ترجمة سورة المعارج

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة المعارج باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

प्रश्न किया एक प्रश्न करने[1] वाले ने उस यातना के बारे में, जो आने वाली है।
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1. कहा जाता है नज़्र पुत्र ह़ारिस अथवा अबू जह्ल ने यह माँग की थी कि "हे अल्लाह! यदि यह सत्य है तेरी ओर से तू हम पर आकाश से पत्थर बरसा दे।" (देखियेः सूरह अन्फाल, आयतः 32)
काफ़िरों पर। नहीं है जिसे कोई दूर करने वाला।
अल्लाह ऊँचाईयों वाले की ओर से।
चढ़ते हैं फ़रिश्ते तथा रूह़[1] जिसकी ओर, एक दिन में, जिसका माप पचास हज़ार वर्ष है।
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1. रूह़ से अभिप्राय फ़रिश्ता जिब्रील (अलैहिस्सलाम) है।
अतः, (हे नबी!) आप सहन[1] करें अच्छे प्रकार से।
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1. अर्थात संसार में सत्य को स्वीकार करने से।
वे समझते हैं उसे दूर।
और हम देख रहे हैं उसे समीप।
जिस दिन हो जायेगा आकाश पिघली हुई धातु के समान।
तथा हो जायेंगे पर्वत, रंगारंग धुने हुए ऊन के समान।[1]
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1. देखियेः सूरह क़ारिआ।
और नहीं पूछेगा कोई मित्र किसी मित्र को।
(जबकि) वे उन्हें दिखाये जायेंगे। कामना करेगा पापी कि दण्ड के रूप में दे दे, उस दिन की यातना के, अपने पुत्रों को।
तथा अपनी पत्नी और अपने भाई को।
तथा अपने समीपवर्ती परिवार को, जो उसे शरण देता था।
और जो धरती में है, सभी[1] को, फिर वह उसे यातना से बचा ले।
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1. ह़दीस में है कि जिस नारकी को सब से सरल यातना दी जायेगी, उस से अल्लाह कहेगाः क्या धरती का सब कुछ तुम्हें मिल जाये तो उसे इस के दण्ड में दे दोगे? वह कहेगाः हाँ। अल्लाह कहेगाः तुम आदम की पीठ में थे, तो मैं ने तुम से इस से सरल की माँग की थी कि मेरा किसी को साझी न बनाना तो तुमने इन्कार किया और शिर्क किया। (सह़ीह़ बुख़ारीः 6557, सह़ीह़ मुस्लिमः 2805)
कदापि (ऐसा) नहीं (होगा)।
वह अग्नि की ज्वाला होगी।
खाल उधेड़ने वाली।
वह पुकारेगी उसे, जिसने पीछा दिखाया[1] तथा मुँह फेरा।
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1. अर्थात सत्य से।
तथा (धन) एकत्र किया, फिर सौंत कर रखा।
वास्तव में, मनुष्य अत्यंत कच्चे दिल का पैदा किया गया है।
जब उसे पहुँचता है दुःख, तो उद्विग्न हो जाता है।
और जब उसे धन मिलता है, तो कंजूसी करने लगता है।
परन्तु, जो नमाज़ी हैं।
जो अनपी नमाज़ का सदा पालन[1] करते हैं।
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1. अर्थात बड़ी पाबंदी से नमाज़ पढ़ते हों।
और जिनके धनों में निश्चित भाग है, याचक (माँगने वाला) तथा वंचित[1] का।
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1. अर्थात जो न माँगने के कारण वंचित रह जाता है।
तथा जो सत्य मानते हैं प्रतिकार (प्रलय) के दिन को।
तथा जो अपने पालनहार की यातना से डरते हैं।
वास्तव में, आपके पालनहार की यातना निर्भय रहने योग्य नहीं है।
तथा जो अपने गुप्तांगों की रक्षा करने वाले हैं।
सिवाय अपनी पत्नियों और अपने स्वामित्व में आये दासियों[1] के, तो वही निन्दित नहीं हैं।
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1. इस्लाम में उसी दासी से संभोग उचित है जिसे सेनापति ने ग़नीमत (परिहार) के दूसरे धनों के समान किसी मुजाहिद के स्वामित्व में दे दिया हो। इस से पूर्व किसी बंदी स्त्री से संभोग पाप तथा व्यभिचार है। और उस से संभोग भी उस समय वैध है जब उसे एक बार मासिक धर्म आ जाये। अथवा गर्भवती हो तो प्रसव के पश्चात् ही संभोग किया जा सकता है। इसी प्रकार जिस के स्वामित्व में आई हो उस के सिवा और कोई उस से संभोग नहीं कर सकता।
और जो चाहे इसके अतिरिक्त, तो वही सीमा का उल्लंघन करने वाले हैं।
और जो अपनी अमानतों तथा अपने वचन का पालन करते हैं।
और जो अपने साक्ष्यों (गवाहियों) पर स्थित रहने वाले हैं।
तथा जो अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं।
वही स्वर्गों में सम्मानित होंगे।
तो क्या हो गया है उनकाफ़िरों को कि आपकी ओर दौड़े चले आ रहे हैं?
दायें तथा बायें समूहों में होकर।[1]
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1. अर्थात जब आप क़ुर्आन सुनाते हैं तो उस का उपहास करने के लिये समूहों में हो कर आ जाते हैं। और इन का दावा यह है कि स्वर्ग में जायेंगे।
क्या उनमें से प्रत्येक व्यक्ति लोभ (लालच) रखता है कि उसे प्रवेश दे दिया जायेगा सुख के स्वर्गों में?
कदापि ऐसा न होगा, हमने उनकी उत्पत्ति उस चीज़ से की है, जिसे वे[1] जानते हैं।
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1. अर्थात हीन जल (वीर्य) से। फिर भी घमण्ड करते हैं। तथा अल्लाह और उस के रसूल को नहीं मानते।
तो मैं शपथ लेता हूँ पूर्वों (सूर्योदय के स्थानों) तथा पश्चिमों (सूर्यास्त के स्थानों) की, वास्तव में हम अवश्य सामर्थ्यवान हैं।
इस बात पर कि बदल दें उनसे उत्तम (उत्पत्ति) को तथा हम विवश नहीं हैं।
अतः, आप उन्हें झगड़ते तथा खेलते छोड़ दें, यहाँ तक कि वे मिल जायें अपने उस दिन से, जिसका उन्हें वचन दिया जा रहा है।
जिस दिन वे निकलेंगे क़ब्रों (और समाधियों) से, दौड़ते हुए, जैसे वे अपनी मूर्तियों की ओर दौड़ रहे हों।[1]
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1. या उन के थानों की ओर। क्योंकि संसार में वे सूर्योदय के समय बड़ी तीव्र गति से अपनी मूर्तियों की ओर दौड़ते थे।
झुकी होंगी उनकी आँखें, छाया होगा उनपर अपमान, यही वह दिन है जिसका वचन उन्हें दिया जा[1] रहा था।
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1. अर्थात रसूलों तथा धर्मशास्त्रों के माध्यम से।
سورة المعارج
معلومات السورة
الكتب
الفتاوى
الأقوال
التفسيرات

