब कुछ तोड़ने के लिये रह ही नहीं गया है। वास्तव में यह हमारा दुर्भाग्य है।
तो उनमें से बिचले भाई ने कहाः क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि तुम (अल्लाह की) पवित्रता का वर्णन क्यों नहीं करते?
वे कहने लगेः पवित्र है हमारा पालनहार! वास्तव में, हम ही अत्याचारी थे।
फिर सम्मुख हो गये, एक-दूसरे की निन्दा करते हुए।
कहने लगेः हाय अफ़्सोस! हम ही विद्रोही थे।
संभव है हमारा पालनहार हमें बदले में प्रदान करे इससे उत्तम (बाग)। हम अपने पालनहार ही की ओर रूचि रखते हैं।
ऐसे ही यातना होती है और आख़िरत (परलोक) की यातना इससे भी बड़ी है। काश वे जानते!
निःसंदेह, सदाचारियों के लिए उनके पालनहार के पास सुखों वाले स्वर्ग हैं।
क्या हम आज्ञाकारियों[1] को पापियों के समान कर देंगे?
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1. मक्का के प्रमुख कहते थे कि यदि प्रलय हुई तो वहाँ भी हमें यही संसारिक सुख-सुविधा प्राप्त होगी। जिस का खण्डन इस आयत में किया जा रहा है। अभिप्राय यह है कि अल्लाह के यहाँ देर है परन्तु अंधेर नहीं है।
तुम्हें क्या हो गया है? तुम कैसा निर्णय कर रहे हो?
क्या तुम्हारे पास कोई पुस्तक है, जिसमें तुम पढ़ते हो?
कि तुम्हें वही मिलेगा, जो तुम चाहोगे?
या तुमने हमसे शपथें ले रखी हैं, जो प्रलय तक चली जायेंगी कि तुम्हें वही मिलेगा जिसका तुम निर्णय करोगे?
आप उनसे पूछिये कि उनमें कौन इसकी ज़मानत लेता है?
क्या उनके कुछ साझी हैं? फिर तो वे अपने साझियों को लायें,[1] यदि वे सच्चे हैं।
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1. ताकि वह उन्हें अच्छा स्थान दिला दें।
जिस दिन पिंडली खोल दी जायेगी और वह बुलाये जायेंगे सज्दा करने के लिए, तो (सज्दा) नहीं कर सकेंगे।[1]
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1. ह़दीस में है कि प्रलय के दिन अल्लाह अपनी पिंडली खोलेगा तो प्रत्येक मोमिन पुरुष तथा स्त्री सज्दे में गिर जायेंगे। हाँ वह शेष रह जायेंगे जो दिखावे और नाम के लिये (संसार में) सज्दे किया करते थे। वह सज्दा करना चाहेंगे परन्तु उन की रीढ़ की हड्डी तख्त के समान बन जायेगी। जिस के कारण उन के लिये सज्दा करना असंभव हो जायेगा। (बुख़ारीः 4919)
उनकी आँखें झुकी होंगी और उनपर अपमान छाया होगा। वे (संसार में) सज्दा करने के लिए बुलाये जाते रहे जबकि वे स्वस्थ थे।
अतः, आप छोड़ दें मुझे तथा उन्हें, जो झुठला रहे हैं इस बात (क़ुर्आन) को, हम उन्हें धीरे-धीरे खींच लायेंगे,[1] इस प्रकार कि उन्हें ज्ञान भी नहीं होगा।
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1. अर्थात उन के बुरे परिणाम की ओर।
तथा हम उन्हें अवसर दे रहे हैं।[1] वस्तुतः, हमारा उपाय सुदृढ़ है।
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1. अर्थात् संसारिक सुख-सुविधा में मग्न रखेंगे। फिर अन्ततः वह यातना में ग्रस्त हो जायेंगे।
तो क्या आप माँग कर रहे हैं किसी पारिश्रमिक[1] की, तो वे बोझ से दबे जा रहे हैं।
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1. अर्थात धर्म के प्रचार पर।
या उनके पास ग़ैब का ज्ञान है, जिसे वे लिख[1] रहे हैं?
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1. या ''लौह़े मह़फ़ूज़'' (सुरक्षित पुस्तक) उन के अधिकार में है इस लिये आप का आज्ञा पालन नहीं करते और उसी से ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं?
तो आप धैर्य रखें अपने पालनहार के निर्णय तक और न हो जायें मछली वाले के समान।[1] जब उसने पुकारा और वह शोकपूर्ण था।
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1. इस से अभिप्राय यूनुस (अलैहिस्सलाम) हैं जिन को मछली ने निगल लिया था। (देखियेः सूरह साफ़्फ़ात, आयतः139)
और यदि न पा लेती उसे उसके पालनहार की दया, तो वह फेंक दिया जाता बंजर में और वह बुरी दशा में होता।
फिर चुन लिया उसे उसके पालनहार ने और बना दिया उसे सदाचारियों में से।
और ऐसा लगता है कि जो काफ़िपर हो गये, वे अवश्य फिसला देंगे आपको अपनी आँखों से (घूर कर) जब वे सुनते हों क़ुर्आन को तथा कहते हैं कि वह अवशय् पागल है।
जबकि ये क़ुर्आन तो बस एक[1] शिक्षा है, पूरे संसार वासियों के लिए।
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1. इस में यह बताया गया है कि क़ुर्आन केवल अरबों के लिये नहीं, संसार के सभी देशों और जातियों की शिक्षा के लिये उतरा है।
سورة القلم
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سورة (القَلَم) من السُّوَر المكية، وقد جاءت ببيانِ إعجاز هذا الكتاب للكفار، وتأكيدِ صدقِ نبوَّة مُحمَّد صلى الله عليه وسلم، وما جاء به من عندِ الله؛ فلن يستطيع الكفارُ أن يأتوا بمثل هذه الحروف أبدًا، وفي ذلك تسليةٌ للنبي صلى الله عليه وسلم، وتثبيت له، وخُتمت بتخويفِ الكفار من بطشِ الله، وتوصيةِ النبي صلى الله عليه وسلم بالصبر.

ترتيبها المصحفي
68
نوعها
مكية
ألفاظها
301
ترتيب نزولها
2
العد المدني الأول
52
العد المدني الأخير
52
العد البصري
52
العد الكوفي
52
العد الشامي
52

* سورة (القلم):

سُمِّيت سورة (القلم) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بقَسَمِ الله بـ(القلم).

* سورة {نٓ}:

وسُمِّيت بهذا الاسم؛ لافتتاحها بهذا الحرفِ {نٓ}.

1. بيان رِفْعة قَدْرِ النبي عليه السلام (١-٧).

2. تحقير شأن الكافرين، وذمُّهم (٨-١٦).

3. قصة أصحاب الجنَّة (١٧-٣٣).

4. جزاء المؤمنين، وأسئلة إقناعية للكافرين (٣٤-٤٣).

5. تخويف الكفار من بطشِ الله، وتوصية النبي صلى الله عليه وسلم بالصبر (٤٤ -٥٢).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (8 /292).

 تَحدِّي الكفار والمعانِدين بهذا الكتاب، والدلالةُ على عجزِهم عن الإتيان بمثل سُوَرِه، وإبطالُ مطاعنِ المشركين في النبي صلى الله عليه وسلم، وإثباتُ صدقِه، ومن ثم تسليةُ الله له وتثبيته.

ينظر: "التحرير والتنوير" لابن عاشور (29 /58).