ترجمة سورة الزمر

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة الزمر باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

इस पुस्तक का अवतरित होना अल्लाह अति प्रभावशाली, तत्वज्ञ की ओर से है।
हमने आपकी ओर ये पुस्तक सत्य के साथ अवतरित की है। अतः, इबादत (वंदना) करो अल्लाह की शुध्द करते हुए उसके लिए धर्म को।
सुन लो! शुध्द धर्म अल्लाह ही के लिए (योग्य) है तथा जिन्होंने बना रखा है अल्लाह के सिवा संरक्षक, वे कहते हैं कि हम तो उनकी वंदना इसलिए करते हैं कि वह समीप कर देंगें हमें अल्लाह[1] से। वास्तव में, अल्लाह ही निर्णय करेगा उनके बीच जिसमें वे विभेद कर रहे हैं। वास्तव में, अल्लाह उसे सुपथ नहीं दर्शाता जो बड़ा मिथ्यावादी, कृतघ्न हो।
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1. मक्का के काफ़िर यह मानते थे कि अल्लाह ही वास्तविक पूज्य है। परन्तु वह यह समझते थे कि उस का दरबार बहुत ऊँचा है इस लिये वह इन पूज्यों को माध्यम बनाते थे। ताकि इन के द्वारा उन की प्रार्थनायें अल्लाह तक पहुँच जायें। यही बात साधारणतः मुश्रिक कहते आये हैं। इन तीन आयतों में उन के इसी कुविचार का खण्डन किया गया है। फिर उन में कुछ ऐसे थे जो समझते थे कि अल्लाह के संतान हैं। कुछ, फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्रियाँ कहते, और कुछ, नबियों (ईसा) को अल्लाह का पुत्र कहते थे। यहाँ इसी का खण्न किया गया है।
यदि अल्लाह चाहता कि अपने लिए संतान बनाये, तो चुन लेता उसमें से, जिसे पैदा करता है, जिसे चाहता। वह पवित्र है! वही अल्लाह अकेला सबपर प्रभावशाली है।
उसने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को सत्य के आधार पर। वह लपेट देता है रात्रि को दिन पर तथा दिन को रात्रि पर तथा वशवर्ती किया सूर्य और चन्द्रमा को। प्रत्येक चल रहा है, अपनी निर्धारित अवधि के लिए। सावधान! वही अत्यंत प्रभावशाली, क्षमी है।
उसने तुम्हें पैदा किया एक प्राण से, फिर बनाया उसीसे उसका जोड़ा तथा अवतरित किये तुम्हारे लिए पशुओं में से आठ जोड़े। वह पैदा करता है तुम्हें तुम्हारी माताओं के गर्भाषयों में एक रूप में, एक रूप के पश्चात्, तीन अंधेरों में, यही अल्लाह है तुम्हारा पालनहार, उसी का राज्य है। कोई ( सच्चा) वंदनीय नहीं, उसके सिवा। तो तुम कहाँ फिराये जा रहे हो?
यदि तुम कृतघ्न बनो, तो अल्लाह निस्पृह है तुमसे और वह प्रसन्न नहीं होता अपने भक्तों की कृतघ्नता से और यदि कृतज्ञता करो, तो वह प्रसन्न हो जायेगा तुमसे और नहीं बोझ उठायेगा कोई उठाने वाला दूसरों का बोझ। फिर तुम्हारे पालनहार ही की ओर तुम्हारा फिरना है। तो वह तुम्हें सूचित कर देगा तुम्हारे कर्मों से। वास्तव में, वह भली-भाँति जानने वाला है दिलों के भेदों को।
तथा जब पहुँचता है मनुष्य को कोई दुःख तो पुकारता है अपने पालनहार को, ध्यानमग्न होकर उसकी ओर। फिर जब हम उसे प्रदान करते हैं कोई सुख अपनी ओर से, तो भूल जाता है उसे, जिसके लिए वह पुकार रहा था इससे पूर्व तथा बना लेता है अल्लाह का साझी, ताकि कुपथ करे उसकी डगर से। आप कह कदें कि आनन्द ले ले अपने कुफ़्र का, थोड़ा सा। वास्तव में, तू नारकियों में है।
तो क्या जो आज्ञाकारी रहा हो रात्रि के क्षणों में सज्दा करते हुए तथा खड़ा रहकर, (और) डर रहा हो परलोक से तथा आशा रखता हो अल्लाह की दया की, आप कहें कि क्या समान हो जायेंगे जो ज्ञान रखते हों तथा जो ज्ञान नहीं रखते? वास्तव में, शिक्षा ग्रहण करते हैं मतिमान लोग ही।
आप कह दें उन भक्तों से, जो ईमान लाये तथा डरे अपने पालनहार से कि उन्हीं के लिए जिन्होंने सदाचार किये इस संसार में, बड़ी भलाई है तथा अल्लाह की धरती विस्तृत है और धैर्यवान ही अपना पूरा प्रतिफल अगणित दिये जायेंगे।
आप कह दें कि मुझे आदेश दिया गया है कि इबादत (वंदना) करूँ अल्लाह की, शुध्द करके उसके लिए धर्म को।
तथा मुझे आदेश दिया गया है कि प्रथम आज्ञाकारी हो जाऊँ।
आप कह दें: मैं डरता हूँ, यदि मैं अवैज्ञा करूँ अपने पालनहार की, एक बड़े दिन की यातना से।
आप कह दें: अल्लाह ही की इबादत (वंदना) मैं कर रहा हूँ, शुध्द करके उसके लिए अपने धर्म को।
अतः तुम इबादत (वंदना) करो जिसकी चाहो, उसके सिवा। आप कह दें: वास्तव में, क्षतिग्रस्त वही हैं, जिन्होंने क्षतिग्रस्त कर लिया स्वयं को तथा अपने परिवार को प्रलय के दिन। सावधान! यही खुली क्षति है।
उन्हीं के लिए छत्र होंगे अग्नि के, उनके ऊपर से तथा उनके नीचे से छत्र होंगे। यही है, डरा रहा है अल्लाह जिससे, अपने भक्तों को। हे मेरे भक्तो! मुझी से डरो।
जो बचे रहे ताग़ूत (असुर)[1] की पूजा से तथा ध्यानमग्न हो गये अल्लाह की ओर, तो उन्हीं के लिए शुभ सूचना है। अतः, आप शुभ सूचना सुना दें मेरे भक्तों को।
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1. अल्लाह के अतिरिक्त मिथ्या पूज्यों से।
जो ध्यान से सुनते हैं इस बात को, फिर अनुसरण करते हैं इस सर्वोत्तम बात का, तो वही हैं, जिन्हें सुपथ दर्शा दिया है अल्लाह ने तथा वही मतिमान हैं।
तो क्या जिसपर यातना की बात सिध्द हो गयी, क्या आप निकाल सकेंगे उसे, जो नरक में हैं?
किन्तु, जो अपने पालनहार से डरे, उन्हीं के लिए उच्च भवन हैं। जिनके ऊपर निर्मित भवन हैं। प्रवाहित हैं जिनमें नहरें, ये अल्लाह का वचन है और अल्लाह वचन भंग नहीं करता।
क्या तुमने नहीं देखा[1] कि अल्लाह ने उतारा आकाश से जल? फिर प्रवाहित कर दिये उसके स्रोत धरती में। फिर निकालता है उससे खेतियाँ विभिन्न रंगों की। फिर सूख जाती हैं, तो तुम देखते हो उन्हें पीली, फिर उसे चूर-चूर कर देता है। निश्चय इसमें बड़ी शिक्षा है मतिमानों के लिए।
