ترجمة سورة فاطر

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة فاطر باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

सब प्रशंसा अल्लाह के लिए हैं, जो उत्पन्न करने वाला है आकाशों तथा धरती का, (और) बनाने वाला[1] है संदेशवाहक फ़रिश्तों को दो-दो, तीन-तीन, चार-चार परों वाले। वह अधिक करता है उत्पत्ति में, जो चाहता है, निःसंदेह अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
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1. अर्थात फ़रिश्तों के द्वारा नबियों तक अपनी प्रकाशना तथा संदेश पहुँचाता है।
जो खोल दे अल्लाह लोगों के लिए अपनी दया,[1] तो उसे कोई रोकने वाला नहीं तथा जिसे रोक दे, तो कोई खोलने वाला नहीं उसका, उसके पश्चात् तथा वही प्रभावशाली चतुर है।
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1. अर्थात स्वास्थ्य, धन, ज्ञान आदि प्रदान करे।
हे मनुष्यो! याद करो अपने ऊपर अल्लाह के पुरस्कार को, क्या कोई उत्पत्तिकर्ता है अल्लाह कि सिवा, जो तुम्हें जीविका प्रदान करता हो आकाश तथा धरती से? नहीं है कोई वंदनीय, परन्तु वही। फिर तुम कहाँ फिरे जा रहे हो?
और यदि वे आपको झुठलाते हैं, तो झुठलाये जा चुके हैं बहुत-से रसूल आपसे पहले और अल्लाह ही की ओर फेरे जायेंगे सब विषय।[1]
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1. अर्थात अन्ततः सभी विषयों का निर्णय हमें ही करना है तो यह कहाँ जायेंगे? अतः आप धैर्य से काम लें।
हे लोगो! निश्चय अल्लाह का वचन सत्य है। अतः, तुम्हें धोखे में न रखे सांसारिक जीवन और न धोखे में रखें अल्लाह से, अति प्रवंचक (शैतान)।
वास्तव में, शैतान तुम्हारा शत्रु है। अतः, तुम उसे अपना शत्रु ही समझो। वह बुलाता है अपने गिरोह को इसीलिए ताकि वे नारकियों में हो जायें।
जो काफ़िर हो गये, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उनके लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
तथा क्या शोभनीय बना दिया गया हो जिसके लिए उसका कुकर्म और वह उसे अच्छा समझता हो? तो अल्लाह ही कुपथ करता है, जिसे चाहे और सुपथ दिखाता है, जिसे चाहे। अतः, न खोयें आप अपना प्राण इनपर संताप के कारण। वास्तव में, अल्लाह जानता है, जो कुछ वे कर रहे हैं।
तथा अल्लाह वही है, जो वायु को भेजता है, जो बादलों को उठाती है, फिर हम हाँक देते हैं उन्हें, निर्जीव नगर की ओर। फिर जीवित कर देते हैं उनके द्वारा धरती को, उसके मरण के पश्चात्। इसी प्रकार, फिर जीना (भी)[1] होगा।
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1. अर्थात जिस प्रकार वर्षा से सूखी धरती हरी हो जाती है इसी प्रकार प्रलय के दिन तुम्हें भी जीवित कर दिया जायेगा।
जो सम्मान चाहता हो, तो अल्लाह ही के लिए है सब सम्मान और उसी की ओर चढ़ते हैं पवित्र वाक्य[1] तथा सत्कर्म ही उनको ऊपर ले जाता[2] है तथा जो दाव-घात में लगे रहते हैं बुराईयों की, तो उन्हीं के लिए कड़ी यातना है और उन्हीं के षड्यंत्र नाश हो जायेंगे।
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1. पवित्र वाक्य से अभिप्राय ((ला इलाहा इल्लल्लाह)) है। जो तौह़ीद का शब्द है। तथा चढ़ने का अर्थ हैः अल्लाह के यहाँ स्वीकार होना। 2. आयत का भावार्थ यह है कि सम्मान अल्लाह की वंदना से मिलता है अन्य की पूजा से नहीं। और तौह़ीद के साथ सत्कर्म का होना भी अनिवार्य है। और जब ऐसा होगा तो उसे अल्लाह स्वीकार कर लेगा।
