ترجمة سورة الحجر

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة الحجر باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

अलिफ़, लाम, रा। वो इस पुस्कत तथा खुले क़ुर्आन की आयतें हैं।
(एक समय आयेगा) जब काफ़िर ये कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता, यदि वे मुसलामन[1] होते?
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1. ऐसा उस समय होगा जब फ़रिश्ते उन की आत्मा निकालने आयेंगे, और उन को उन का नरक का स्थान दिखा देंगे। और क़्यामत के दिन तो ऐसी दुर्दशा होगी कि धूल हो जाने की कामना करेंगे। (देखियेः सूरह नबा, आयतः40)
(हे नबी!)आप उन्हें छोड़ दें, वे खाते तथा आनन्द लेते रहें और उन्हें आशा निश्चेत किये रहे, फिर शीघ्र ही वे जान लेंगे[1]।
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1. अपने दुष्परिणाम का।
और हमने जिस बस्ती को भी ध्वस्त किया, उसके लिए एक निश्चित अवधि अंत थी।
कोई जाति न अपनी निश्चित अवधि से आगे जा सकती है और न पीछे रह सकती है।
तथा उन (काफ़िरों) ने कहाः हे वह व्यक्ति जिसपर ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी गयी है! वास्तव में, तू पागल है।
क्यों हमारे पास फ़रिश्तों को नहीं लाता, यदि तू सचों में से है?
जबकि हम फ़रिश्तों को सत्य निर्णय के साथ ही[1] उतारते हैं और उन्हें उस समय कोई अवसर नहीं दिया जाता।
वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी है और हम ही इसके रक्षक[1] हैं।
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1. यह ऐतिहासिक सत्य है। इस विश्व के धर्म ग्रंथों में क़ुर्आन ही एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिस में उस के अवतरित होने के समय से अब तक एक अक्षर तो क्या एक मात्रा का भी परिवर्तन नहीं हुआ। और न हो सकता है। यह विशेषता इस विश्व के किसी भी धर्म ग्रंथ को प्राप्त नहीं है। तौरात हो अथवा इंजील या इस विश्व के अन्य धर्म शास्त्र हों, सब में इतने परिवर्तन किये गये हैं कि सत्य मूल धर्म की पहचान असंभव हो गय है। इसी प्रकार इस (क़ुर्आन) की व्याख्या जिसे ह़दीस कहा जाता है, वह भी सुरक्षित है। और उस का पालन किये बिना किसी का जीवन इस्लामी नहीं हो सकता। क्यों कि क़ुर्आन का आदेश है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हें जो दें उस को ले लो। और जिस से रोक दें उस से रुक जाओ। (देखियेः सूरह ह़श्र, आयतः 7) क़ुर्आन कहता है कि हे नबी! अल्लाह ने आप पर क़ुर्आन इस लिये उतारा है कि आप लोगों के लिये उस की व्याख्या कर दें। क़ुर्आन कहता है कि हे नबी! (सूरह नह़्ल, आयतः 44) जिस व्याख्या से नमाज़, व्रत आदि इस्लामी अनिवार्य कर्तव्यों की विधि का ज्ञान होता है। इसी लिये उस को सुरक्षित किया गाय है। और हम ह़दीस के एक-एक रावी के जन्म और मौत का समय और उस की पूरी दशा को जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि वह विश्वसनीय है या नहीं? इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि इस संसार में इस्लाम के सिवा कोई धर्म ऐसा नहीं है, जिस की मूल पुस्तकें तथा उस के नबी की सारी बातें सुरक्षित हों।
और हमने आपसे पहले भी प्राचीन (विगत) जातियों में रसूल भेजे।
और उनके पास जो भी रसूल आया, वे उसके साथ परिहास करते रहे।
इसी प्रकार, हम इसे[1] अपराधियों के दिलों में पिरो देते हैं।
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1. अर्थात रसूलों के साथ परिहास को, अर्थात उसे इस का दण्ड देंगे।
वे उसपर ईमान नहीं लाते और प्रथम जातियों से यही रीति चली आ रही है।
और यदि हम उनपर आकाश का कोई द्वार खोल देते, फिर वे उसमें चढ़ने लगते।
तबभी वे यही कहते कि हमारी आँखें धोखा खा रही हैं, बल्कि हमपर जादू कर दिया गया है।
हमने आकाश में राशि-चक्र बनाये हैं और उसे देखने वालों के लिए सुसज्जित किया है।
और उसे प्रत्येक धिक्कारे हुए शैतान से सुरक्षित किया है।
परन्तु जो (शैतान) चोरी से सुनना चाहे, तो एक खुली ज्वाला उसका पीछा करती[1] है।
