ترجمة سورة الحاقة

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة الحاقة باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

जिसका होना सच है।
वह क्या है, जिसका होना सच है?
तथा आप क्या जानें कि क्या है, जिसका होना सच है?
झुठलाया समूद तथा आद (जाति) ने अचानक आ पड़ने वाली (प्रलय) को।
फिर समूद, तो वे ध्वस्त कर दिये गये अति कड़ी ध्वनि से।
तथा आद, तो वे ध्वस्त कर दिये गये एक तेज़ शीतल आँधी से।
लगाये रखा उसे उनपर सात रातें और आठ दिन निरन्तर, तो आप देखते कि वे जाति उसमें ऐसे पछाड़ी हुई है, जैसे खजूर के खोखले तने।[1]
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1. उन के भारी और लम्बे होने की उपमा खजूर के तने से दी गई है।
तो क्या आप देखते हैं कि उनमें कोई शेष रह गया है?
और किया यही पाप फ़िरऔन ने और जो उसके पूर्व थे तथा जिनकी बस्तियाँ औंधी कर दी गयीं।
उन्होंने नहीं माना अपने पालनहार के रसूल को। अन्ततः, उसने पकड़ लिया उन्हें, कड़ी पकड़।
हमने, जब सीमा पार कर गया जल, तो तुम्हें सवार कर दिया नाव[1] में।
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1. इस में नूह़ (अलैहिस्सलाम) के तूफ़ान की ओर संकेत है। और सभी मनुष्य उन की संतान हैं इस लिये यह दया सब पर हुई है।
ताकि हम बना दें उसे तुम्हारे लिए एक शिक्षाप्रद यादगार और ताकि सुरक्षित रख लें इसे सुनने वाले कान।
फिर जब फूँक दी जायेगी सूर (नरसिंघा) में एक फूँक।
और उठाया जायेगा धरती तथा पर्वतों को, तो दोनों चूर-चूर कर दिये जायेंगे[1] एक ही बार में।
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1. दोखियेः सूरह ताहा, आयतः 20, आयतः103, 108)
तो उसी दिन होनी हो जायेगी।
तथा फट जायेगा आकाश, तो वह उस दिन क्षीण निर्बल हो जायेगा।
और फ़रिश्ते उसके किनारों पर होंगे तथा उठाये होंगे आपके पालनहार के अर्श (सिंहासन) को अपने ऊपर उस दिन, आठ फ़रिश्ते।
उस दिन तुम अल्लाह के पास उपस्थित किये जाओगे, नहीं छुपा रह जायेगा तुममें से कोई।
फिर जिसे दिया जायेगा उसका कर्मपत्र दायें हाथ में, वह कहेगाः ये लो मेरा कर्मपत्र पढ़ो।
मुझे विश्वास था कि मैं मिलने वाला हूँ अपने ह़िसाब से।
तो वह अपने मन चाहे सुख में होगा।
उच्च श्रेणी के स्वर्ग में।
जिसके फलों के गुच्छे झुक रहे होंगे।
(उनसे कहा जायेगाः) खाओ तथा पियो आनन्द लेकर उसके बदले, जो तुमने किया है विगत दिनों (संसार) में।
और जिसे दिया जायेगा उसका कर्मपत्र उसके बायें हाथ में, तो वह कहेगाः हाय! मुझे मेरा कर्मपत्र दिया ही न जाता!
तथा मैं न जानता कि क्या है मेरा ह़िसाब!
काश मेरी मौत ही निर्णायक[1] होती!
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1. अर्थात उस के पश्चात् मैं फिर जीवित न किया जाता।
नहीं काम आया मेरा धन।
मुझसे समाप्त हो गया, मेरा प्रभुत्व।[1]
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1. इस का दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि परलोक के इन्कार पर जितने तर्क दिया करता था आज सब निष्फल हो गये।
(आदेश होगा कि) उसे पकड़ो और उसके गले में तौक़ डाल दो।
फिर नरक में उसे झोंक दो।
फिर उसे एक जंजीर जिसकी लम्बाई सत्तर गज़ है, में जकड़ दो।
वह ईमान नहीं रखता था महिमाशाली अल्लाह पर।
और न प्रेरणा देता था दरिद्र को भोजन कराने की।
अतः, नहीं है उसका आज यहाँ कोई मित्र।
और न कोई भोजन, पीप के सिवा।
जिसे पापी ही खायेंगे।
तो मैं शपथ लेता हूँ उसकी, जो तुम देखते हो।
तथा जो तुम नहीं देखते हो।
निःसंदेह, ये (क़ुर्आन) आदरणीय रसूल का कथन[1] है।
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1. यहाँ आदरणीय रसूल से अभिप्राय मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं। तथा सूरह तक्वीर आयतः 19 में फ़रिश्ते जिब्रील (अलैहिस्सलाम) जो वह़्यी लाते थे वह अभिप्राय हैं। यहाँ क़ुर्आन को आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन इस अर्थ में कहा गया है कि लोग उसे आप से सुन रहे थे। और इसी प्रकार आप जिब्रील (अलैहिस्सलाम) से सुन रहे थे। अन्यथा वास्तव में क़ुर्आन अल्लाह ही का कथन है जैसा कि आगामी आयतः 43 में आ रहा है।
और वह किसी कवि का कथन नहीं है। तुम लोग कम ही विश्वास करते हो।
और न वह किसी ज्योतिषी का कथन है, तुम कम की शिक्षा ग्रहण करते हो।
सर्वलोक के पालनहार का उतारा हुआ है।
और यदि इसने (नबी ने) हमपर कोई बात बनाई[1] होती।
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1. इस आयत का भावार्थ यह कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को अपनी ओर से वह़्यी (प्रकाशना) में कुछ अधिक या कम करने का अधिकार नहीं है। यदि वह ऐसा करेंगे तो उन्हें कड़ी यातना दी जायेगी।
तो अवश्य हम पकड़ लेते उसका सीधा हाथ।
फिर अवश्य काट देते उसके गले की रग।
फिर तुममें से कोई (मुझे) उससे रोकने वाला न होता।
निःसंदेह, ये एक शिक्षा है सदाचारियों के लिए।
तथा वास्तव में हम जानते हैं कि तुममें कुछ झुठलाने वाले हैं।
और निश्चय ये पछतावे का कारण होगा काफ़िरों[1] के लिए।
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1. अर्थात जो क़ुर्आन को नहीं मानते वह अन्ततः पछतायेंगे।
वस्तुतः, ये विश्वसनीय सत्य है।
अतः, आप पवित्रता का वर्णन करें अपने महिमावान पालनहार के नाम की।
سورة الحاقة
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سورة (الحاقَّة) من السُّوَر المكية، وقد أثبتت هولَ يومِ القيامة، وتحقُّقَ وقوعه؛ ليرجعَ الكفار عن كفرهم وعنادهم، وليخافوا من هذا اليوم، لا سيما بعد أن ذكَّرهم اللهُ بما أوقَعَ من العذاب على الأُمم السابقة التي خالفت أمره فدمَّرهم تدميرًا، وأهلكهم في الدنيا قبل الآخرة، وفي ذلك تسليةٌ للنبي صلى الله عليه وسلم وتثبيتٌ له، وتأييدٌ من الله وحفظ له وللمؤمنين.