अल्लाह ने उत्पन्न किया तुम्हें मिट्टी से, फिर वीर्य से, फिर बनाये तुम्हें जोड़े और नहीं गर्भ धारण करती कोई नारी और न जन्म देती है, परन्तु उसके ज्ञान से और नहीं आयु दिया जाता कोई अधिक और न कम की जाती है उसकी आयु, परन्तु वह एक लेख में[1] है। वास्तव में, ये अल्लाह पर अति सरल है।
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1. अर्थात प्रत्येक व्यक्ति की पूरी दशा उस के भाग्य लेख में पहले ही से अंकित है।
तथा बराबर नहीं होते दो सागर, ये मधुर प्यास बुझाने वाला है, रुचिकर है इसका पीना और वो (दूसरा) खारी कड़वा है तथा प्रत्येक में से तुम खाते हो ताज़ा माँस तथा निकालते हो आभूषण, जिसे पहनते हो और तुम देखते हो नाव को उसमें पानी फाड़ती हुई, ताकि तुम खोज करो अल्लाह के अनुग्रह की और ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
वह प्रवेश करता है रात को दिन में तथा प्रवेश करता है दिन को रात्रि में तथा वश में कर रखा है सूर्य तथा चन्द्रा को, प्रत्येक चलते रहेंगे एक निश्चित समय तक। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। उसी का राज्य है तथा जिन्हें तुम पुकारते हो, उसके सिवा, वे स्वामी नहीं हैं एक तिन्के के भी।
यदि तुम उन्हें पुकारते हो, तो वे नहीं सुनते तुम्हारी पुकार को और यदि सुन भी लें, तो नहीं उत्तर दे सकते तुम्हें और प्रलय के दिन वे नकार देंगे तुम्हारे शिर्क (साझी बनाने) को और आपको कोई सूचना नहीं देगा सर्वसूचित जैसी।[1]
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1. इस आयत में प्रलय के दिन उन के पूज्य की दशा का वर्णन किया गया है कि यह प्रलय के दिन उन के शिर्क को अस्वीकार कर देंगे। और अपने पुजारियों से विरक्त होने की घोषणा कर देंगे। जिस से विद्वित हुआ कि अल्लाह का कोई साझी नहीं है। और जिन को मुश्रिकों ने साझी बना रखा है वह सब धोखा है।
हे मनुष्यो! तुम सभी भिक्षु हो अल्लाह के तथा अल्लाह ही निःस्वार्थ, प्रशंसित है।
यदि वह चाहे, तो तुम्हें ध्वस्त कर दे और नई[1] उतपत्ति ले आये।
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1. भावार्थ यह कि मनुष्य को प्रत्येक क्षण अपने अस्तित्व तथा स्थायित्व के लिये अल्लाह की आवश्यक्ता है। और अल्लाह ने निर्लोभ होने के साथ ही उस के जीवन के संसाधन की व्यवस्था कर दी है। अतः यह न सोचो कि तुम्हारा विनाश हो गया तो उस की महिमा में कोई अन्तर आ जायेगा। वह चाहे तो तुम्हें एक क्षण में ध्वस्त कर के दूसरी उत्पत्ति ले आये क्योंकि वह एक शब्द "कुन" (जिस का अनुवाद है, हो जा) से जो चाहे पैदा कर दे।
और ये नहीं है अल्लाह पर कुछ कठिन।
तथा नहीं लादेगा कोई लादने वाला, दूसरे का बोझ, अपने ऊपर[1] और यदि पुकारेगा कोई बोझल, उसे लादने के लिए, तो वह नहीं लादेगा उसमें से कुछ, चाहे वह उसका समीपवर्ती ही क्यों न हो। आप तो बस उन्हीं को सचेत कर रहे हैं, जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे तथा जो स्थापना करते हैं नमाज़ की तथा जो पवित्र हुआ, तो वह पवित्र होगा अपने ही लाभ के लिए और अल्लाह ही की ओर (सबको) जाना है।
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1. अर्थात पापों का बोझ। अर्थ यह है कि प्रलय के दिन कोई किसी की सहायता नहीं करेगा।
तथा समान नहीं हो सकता अंधा तथा आँख वाला।
और न अंधकार तथा प्रकाश।
और न छाया तथा न धूप।
तथा समान नहीं हो सकते जीवित तथा निर्जीव।[1] वास्तव में, अल्लाह ही सुनाता है जिसे चाहता है और आप नहीं सुना सकते उन्हें, जो क़ब्रों में हों।
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1. अर्थात जो कुफ़्र के कारण अपनी ज्ञान खो चुके हों।