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1. शैतान चोरी से फ़रिश्तों की बात सुनने का प्रयास करते हैं। तो ज्वलंत उल्का उन्हें मारता है। अधिक विवरण के लिये देखियेः (सूरह मुल्क, आयतः5)
और हमने धरती को फैलाया और उसमें पर्वत बना दिये और उसमें हमने प्रत्येक उचित चीज़ें उगायीं।
और हमने उसमें तुम्हारे लिए जीवन के संसाधन बना दिये तथा उनके लिए जिनके जीविका दाता तुम नहीं हो।
और कोई चीज़ ऐसी नहीं है, जिसके कोष हमारे पास न हों और हम उसे एक निश्चित मात्रा ही में उतारते हैं।
और हमने जलभरी वायुओं को भेजा, फिर आकाश से जल बरसाया और उसे तुम्हें पिलाया तथा तुम उसके कोषाधिकारी नहीं हो।
तथा हम ही जीवन देते तथा मारते हैं और हम ही सबके उत्तराधिकारी हैं।
तथा तुममें से विगत लोगों को जानते हैं और भविष्य के लोगों को भी जानते हैं।
और वास्तव, में आपका पालनहार ही उन्हें एकत्र करेगा[1], निश्चय वह सब गुण और सब कुछ जानने वाला है।
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1. अर्थात प्रलय के दिन ह़िसाब के लिये।
और हमने मनुष्य को सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे बनाया।
और इससे पहले जिन्नों को हमने अग्नि की ज्वाला से पैदा किया।
और (याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहाः मैं एक मनुष्य उत्पन्न करने वाला हूँ, सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से।
तो जब मैं उसे पूरा बना लूँ और उसमें अपनी आत्मा फूँक दूँ, तो उसके लिए सज्दे में गिर जाना[1]।
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1. फ़रिश्तों के लिये आदम का सज्दा अल्लाह के आदेश से उन की परीक्षा के लिये था, किन्तु इस्लाम में मनुष्य के लिये किसी मनुष्य या वस्तु को सज्दा करना शिर्क और अक्षम्य पाप है। (सूरह ह़ा-मीम-सज्दा, आयत संख्याः37)
अतः उनसब फ़रिश्तों ने सज्दा किया।
इब्लीस के सिवा। उसने सज्दा करने वालों का साथ देने से इन्कार कर दिया।
अल्लाह ने पूछाः हे इब्लीस! तुझे क्या हुआ कि सज्दा करने वालों का साथ नहीं दिया?
उसने कहाः मैं ऐसा नहीं हूँ कि एक मनुष्य को सज्दा करूँ, जिसे तूने सड़े हुए कीचड़ के सूखे गारे से पैदा किया है।
अल्लाह ने कहाः यहाँ से निकल जा, वास्तव में, तू धिक्कारा हुआ है।
और तुझपर धिक्कार है, प्रतिकार (प्रलय) के दिन तक।
(इब्लीस) ने कहाः[1] मेरे पालनहार! तू फिर मुझे उस दिन तक अवसर दे, जब सभी पुनः जीवित किये जायेंगे।
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1. अर्थात फ़रिश्ते परीक्षा में सफल हुये और इब्लीस असफल रहा। क्यों कि उस ने आदेश का पालन न कर के अपनी मनमानी की। इसी प्रकार वह भी हैं जो अल्लाह की बात न मान कर मनमानी करते हैं।
अल्लाह ने कहाः तुझे अवसर दे दिया गया है।
विध्दित समय के दिन तक के लिए।
वह बोलाः मेरे पालनहार! तेरे, मुझको कुपथ कर देने के कारण, मैं अवश्य उनके लिए धरती में (तेरी अवज्ञा को) मनोरम बना दूँगा और उनसभी को कुपथ कर दूँगा।
उनमें से तेरे शुध्द भक्तों के सिवा।
अल्लाह ने कहाः यही मुझतक (पहुँचने की) सीधी राह है।
वस्तुतः, मेरे भक्तों पर तेरा कोई अधिकार नहीं[1] चलेगा, सिवाय उसके जो कुपथों में से तेरा अनुसरण करे।
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1. अर्थात जो बन्दे क़ुर्आन तथा ह़दीस (नबी का तरीक़ा) का ज्ञान रखेंगे, उन पर शैतान का प्रभाव नहीं होगा। और जो इन दोनों के ज्ञान से जाहिल होंगे वही उस के झाँसे में आयेंगे। किन्तु जो तौबा कर लें तो उन को क्षमा कर दिया जायेगा।
और वास्तव में, उनसबके लिए नरक का वचन है।
उस (नरक) के सात द्वार हैं और उनमें से प्रत्येक द्वार के लिए एक विभाजित भाग[1] है।
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1. अर्थात इब्लीस के अनुयायी अपने कुकर्मों के अनुसार नरक के द्वार में प्रवेश करेंगे।
वास्तव में, आज्ञाकारी लोग स्वर्गों तथा स्रोतों में होंगे।
(उनसे कहा जायेगा) इसमें प्रवेश कर जाओ, शान्ति के साथ निर्भय होकर।