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1. इस आयत में अल्लाह के एक नियम की ओर संकेत है जो सब में समान रूप से प्रचलित है। अर्थात वर्षा से खेती का उगना और अनेक स्थितियों से गुज़र कर नाश हो जाना। इसे मतिमानों के लिये शिक्षा कहा गया है। क्योंकि मनुष्य की भी यही दशा है। वह शिशु जन्म लेता है फिर युवक और बूढ़ा हो जाता है। और अंततः संसार से चला जाता है।
तो क्या खोल दिया हो अल्लाह ने जिसका सीना इस्लाम के लिए, तो वह एक प्रकाश पर हो अपने पालनहार की ओर से। तो विनाश है जिनके दिल कड़े हो गये अल्लाह के स्मरण से, वही खुले कुपथ में हैं।
अल्लाह ही है, जिसने सर्वोत्तम ह़दीस (क़ुर्आन) को अवतरित किया है। ऐसी पुस्तक, जिसकी आयतें मिलती-जुलती बार-बार दुहराई जाने वाली हैं। जिसे (सुनकर) खड़े हो जाते हैं उनके रूँगटे, जो डरते हैं अपने पालनहार से। फिर कोमल हो जाते हैं उनके अंग तथा दिल, अल्लाह के स्मरण की ओर। यही है अल्लाह का मार्गदर्शन, जिसके द्वारा वह संमार्ग पर लगा देता है, जिसे चाहता है और जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो उसका कोई पथदर्शक नहीं है।
तो क्या जो अपनी रक्षा करेगा अपने मुख[1] से, बुरी यातना से, प्रलय के दिन? तथा कहा जायेगा अत्याचारियों सेः चखो, जो तुम कर रहे थे।
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1. इस लिये कि उस के हाथ पीछे बंधे होंगे। वह अच्छा है या जो स्वर्ग के सुख में होगा वह अच्छा है?
झुठला दिया उन्होंने, जो इनसे पूर्व थे। तो आ गयी यातना उनके पास, जहाँ से उन्हें अनुमान (भी) न था।
तो चखा दिया अल्लाह ने उन्हें अपमान, सांसारिक जीवन में और आख़िरत (परलोक) की यातना निश्चय अत्यधिक बड़ी है। क्या ही अच्छा होता, यदि वे जानते।
और हमने मनुष्य के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण दिये हैं, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें।
अरबी भाषा में क़ुर्आन, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, ताकि वे अल्लाह से डरें।
अल्लाह ने एक उदाहरण दिया है एक व्यक्ति का, जिसमें बहुत-से परस्पर विरोधी साझी हैं तथा एक व्यक्ति पूरा एक व्यक्ति का (दास) है। तो क्या दशा में दोनों समान हो जायेंगे?[1] सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, बल्कि उनमें से अधिक्तर नहीं जानते।
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1. इस आयत में मिश्रणवादी और एकेश्वरवादी की दशा का वर्णन किया गया है कि मिश्रणवादी अनेक पूज्यों को प्रसन्न करने में व्याकूल रहता है। तथा एकेश्वरवादी शान्त हो कर केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और एक ही को प्रसन्न करता है।
(हे नबी!) निश्चय आपको मरना है तथा उन्हें भी मरना है।
फिर तुम सभी[1] प्रलय के दिन अल्लाह के समक्ष झगड़ोगे।
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1. और वहाँ तुम्हारे झगड़े का निर्णय और सब का अन्त सामने आ जायेगा। इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की मौत को सिध्द किया गया है। जिस प्रकार सूरह आले इमरान, आयतः144 में आप की मौत का प्रमाण बताया गया है।
तो उससे बड़ा अत्याचारी कौन हो सकता है जो अल्लाह पर झूठ बोले तथा सच को झुठलाये, जब उसके पास आ गया? तो क्या नरक में नहीं है, ऐसे काफ़िरों का स्थान?
तथा जो सत्य लाये[1] और जिसने उसे सच माना, तो वही (यातना से) सुरक्षित रहने वाले हैं।
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1. इस से अभिप्राय अन्तिम नबी जनाब मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हैं।
उन्हीं के लिए है, जो वह चाहेंगे उनके पालनहार के यहाँ और यही सदाचारियों का प्रतिफल है।
ताकि अल्लाह क्षमा कर दे, जो कुकर्म उन्होंने किये हैं तथा उन्हें प्रदान करे उनका प्रतिफल उनके उत्तम कर्मों के बदले, जो वे कर रहे थे।
क्या अल्लाह प्रयाप्त नहीं है अपने भक्त के लिए? तथा वह आपको डराते हैं उनसे, जो उसके सिवा हैं तथा जिसे अल्लाह कुपथ कर दे, तो नहीं है उसे कोई सुपथ दर्शाने वाला।
और जिसे अल्लाह सुपथ दर्शा दे, तो नहीं है उसे कोई कुपथ करने वाला। क्या नहीं है अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला?
और यदि आप, उनसे प्रश्न करें कि किसने पैदा किया है आकाशों तथा धरती को? तो वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ने। आप कहिये कि तुम बताओ, जिसे तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, यदि अल्लाह मुझे कोई हानि पहुँचाना चाहे, तो क्या ये उसकी हानि दूर कर सकता हैं? अथवा मेरे साथ दया करना चाहे, तो क्या ये रोक सकते हैं उसकी दया को? आप कह दें कि मुझे पर्याप्त है अल्लाह और उसीपर भरोसा करते हैं, भरोसा करने वाले।
आप कह दें कि हे मेरी जाति के लोगो! तुम काम करो अपने स्थान पर, मैंभी काम कर रहा हूँ। तो शीघ्र ही तुम्हें ज्ञान हो जायेगा।
कि किसके पास आती है ऐसी यातना, जो उसे अपमानित कर दे तथा उतरती है किसके ऊपर स्थायी यातना?
वास्तव में, हमने ही अवतरित की है आपपर ये पुस्तक, लोगों के लिए सत्य के साथ। तो जिसने मार्गदर्शन प्राप्त कर लिया, तो उसके अपने (लाभ के) लिए है तथा जो कुपथ हो गया, तो वह कुपथ होता है अपने ऊपर तथा आप उनपर संरक्षक नहीं हैं।
अल्लाह ही खींचता है प्राणों को, उनके मरण के समय तथा जिसके मरण का समय नहीं आया, उसकी निद्रा में। फिर रोक लेता है जिसपर निर्णय कर दिया हो मरण का तथा भेज देता है अन्य को, एक निर्धारित समय तक के लिए। वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं उनके लिए, जो मनन-चिन्तन[1] करते हों।