आप तो बस सचेतकर्ता हैं।
वास्तव में, हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचक तथा सचेतकर्ता बनाकर भेजा है और कोई ऐसा समुदाय नहीं, जिसमें कोई सचेतकर्ता न आया हो।
और यदि ये आपको झुठलायें, तो इनसे पूर्व के लोगों ने भी झुठलाया है, जिनके पास हमारे रसूल खुले प्रमाण तथा ग्रंथ और प्रकाशित पुस्तकें लाये।
फिर मैंने पकड़ लिया उन्हें, जो काफ़िर हो गये। तो कैसा रहा मेरा इन्कार।
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ने उतारा आकाश से जल, फिर हमने निकाल दिये उसके द्वारा बहुत-से फल विभिन्न रंगों के तथा पर्वतों के विभिन्न भाग हैं; स्वेत तथा लाल, विभिन्न रंगों के तथा गहरे काले।
तथा मनुष्य, जीवों तथा पशुओं में भी विभिन्न रंगों के हैं, इसी प्रकार। वास्तव में, डरते हैं अल्लाह से उसके भक्तों में से वही जो ज्ञानी[1] हों। निःसंदेह अल्लाह अति प्रभुत्वशाली, क्षमी है।
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1. अर्थात अल्लाह के इन सामर्थ्यों तथा रचनात्मक गुणों को जान सकते हैं जिन को क़ुर्आन तथा ह़दीसों का ज्ञान हो। और उन्हें जितना ही अल्लाह का आत्मिक ज्ञान होता है उतना ही वह अल्लाह से डरते हैं। मानो जो अल्लाह से नहीं डरते वह ज्ञानशून्य होते हैं। (इब्ने कसीर)
वास्तव में, जो पढ़ते हैं अल्लाह की पुस्तक (क़ुर्आन), उन्होंने स्थापना की नमाज़ की एवं दान किया उसमें से, जो हमने उन्हें प्रदान किया है, खुले तथा छुपे, तो वही आशा रखते हैं ऐसे व्यापार की, जो कदापि हानिकर नहीं होगा।
ताकि अल्लाह प्रदान करे उन्हें भरपूर उनका प्रतिफल तथा उन्हें अधिक दे अपने अनुग्रह से। वास्तव में, वह अति क्षमी, आदर करने वाला है।
तथा जो हमने प्रकाशना की है आपकी ओर ये पुस्तक, वही सर्वथा सच है और सच बताती है अपने पूर्व की पुस्तकों को। वास्तव में, अल्लाह अपने भक्तों से सूचित, भली-भाँति देखने वाला है।[1]
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1. कि कौन उस के अनुग्रह के योग्य है। इसी कारण उस ने नबियों को सब पर प्रधानता दी है। तथा नबियों को भी एक-दूसरे पर प्रधानता दी है। (देखियेः इब्ने कसीर)
फिर हमने उत्तराधिकारी बनाया इस पुस्तक का उन्हें जिन्हें हमने चुन लिया अपने भक्तों में[1] से। तो उनमें कुछ अत्याचारी हैं अपने ही लिए, उनमें से कुछ मध्यवर्ती हैं और कुछ अग्रसर हैं भलाई में अल्लाह की अनुमति से तथा यही महान अनुग्रह है।
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1. इस आयत में क़ुर्आन के अनुयायियों की तीन श्रेणियाँ बताई गई हैं। और तीनों ही स्वर्ग में प्रवेश करेंगीः अग्रगामी बिना ह़िसाब के। मध्यवर्ती सरल ह़िसाब के पश्चात्। तथा अत्याचारी दण्ड भुगतने के पश्चात् शिफ़ाअत द्वारा। (फ़त्ह़ल क़दीर)
सदावास के स्वर्ग हैं, वे प्रवेश करेंगे उनमें और पहनाये जायेंगे उनमें सोने के कंगन तथा मोती और उनके वस्त्र उनमें रेशम के होंगे।
तथा वे कहेंगेः सब प्रशंसा उस अल्लाह के लिए हैं, जिसने दूर कर दिया हमसे शोक। वास्तव में, हमारा पालनहार अति क्षमी, गुणग्राही है।
जिसने हमें उतार दिया स्थायी घर में अपने अनुग्रह से। नहीं छूएगी उसमें हमें कोई आपदा और न छूएगी उसमें कोई थकान।
तथा जो काफ़िर हैं, उन्हीं के लिए नरक की अग्नि है। न तो उनकी मौत ही आयेगी, न वे मर जायें और न हल्की की जायेगी उनसे उसकी कुछ यातना। इसी प्रकार, हम बदला देते हैं प्रत्येक नाशुक्रे को।