سورة (المعارج) من السُّوَر المكية، نزلت بعد سورة (الحاقة)، وقد أكدت وقوعَ يوم القيامة بأهواله العظيمة، التي يتجلى فيها جلالُ الله وعظمته، وقُدْرتُه الكاملة على الجزاء، وأن مَن استحق النار فسيدخلها، ومَن أكرمه الله بجِنانه فسيفوز بذلك، وخُتمت ببيانِ جزاء مَن آمن، وتهديدٍ شديد للكفار؛ حتى يعُودُوا عن كفرهم.

ترتيبها المصحفي
70
نوعها
مكية
ألفاظها
217
ترتيب نزولها
79
العد المدني الأول
44
العد المدني الأخير
44
العد البصري
44
العد الكوفي
44
العد الشامي
43

* سورة (المعارج):

سُمِّيت سورة (المعارج) بهذا الاسم؛ لوقوع لفظ (المعارج) فيها؛ قال تعالى: {مِّنَ اْللَّهِ ذِي اْلْمَعَارِجِ} [المعارج: 3]، قال ابنُ جريرٍ: «وقوله: {ذِي اْلْمَعَارِجِ} يعني: ذا العُلُوِّ، والدرجاتِ، والفواضلِ، والنِّعمِ». " جامع البيان" للطبري (29 /44).

1. المقدمة (١-٥).

2. مُنكِرو البعث (٦-٢١).

3. المؤمنون بالبعث (٢٢-٣٥).

4. هل يتساوى الجزاءانِ؟ (٣٦-٤١).

5. تهديدٌ شديد (٤٢-٤٤).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (8 /343).

يقول ابن عاشور عن مقصدها: «تهديدُ الكافرين بعذاب يوم القيامة، وإثباتُ ذلك اليوم، ووصفُ أهواله.
ووصفُ شيء من جلال الله فيه، وتهويلُ دار العذاب - وهي جهنَّمُ -، وذكرُ أسباب استحقاق عذابها.
ومقابلةُ ذلك بأعمال المؤمنين التي أوجبت لهم دارَ الكرامة، وهي أضدادُ صفات الكافرين.
وتثبيتُ النبيِّ صلى الله عليه وسلم، وتسليتُه على ما يَلْقاه من المشركين.
ووصفُ كثيرٍ من خصال المسلمين التي بثها الإسلامُ فيهم، وتحذير المشركين من استئصالهم وتبديلهم بخيرٍ منهم». "التحرير والتنوير" لابن عاشور (29 /153).