और हम निकाल देंगे उनके दिलों में जो कुछ बैर होगा। वे भाई-भाई होकर एक-दूसरे के सम्मुख तख़्तों के ऊपर रहेंगे।
न उसमें उन्हें कोई थकान होगी और न वहाँ से निकाले जायेंगे।
(हे नबी!) आप मेरे भक्तों को सूचित कर दें कि वास्तव में, मैं बड़ा क्षमाशील दयावान्[1] हूँ।
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1. ह़दीस में है कि अल्लाह ने सौ दया पैदा की, निन्नानवे अपने पास रख लीं। और एक को पूरे संसार के लिये भेज दिया। तो यदि काफ़िर उस की पूरी दया जान जाये तो स्वर्ग से निराश नहीं होगा। और ईमान वाला उस की पूरी यातना जान जाये तो नरक से निर्भय नहीं होगा। (सह़ीह़ बुख़ारीः6469)
और मेरी यातना ही दुःखदायी यातना है।
और आप उन्हें इब्राहीम के अतिथियों के बारे में सूचित कर दें।
जब वे इब्राहीम के पास आये, तो सलाम किया। उसने कहाः वास्तव में, हम तुमसे डर रहे हैं।
उन्होंने कहाः डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानी बालक की शुभ सूचना दे रहे हैं।
उसने कहाः क्या तुमने मुझे इस बुढ़ापे में शुभ सूचना दी है, तुम मुझे ये शुभ सूचना कैसे दे रहे हो?
उन्होंने कहाः हमने तुम्हें सत्य शुभ सूचना दी है, अतः तुम निराश न हो।
(इब्राहीम) ने कहाः अपने पालनहार की दया से निराश, केवल कुपथ लोग ही हुआ करते हैं।
उसने कहाः हे अल्लाह के भेजे हुए फ़रिश्तो! तुम्हारा अभियान क्या है?
उन्होंने उत्तर दिया कि हम एक अपराधी जाति के पास भेजे गये हैं।
लूत के घराने के सिवा, उनसभी को हम बचाने वाले हैं।
परन्तु लूत की पत्नि के लिए हमने निर्णय किया है कि वह पीछे रह जाने वालों में होगी।
फिर जब लूत के घर भेजे हुए (फ़रिश्ते) आये।
तो लूत ने कहाः तुम (मेरे लिए) अपरिचित हो।
उन्होंने कहाः डरो नहीं, बल्कि हम तुम्हारे पास वो (यातना) लाये हैं, जिसके बारे में वे संदेह कर रहे थे।
हम तुम्हारे पास सत्य लाये हैं और वास्तव में, हम सत्यवादी हैं।
अतः कुछ रात रह जाये, तो अपने घराने को लेकर निकल जाओ और तुम उनके पीछे रहो और तुममें से कोई फिरकर न देखे तथा चले जाओ, जहाँ आदेश दिया जा रहा है।
और हमने लूत को निर्णय सुना दिया कि भोर होते ही इनका उन्मूलन कर दिया जायेगा।
और नगर वासी प्रसन्न होकर आ गये[1]।
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1. अर्थात जब फ़रिश्तों को नवयुवकों के रूप में देखा तो लूत अलैहिस्सलाम के यहाँ आ गये ताकि उन के साथ अश्लील कर्म करें।
लूत ने कहाः ये मेरे अतिथि हैं, अतः मेरा अपमान न करो।
तथा अल्लाह से डरो और मेरा अनादर न करो।
उन्होंने कहाः क्या हमने तुम्हें विश्व वासियों से नहीं रोका[1] था?
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1. सब के समर्थक न बनो।
लूत ने कहाः ये मेरी पुत्रियाँ हैं, यदि तुम कुछ करने वाले[1] हो।
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1. अरथात् इन से विवाह कर लो, और अपनी कामवासना पूरी करो, और कुकर्म न करो।
हे नबी! आपकी आयु की शपथ[1]! वास्तव में, वे अपने उन्माद में बहक रहे थे।
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1. अल्लाह के सिवा किसी मनुष्य के लिये उचित नहीं है कि वह अल्लाह के सिवा किसी और चीज़ की शपथ ले।
अंततः, सूर्योदय के समय उन्हें एक कड़ी ध्वनि ने पकड़ लिया।
फिर हमने उस बस्ती के ऊपरी भाग को नीचे कर दिया और उनपर कंकरीले पत्थर बरसा दिये।
वास्तव में, इसमें कई निशानियाँ हैं, प्रतिभाशालियों[1] के लिए।
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1. अर्थात जो लक्षणों से तथ्य को समझ जाते हैं।
और वह (बस्ती) साधारण[1] मार्ग पर स्थित है।
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1. अर्थात जो साधारण मार्ग ह़िजाज़ (मक्का) से शाम को जाता है। यह शिक्षा प्रद बस्ती उसी मार्ग में आती है, जिस से तुम गुज़रते हुये शाम जाते हो।
निःसंदेह इसमें बड़ी निशानी है, ईमान वलों के लिए।
और वास्तव में, (ऐय्का) के[1] वासी अत्याचारी थे।
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1. इस से अभिप्रेत शोऐब अलैहिस्सलाम की जाति है, ऐय्का का अर्थ वन तथा झाड़ी है।