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1. इस आयत में बताया जा रहा है कि मरण तथा जीवन अल्लाह के नियंत्रण में हैं। निद्रा में प्राणों को खींचने का अर्थ है, उन की संवेदन शक्ति को समाप्त कर देना। अतः कोई इस निद्रा की दशा पर विचार करे तो यह समझ सकता है कि अल्लाह मुर्दों को भी जीवित कर सकता है।
क्या उन्होंने बना लिए हैं अल्लाह के अतिरिक्त बहुत-से अभिस्तावक (सिफ़ारिशी)? आप कह दें: क्या (ये सिफ़ारिश करेंगे) यदि वे अधिकार न रखते हों किसी चीज़ का और न ही समझ सकते हों?
आप कह दें कि अनुशंसा (सिफ़ारिश) तो सब अल्लाह के अधिकार में है। उसी के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। फिर उसी की ओर तुम फिराये जाओगे।
तथा जब वर्णन किया जाता है अकेले अल्लाह का, तो संकीर्ण होने लगते हैं उनके दिल, जो ईमान नहीं रखते आख़िरत[1] पर तथा जब वर्णन किया जाता है उनका, जो उसके सिवा हैं, तो वे सहसा प्रसन्न हो जाते हैं।
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1. इस में मुश्रिकों की दशा का वर्णन किया जा रहा है कि वह अल्लाह की महिमा और प्रेम को स्वीकार तो करते हैं फिर भी जब अकेले अल्लाह की महिमा तथा प्रशंसा का वर्णन किया जाता है तो प्रसन्न नहीं होते जब तक दूसरे पीरों-फ़क़ीरों तथा देवताओं के चमत्कार की चर्चा न की जाये।
(हे नबी!) आप कहें: हे अल्लाह आकाशों तथा धरती के पैदा करने वाले, परोक्ष तथा प्रत्यक्ष के ज्ञानी! तू ही निर्णय करेगा अपने भक्तों के बीच, जिस बात में वे झगड़ रहे थे।
और यदि उनका, जिन्होंने अत्याचार किया है, जो कुछ धरती में है, सब हो जाये तथा उसके समान उसके साथ और आ जाये, तो वे उसे दण्ड में दे देंगे[1] घोर यातना के बदले, प्रलय के दिन तथा खुल जायेगी उनके लिए अल्लाह की ओर, से वो बात, जिसे वे समझ नहीं रहे थे।
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1. परन्तु वह सब स्वीकार्य नहीं होगा। (देखियेः सूरह बक़रह, आयतः48, तथा सूरह आले इमरान, आयतः91)
तथा खुल जायेंगी उनके लिए उनके करतूतों की बुराईयाँ और उन्हें घेर लेगा, जिसका वे उपहास कर रहे थे।
और जब पहुँचता है मनुष्यों को कोई दुःख, तो हमें पुकारता है। फिर जब हम प्रदान करते हैं कोई सुख अपनी ओर से, तो कहता हैः ये तो मुझे प्रदान किया गया है ज्ञान के कारण। बल्कि, ये एक परीक्षा है। किन्तु, लोगों में से अधिक्तर (इसे) नहीं जानते।
यही बात, उन लोगों ने भी कही थी, जो इनसे पूर्व थे। तो नहीं काम आया उनके, जो कुछ वे कमा रहे थे।
फिर आ पड़े उनपर उनके सब कुकर्म और जो अत्याचार किये हैं इनमें से, आ पड़ेंगे उनपर (भी) उनके कुकर्म तथा वे (हमें) विवश करने वाले नहीं हैं।
क्या उन्हें ज्ञान नहीं कि अल्लाह फैलाता है जीविका, जिसके लिए चाहता है तथा नापकर देता है (जिसके लिए चाहता है)? निश्चय इसमें कई निशानियाँ हैं, उन लोगों के लिए, जो ईमान रखते हैं।
आप कह दें मेरे उन भक्तों से, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किये हैं कि तुम निराश[1] न हो अल्लाह की दया से। वास्तव में, अल्लाह क्षमा कर देता है सब पापों को। निश्चय वह अति क्षमी, दयावान् है।
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1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास कुछ मुश्रिक आये जिन्हों ने बहुत जानें मारीं और बहुत व्यभिचार किये थे। और कहाः वास्तव में आप जो कुछ कह रहे हैं वह बहुत अच्छा है। तो आप बातयें कि हम ने जो कुकर्म किये हैं उन के लिये कोई कफ़्फ़ारा (प्रायश्चित) है? उसी पर क़ुर्क़ान की आयत 68 और यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4810)
तथा झुक पड़ो अपने पालनहार की ओर और आज्ञाकारी हो जाओ उसके, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ जाये, फिर तुम्हारी सहायता न की जाये।
तथा पालन करो उस सर्वोत्तम (क़र्आन) का, जो अवतरित किया गया है तुम्हारी ओर तुम्हारे पालनहार की ओर से, इससे पूर्व कि आ पड़े तुमपर यातना और तुम्हें ज्ञान न हो।
(ऐसा न हो कि) कोई व्यक्ति कहे कि हाय संताप! इस बात पर कि मैं आलस्य किया अल्लाह के पक्ष में तथा मैं उपहास करने वालों में रह गया।
अथवा कहे कि यदि अल्लाह मुझे सुपथ दिखाता, तो मैं डरने वालों में से हो जाता।
अथवा कहे जब देख ले यातना को कि यदि मुझे (संसार में) फिरकर जाने का अवसर हो जाये, तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।
हाँ, आईं तुम्हारे पास मेरी निशानियाँ, तो तुमने उन्हें झुठला दिया और अभिमान किया तथा तुम थे ही काफ़िरों में से।
और प्रलय के दिन आप उन्हें देखेंगे, जिन्होंने अल्लाह पर झूठ बोले कि उनके मुख काले होंगे। तो क्या नरक में नहीं है अभिमानियों का स्थान?
तथा बचा लेगा अल्लाह जो आज्ञाकारी रहे, उन्हें, उनकी सफलता के साथ। नहीं लगेगा उन्हें कोई दुःख और न वे उदासीन होंगे।
अल्लाह ही प्रत्येक वस्तु का पैदा करने वाला तथा वही प्रत्येक वस्तु का रक्षक है।
उसी के अधिकार में हैं आकाशों तथा धरती की कुंजियाँ[1] तथा जिन्होंने नकार दिया अल्लाह की आयतों को, वही क्षति में हैं।
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1. अर्थात सब का विधाता तथा स्वामी वही है। वही सब की व्यवस्था करता है। और सब उसी के अधीन तथा अधिकार में हैं।
आप कह दें: तो क्या अल्लाह से अन्य की तुम मुझे इबादत (वंदना) करने का आदेश देते हो, हे अज्ञानो?