और वे उसमें चिल्लायेंगेः हे हमारे पालनहार! हमें निकाल दे, हम सदाचार करेंगे उसके अतिरिक्त, जो कर रहे थे। क्या हमने तुम्हें इतनी आयु नहीं दी, जिसमें शिक्षा ग्रहण कर ले, जो शिक्षा ग्रहण करे तथा आया तुम्हारे पास सचेतकर्ता (नबी)? अतः, तुम चखो, अत्याचारियों का कोई सहायक नहीं है।
वास्तव में, अल्लाह ही ज्ञानी है आकाशों तथा धरती के भेद का। वास्तव में, वही भली-भाँति जानने वाला है सीनों की बातों का।
वही है, जिसने तुम्हें एक-दूसरे के पश्चात् बसाया है धरती में, तो जो कुफ़्र करेगा, तो उसके लिए है उसका कुफ़्र और नहीं बढ़ायेगा काफ़िरों के लिए उनका कुफ़् उनके पालनहार के यहाँ, परन्तु क्रोध ही और नहीं बढ़ायेगा काफ़िरों के लिए उनका क़फ़्र, परन्तु क्षति ही।
(हे नबी!)[1] उनसे कहोः क्या तुमने देखा है अपने साझियों को, जिन्हें तुम पुकारते हो अल्लाह के अतिरिक्त? मुझे भी दिखाओ कि उन्होंने कितना भाग बनाया है धरती में से? या उनका आकाशों में कुछ साझा है? या हमने प्रदान की है उन्हें कोई पुस्तक, तो ये उसके खुले प्रमाणों पर हैं? बल्कि (बात ये है कि) अत्याचारी एक-दूसरे को केवल धोखे का वचन दे रहे हैं।
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1. यहाँ से अन्तिम सूरह तक शिर्क (मिश्रणवाद) का खण्डन किया जा रहा है।
अल्लाह ही रोकता[1] है आकाशो तथा धरती को खिसक जाने से और यदि खिसक जायें वे दोनों, तो नहीं रोक सकेगा उन्हें कोई उस (अल्लाह) के पश्चात्। वास्तव में, वह अत्यंत सहनशील, क्षमाशील है।
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1. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात में नमाज़ के लिये जागते तो आकाश की ओर देखते और यह पूरी आयत पढ़ते थे। (सह़ीह़ बुख़ारीः7452)
और उनकाफ़िरों ने शपथ ली थी अल्लाह की पक्की शपथ कि यदि आ गया, उनके पास कोई सचेतकर्ता (नबी), तो वे अवश्य हो जायेंगे सर्वाधिक संमार्ग पर समुदायों में से किसी एक से। फिर जब आ गये उनके पास एक रसूल,[1] तो उनकी दूरी ही अधिक हुई।
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1. मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम।
अभिमान के कारण धरती में तथा बुरे षड्यंत्र के कारण और नहीं घेरता है बुरा षड्यंत्र, परन्तु अपने करने वाले ही को। तो क्या वे प्रतीक्षा कर रहे हैं पूर्व के लोगों की नीति की?[1] तो नहीं पायेंगे आप अल्लाह के नियम में कोई अन्तर।[2]
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1. अर्थात यातना की। 2. अर्थात प्रत्येक युग और स्थान के लिये अल्लाह का नियम एक ही रहा है।
और क्या वे नहीं चले-फिरे धरती में, तो देख लेते कि कैसा रहा उनका दुष्परिणाम, जो इनसे पूर्व रहे, जबकि वह इनसे कड़े थे बल में? तथा अल्लाह ऐसा नहीं, वास्तव में, वह सर्वज्ञ, अति सामर्थ्यवान है।
और यदि पकड़ने लगता अल्लाह लोगों को उनके कर्मों के कारण, तो नहीं छोड़ता धरती के ऊपर कोई जीव। किन्तु, अवसर दे रहा है उन्हें एक निश्चित अवधि तक, फिर जब आ जायेगा उनका निश्चित समय, तो निश्चय अल्लाह अपने भक्तों को देख रहा[1] है।
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1. अर्थात उस दिन उन के कर्मों का बदला चुका देगा।
سورة فاطر
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سورةُ (فاطرٍ) من السُّوَر المكِّية، افتُتِحت بحمدِ الله على كمالِ قُدْرته في خَلْقِ هذا الكونِ والتصرُّفِ به، اللازمِ منه إثباتُ قُدْرته تعالى على البعث والجزاء؛ بالخيرِ خيرًا، وبالشرِّ شرًّا إن شاء سبحانه وتعالى، فأوضحت السورةُ مصيرَ الكافرين، وأبانت عن أسباب صُدودهم، وخُتِمت بدعوتهم للتفكير والتأمُّل فيما حولهم.