तो हमने उनसे बदला ले लिया और वे दोनों[1] ही साधारण मार्ग पर हैं।
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1. अर्थात मद्यन और ऐय्का का क्षेत्र भी ह़िजाज़ से फ़िलस्तीन और सीरिया जाते हुये, राह में पड़ता है।
और ह़िज्र के[1] लोगों ने रसूलों को झुठलाया।
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1. ह़िज्र समूद जाति की बस्ती थी, जो सालेह (अलैहिस्सलाम) की जाति थी, यह बस्ती मदीना और तबूक के बीच में स्थित थी।
और उन्हें हमने अपनी आयतें (निशानियाँ) दीं, तो वे उनसे विमुख ही रहे।
वे शिलाकारी करके पर्वतों से घर बनाते और निर्भय होकर रहते थे।
अन्ततः, उन्हें कड़ी ध्वनि ने भोर के समय पकड़ लिया।
और उनकी कमाई उनके कुछ काम न आयी।
और हमने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उन दोनों के बीच है, सत्य के आधार पर ही उत्पन्न किया है और निश्चय प्रलय आनी है। अतः (हे नबी!) आप (उन्हें) भले तौर पर क्षमा कर दें।
वास्तव में, आपका पालनहार ही सबका स्रेष्टा, सर्वज्ञ है।
तथा (हे नबी!) हमने आपको सात ऐसी आयतें, जो बार-बार दुहराई जाती हैं और महा क़ुर्आन[1] प्रदान किया है।
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1. अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अनहु ने कहा कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि उम्मुल क़ुर्आन (सूरह फ़ातिह़ा) ही वह सात आयतें हैं जो दुहराई जाती हैं, तथा महाक़ुर्आन हैं। (सह़ीह़ बुख़ारीः4704) एक दूसरी ह़दीस में है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः "अल्ह़म्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन" ही वह सात आयतें हैं जो बाब-बार दुहराई जाती हैं, और महा क़ुर्आन हैं, जो मुझे प्रदान किया गया है। (संक्षिप अऩुवाद, सह़ीह़ बुख़ारीः4702) यही कारण है कि इस के पढ़े बिना नमाज़ नहीं होती। ( सह़ीह़ बुख़ारीः756, मुस्लिमः 394)
और आप, उसकी ओर न देखें, जो सांसारिक लाभ का संसाधन हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दे रखा है और न उनपर शोक करें और ईमान वालों के लिए सुशील रहें।
और कह दें कि मैं प्रत्यक्ष (खुली) चेतावनी[1] देने वाला हूँ।
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1. अर्थात अवैज्ञा पर यातना की।
जैसे हमने खण्डन कारियों[1] पर (यातना) उतारी।
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1. खण्डन कारियों से अभिप्राय यहूद और ईसाई हैं। जिन्हों ने अपनी पुस्तकों तौरात तथा इंजील को खण्ड खण्ड कर दिया। अर्थात उन के कुछ भाग पर ईमान लाये और कुछ को नकार दिया। (सह़ीह़ बुख़ारीः4705-4706)
जिन्होंने क़ुर्आन को खण्ड-खण्ड कर दिया[1]।
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1. इसी प्रकार इन्हों ने भी क़ुर्आन के कुछ भाग को मान लिया और कुछ का अगलों की कहानियाँ बता कर इन्कार कर दिया। तो ऐसे सभी लोगों से प्रलय के दिन पूछ होगी कि मेरी पुस्तकों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया?
तो शपथ है आपके पालनहार की। हम उनसे अवश्य पूछेंगे।
तुम क्या करते रहे?
अतः आपको, जो आदेश दिया जा रहा है, उसे खोलकर सुना दें और मुश्रिकों (मिश्रमवादियों) की चिन्ता न करें।
हम आपके लिए परिहास करने वालों को काफ़ी हैं।
जो अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य बना लेते हैं, तो उन्हें शीघ्र ज्ञान हो जायेगा।
और हम जानते हैं कि उनकी बातों से आपका दिल संकुचित हो रहा है।
अतः आप अपने पालनहार की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करें तथा सज्दा करने वालों में रहें।
और अपने पालनहार की इबादत (वंदना) करते रहें, यहाँ तक कि आपके पास विश्वास आ जाये[1]।
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1. अर्थात मरण का समय जिस का विश्वास सभी को है। (क़ुर्तुबी)
سورة الحجر
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الأقوال
التفسيرات