तथा वह़्यी की गई है आपकी ओर तथा उन (नबियों) की ओर, जो आपसे पूर्व (हुए) कि यदि आपने शिर्क किया, तो अवश्य व्यर्थ हो जायेगा आपका कर्म तथा आप हो जायेंगे[1] क्षतिग्रस्तों में से।
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1. इस आयत का भावार्थ यह है कि यदि मान लिया जाये कि आप के जीवन का अन्त शिर्क पर हुआ, और क्षमा याचना नहीं की तो आप के भी कर्म नष्ट हो जायेंगे। ह़ालाँकि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और सभी नबी शिर्क से पाक थे। इस लिये कि उन का संदेश ही एकेश्वरवाद और शिर्क का खण्डन है। फिर भी इस में संबोधित नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को किया गया है। और यह साधारण नियम बताया गया कि शिर्क के साथ अल्लाह के हाँ कोई कर्म स्वीकार्य नहीं। तथा ऐसे सभी कर्म निष्फल होंगे जो एकेश्वरवाद की आस्था पर आधारित न हों। चाहे वह नबी हो या उस का अनुयायी हो।
बल्कि आप अल्लाह ही की इबादत (वंदना) करें तथा कृज्ञयों में रहें।
तथा उन्होंने अल्लाह का सम्मान नहीं किया, जैसे उसका सम्मान करना चाहिये था और धरती पूरी उसकी एक मुट्ठी में होगी, प्रलय के दिन तथा आकाश लपेटे हुए होंगे उसके हाथ[1] में। वह पवित्र तथा उच्च है उस शिर्क से, जो वे कर रहे हैं।
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1. ह़दीस में आता है कि एक यहूदी विद्वान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आया और कहाः हम अल्लाह के विषय में (अपनी धर्म पुस्तकों में) यह पाते हैं कि प्रलय के दिन आकाशों को एक उंगली, तथा भूमि को एक उंगली पर और पेड़ों को एक उंगली, जल तथा तरी को एक उंगली पर और समस्त उत्पत्ति को एक उंगली पर रख लेगा, तथा कहेगाः "मैं ही राजा हूँ।" यह सुन कर आप हँस पड़े। और इसी आयत को पढ़ा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीसः 4812, 6519, 7382, 7413)
तथा सूर (नरसिंधघा) फूँका[1] जायेगा, तो निश्चेत होकर गिर जायेंगे, जो आकाशों तथा धरती में हैं। परन्तु जिसे अल्लाह चाहे, फिर उसे पुनः फूँका जायेगा, तो सहसा सब खड़े देख रहे होंगे।
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1. नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः दूसरी फूँक के पश्चात् सब से पहले मैं सिर उठाऊँगा। तो मूसा अर्श पकड़े हुये खड़े होंगे। मूझे ज्ञान नहीं कि वह ऐसे ही रह गये थे, या फूँकने के पश्चात् मुझ से पहले उठ चुके होंगे। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4813) दूसरी ह़दीस में है कि दोनों फूकों के बीच चालीस की अवधि होगी। और मनुष्य की दुमची की हड्डी के सिवा सब सड़ जायेगा। और उसी से उस को फिर बनाया जायेगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः 4814)
तथा जगमगाने लगेगी धरती, अपने पालनहार की ज्योति से और प्रस्तुत किये जायेंगे कर्म लेख तथा लाया जायेगा नबियों और साक्षियों को तथा निर्णय किया जायेगा उनके बीच सत्य (न्याय) के साथ और उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
तथा पूरा-पूरा दिया जायेगा प्रत्येक जीव को, उसका कर्मफल तथा वह भली-भाँति जानने वाला है उसे, जो वे कर रहे हैं।
तथा हाँके जायेंगे, जो काफ़िर हो गये नरक की ओर, झुण्ड बनाकर। यहाँतक कि जब वे उसके पास आयेंगे, तो खोल दिये जायेंगे उसके द्वार तथा उनसे कहेंगे उसके रक्षक (फ़रिश्तेः) क्या नहीं आये तुम्हारे पास रसूल तुममें से, जो तुम्हें सुनाते, तुम्हारे पालनहार की आयतें तथा सचेत करते तुम्हें, इस दिन का सामना करने से? वे कहेंगेः क्यों नहीं? परन्तु, सिध्द हो गया यातना का शब्द, काफ़िरों पर।
कहा जायेगा कि प्रवेश कर जाओ नरक के द्वारों में, सदावासी होकर उसमें। तो बुरा है घमंडियों का निवास स्थान।
तथा भेज दिये जायेंगे, जो लोग डरते रहे अपने पालनहार से, स्वर्ग की ओर झुण्ड बनाकर। यहाँतक कि जब वे आ जायेंगे उसके पास तथा खोल दिये जायेंगे उसके द्वार और कहेंगे उनसे उसके रक्षकः सलाम है तुमपर, तुम प्रसन्न रहो। तुम प्रवेश कर जाओ उसमें, सदावासी होकर।
तथा वे कहेंगेः सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जिसने सच कर दिखाया हमसे अपना वचन तथा हमें उत्तराधिकारी बना दिया इस धरती का, हम रहें स्वर्ग में, जहाँ चाहें। क्या ही अच्छा है कार्यकर्ताओं[1] का प्रतिफल।
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1. अर्थात एकेश्वरवादी सदाचारियों का।
तथा आप देखेंगे फ़रिश्तों को घेरे हुए अर्श (सिंहासन) के चतुर्दिक, वे पवित्रता गान कर रहे होंगे अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ, निर्णय कर दिया जायेगा लोगों के बीच सत्य के साथ तथा कह दिया जायेगा कि सब प्रशंसा अल्लाह, सर्वलोक के पालनहार के लिए है।[1]
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1. अर्थात जब ईमान वाले स्वर्ग में और मुश्रिक नरक में चले जायेंगे तो उस समय का चित्र यह होगा कि अल्लाह के अर्श को फ़रिश्ते हर ओर से घेरे हुये उस की पवित्रता तथा प्रशंसा का गान कर रहे होंगे।
سورة الزمر
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سورةُ (الزُّمَر) من السُّوَر المكية، وقد جاءت بدلائلَ كثيرةٍ على وَحْدانية الله، واستحقاقه للألوهية، وذكَرتْ آياتٍ لله عز وجل في هذا الكون، وبيَّنت مآلَ مَن آمن واتقى، ومآلَ من عصى وكفَر بالله؛ مِن تقسيمِ الله لهم إلى زُمَرٍ: زُمْرة إلى الجنة والسعادة، وزُمْرة إلى النار والشقاء، وقد أُثِر عن النبي صلى الله عليه وسلم قراءتُه لسورة (الزُّمَر) قبل النوم.