ترتيبها المصحفي
69
نوعها
مكية
ألفاظها
261
ترتيب نزولها
87
العد المدني الأول
52
العد المدني الأخير
52
العد البصري
51
العد الكوفي
52
العد الشامي
51

* سورة (الحاقَّة):

سُمِّيت سورة (الحاقة) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بهذا اللفظ، و(الحاقَّة): اسمٌ من أسماء يوم القيامة.

1. تعظيم يوم القيامة، وإهلاك المكذِّبين به (١-١٢).

2. أهوال يوم القيامة (١٣-١٨).

3. جزاء الأبرار وتكريمهم (١٩-٢٤).

4. حال الأشقياء يوم القيامة (٢٥-٣٧).

5. تعظيم القرآن، وتأكيد نزوله من عند الله (٣٨-٥٢).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (8 /320).

مقصدها تهويلُ يوم القيامة، وتهديد الكفار به؛ ليَرجعوا إلى الحقِّ، وتذكيرُهم بما حلَّ بالأمم السابقة التي عاندت وخالفت أمرَ الله من قبلِهم، وأُدمِجَ في ذلك أن اللهَ نجَّى المؤمنين من العذاب، وفي ذلك تذكيرٌ بنعمة الله على البشر؛ إذ أبقى نوعَهم بالإنجاء من الطُّوفان.

ينظر: "التحرير والتنوير" لابن عاشور (29 /111).