ترتيبها المصحفي
35
نوعها
مكية
ألفاظها
778
ترتيب نزولها
43
العد المدني الأول
46
العد المدني الأخير
46
العد البصري
45
العد الكوفي
45
العد الشامي
46

* سورةُ (فاطرٍ):

سُمِّيت سورةُ (فاطرٍ) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بهذا الوصفِ لله عزَّ وجلَّ.

اشتمَلتْ سورةُ (فاطرٍ) على الموضوعات الآتية:

1. الاستفتاح بالحمد (١-٢).

2. يا أيها الناس (٣-٢٦).

3. النداء الأول: تذكيرٌ وتسلية (٣-٤).

4. النداء الثاني: أسباب الغُرور (٥-٨).

5. آيات الله في الكون (٩-١٤).

6. النداء الثالث: غِنى الله تعالى وعدلُه (١٥- ٢٦).

7. كتاب الله المنظورُ (٢٧-٢٨).

8. نعمة القرآن، ومصيرُ المؤمنين (٢٩-٣٥).

9. مصير الكافرين (٣٦- ٣٧).

10. دلائل العظمة، وشواهد القدرة (٣٨-٤١).

11. أسباب الصُّدود (٤٢-٤٣).

12. دعوة للسَّير والنظر (٤٤-٤٥).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (6 /241).

مقصدُها إثباتُ كمالِ القدرةِ لله عزَّ وجلَّ، الخالقِ لهذا الكونِ بآياته العظام، القادرِ على أن يَبعَثَ الناسَ ويجازيَهم على أعمالهم؛ إنْ خيرًا فخيرٌ، وإنْ شرًّا فشرٌّ.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور " للبقاعي (2 /385).