ترتيبها المصحفي
39
نوعها
مكية
ألفاظها
1177
ترتيب نزولها
59
العد المدني الأول
72
العد المدني الأخير
72
العد البصري
72
العد الكوفي
75
العد الشامي
73

* قوله تعالى: {يَٰعِبَادِيَ اْلَّذِينَ أَسْرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُواْ مِن رَّحْمَةِ اْللَّهِۚ إِنَّ اْللَّهَ يَغْفِرُ اْلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ اْلْغَفُورُ اْلرَّحِيمُ ٥٣ وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمْ وَأَسْلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبْلِ أَن يَأْتِيَكُمُ اْلْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ ٥٤ وَاْتَّبِعُوٓاْ أَحْسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيْكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبْلِ أَن يَأْتِيَكُمُ اْلْعَذَابُ بَغْتَةٗ وَأَنتُمْ لَا تَشْعُرُونَ} [الزمر: 53-55]:

عن عُمَرَ بن الخطَّابِ رضي الله عنه، قال: «لمَّا اجتمَعْنا للهجرةِ، اتَّعَدتُّ أنا وعيَّاشُ بنُ أبي ربيعةَ وهشامُ بنُ العاصِ المِيضأةَ، مِيضأةَ بني غِفَارَ فوقَ سَرِفَ، وقُلْنا: أيُّكم لم يُصبِحْ عندها فقد احتبَسَ؛ فَلْيَمضِ صاحِباه، فحُبِسَ عنَّا هشامُ بنُ العاصِ.

فلمَّا قَدِمْنا مَنزِلَنا في بني عمرِو بنِ عوفٍ، وخرَجَ أبو جهلِ بنُ هشامٍ والحارثُ بنُ هشامٍ إلى عيَّاشِ بنِ أبي ربيعةَ، وكان ابنَ عَمِّهما وأخاهما لأُمِّهما، حتى قَدِمَا علينا المدينةَ، فكلَّماه، فقالا له: إنَّ أُمَّك نذَرتْ ألَّا تَمَسَّ رأسَها بمُشْطٍ حتى تَراكَ، فرَقَّ لها، فقلتُ له: يا عيَّاشُ، واللهِ، إن يريدُك القومُ إلا عن دِينِك؛ فاحذَرْهم؛ فواللهِ، لو قد آذى أمَّك القَمْلُ لَامتشَطتْ، ولو قد اشتَدَّ عليها حرُّ مكَّةَ، أحسَبُه قال: لاستَظلَّتْ، قال: إنَّ لي هناك مالًا فآخُذُه، قال: قلتُ: واللهِ، إنَّك لَتَعلَمُ أنِّي مِن أكثَرِ قُرَيشٍ مالًا؛ فلك نصفُ مالي، ولا تَذهَبْ معهما، فأبى إلا أن يخرُجَ معهما، فقلتُ له لمَّا أبى عليَّ: أمَا إذ فعَلْتَ ما فعَلْتَ، فخُذْ ناقتي هذه؛ فإنَّها ناقةٌ ذَلُولٌ؛ فالزَمْ ظَهْرَها، فإن رابَك مِن القومِ رَيْبٌ، فانْجُ عليها.

فخرَجَ معهما عليها، حتى إذا كانوا ببعضِ الطريقِ، قال أبو جهلِ بنُ هشامٍ: واللهِ، لقد استبطأتُ بعيري هذا، أفلا تَحمِلُني على ناقتِك هذه؟ قال: بلى، فأناخَ وأناخَا؛ ليَتحوَّلَ عليها، فلمَّا استوَوْا بالأرضِ عَدَيَا عليه، فأوثَقاه، ثم أدخَلاه مكَّةَ، وفتَنَاه فافتتَنَ، قال: فكنَّا نقولُ: واللهِ، لا يَقبَلُ اللهُ ممَّن افتتَنَ صَرْفًا ولا عَدْلًا، ولا يَقبَلُ توبةَ قومٍ عرَفوا اللهَ ثم رجَعوا إلى الكفرِ لبلاءٍ أصابهم.

قال: وكانوا يقولون ذلك لأنفسِهم، فلمَّا قَدِمَ رسولُ اللهِ ﷺ المدينةَ، أنزَلَ اللهُ عز وجل فيهم وفي قولِنا لهم وقولِهم لأنفسِهم: {يَٰعِبَادِيَ اْلَّذِينَ أَسْرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُواْ مِن رَّحْمَةِ اْللَّهِۚ إِنَّ اْللَّهَ يَغْفِرُ اْلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ اْلْغَفُورُ اْلرَّحِيمُ} [الزمر: 53] إلى قولِه: {وَأَنتُمْ لَا تَشْعُرُونَ} [الزمر: 55].

قال عُمَرُ: فكتَبْتُها في صحيفةٍ، وبعَثْتُ بها إلى هشامِ بنِ العاصِ، قال هشامٌ: فلَمْ أزَلْ أقرَؤُها بذِي طُوًى أصعَدُ بها فيه حتى فَهِمْتُها، قال: فأُلقِيَ في نفسي أنَّها إنَّما نزَلتْ فينا، وفيما كنَّا نقولُ في أنفسِنا، ويقالُ فينا، فرجَعْتُ فجلَسْتُ على بعيري، فلَحِقْتُ برسولِ اللهِ ﷺ بالمدينةِ». أخرجه البزار (١٥٥).

* قوله تعالى: {وَمَا قَدَرُواْ اْللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِۦ وَاْلْأَرْضُ جَمِيعٗا قَبْضَتُهُۥ يَوْمَ اْلْقِيَٰمَةِ وَاْلسَّمَٰوَٰتُ مَطْوِيَّٰتُۢ بِيَمِينِهِۦۚ سُبْحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشْرِكُونَ} [الزمر: 67]:

عن عبدِ اللهِ بن مسعودٍ رضي الله عنه، قال: «أتى النبيَّ صلى الله عليه وسلم رجُلٌ مِن أهلِ الكتابِ، فقال: يا أبا القاسمِ، أبلَغَك أنَّ اللهَ عز وجل يَحمِلُ الخلائقَ على إصبَعٍ، والسَّمواتِ على إصبَعٍ، والأرَضِينَ على إصبَعٍ، والشَّجَرَ على إصبَعٍ، والثَّرى على إصبَعٍ، قال: فضَحِكَ النبيُّ صلى الله عليه وسلم حتى بدَتْ نواجذُه، قال: فأنزَلَ اللهُ تعالى: {وَمَا قَدَرُواْ اْللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِۦ وَاْلْأَرْضُ جَمِيعٗا قَبْضَتُهُۥ يَوْمَ اْلْقِيَٰمَةِ} [الزمر: 67] إلى آخرِ الآيةِ». أخرجه البخاري (٧٤١٥).

* سورة (الزُّمَر):

سُمِّيت سورةُ (الزُّمَر) بهذا الاسم؛ لأنَّ اللهَ ذكَر فيها زُمْرة السُّعداء من أهل الجنة، وزُمْرة الأشقياء من أهل النار.

* كان صلى الله عليه وسلم لا ينامُ حتى يَقرأَ (الزُّمَر):

عن عائشةَ أمِّ المؤمنين رضي الله عنها، قالت: «كان النبيُّ ﷺ لا ينامُ حتى يَقرأَ الزُّمَرَ، وبني إسرائيلَ». أخرجه الترمذي (٣٤٠٥).

1. القرآن تنزيلٌ من الله تعالى، والعبادة له وَحْده (١-٤).

2. آيات الله تعالى في الآفاق والأنفس (٥-٧).

3. مقارنة بين المؤمن والكافر (٨-٩).

4. إرشادٌ للمؤمنين، ووعيد لعبَدةِ الأصنام (١٠-٢٠) .

5. دلائل وَحْدانية الله تعالى، وقُدْرته (٢١).

6. حال المؤمنين مع القرآن، عذاب الكافرين (٢٢-٢٦).

7. ضَرْبُ الأمثال للتذكير (٢٧-٣١).

8. وعيدٌ للمشركين، ووعد للمؤمنين (٣٢-٣٧).

9. ضَلال المشركين، وتهديد الله لهم (٣٨-٤٠).

10. مظاهر قدرة الله تعالى (٤١-٤٨).

11. الإنسان بين الضَّراء والسَّراء (٤٩-٥٢).

12. دعوة للرجوع إلى الله تعالى (٥٣-٥٩).

13. دلائلُ ألوهية الله تعالى، ووَحْدانيته (٦٠-٦٧).

14. أهوال الآخرة، ومآل الأشقياء والسُّعداء (٦٨-٧٥).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (6 /478).

مقصدُ سورة (الزُّمَر) هو الدَّلالة على صِدْقِ الله عزَّ وجلَّ في وعدِه؛ فحاشاه أن يفُوتَه شيء، أو أن يُخلِفَ وعدَه، وقد أعذَرَ إلى الكفار بإنذارِهم بالحشر، وهو واقعٌ حاصل بتقسيم الناس إلى زُمَرٍ على ما يستحِقُّون من أعمالهم: زُمْرة المتقين الأبرار، وزُمْرة الكفار الأشرار.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /423).