سورةُ (الحِجْرِ) مِن السُّوَر المكية، وقد سعَتْ هذه السورةُ إلى إقامةِ الحُجَّة على الكافرين في سنَّةِ الله في إرسال الرُّسُل، الذين أوضَحوا طريق الحقِّ والهداية ودعَوْا إليه، وبيَّنُوا طريقَ الغَوايةِ وحذَّروا منه، وجاءت هذه السورةُ بأمرٍ للنبيِّ صلى الله عليه وسلم بالاستمرار في طريق الدعوة، والدَّلالة على الله عز وجل؛ فالله ناصرُه وكافيه: {فَاْصْدَعْ بِمَا تُؤْمَرُ} [الحجر: 94].

ترتيبها المصحفي
15
نوعها
مكية
ألفاظها
658
ترتيب نزولها
54
العد المدني الأول
99
العد المدني الأخير
99
العد البصري
99
العد الكوفي
99
العد الشامي
99

سورةُ (الحِجْرِ):

سُمِّيتْ سورةُ (الحِجْرِ) بذلك؛ لذِكْرِ (الحِجْرِ) فيها، ولم يُذكَرْ في أيِّ سورة أخرى.

جاءت موضوعاتُ السورة على النحو الآتي:

1. سُنَّة الله تعالى في إرسال الرسل (١-١٥).

2. إقامة الحُجة على الكافرين (١٦- ٢٥).

3. بيان أصل الغَواية والهِداية (٢٦- ٤٨).

4. مَصارِعُ الغابرين (٤٩-٨٤).

5. الخطاب للرسول الكريم صلى الله عليه وسلم بالمُضيِّ في أمرِ الدعوة (٨٥- ٩٩).

ينظر: "التفسير الموضوعي للقرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (4 /93).

مِن مقاصدِ السورة: وصفُ الكتاب بأنه في الذِّروة من الجمعِ للمعاني، الموضِّحةِ للحق من غير اختلافٍ أصلًا، وأقرَبُ ما فيها وأمثَلُه وأشبَهُه بهذا المعنى: قصةُ أصحاب (الحِجْرِ).

وكذا مِن مقاصدها: تثبيتُ الرسول صلى الله عليه وسلم، وانتظارُ ساعة النَّصر، وأن يَصفَحَ عن الذين يؤذونه، ويَكِلَ أمرهم إلى الله، ويشتغِلَ بالمؤمنين، وأن اللهَ كافِيهِ أعداءَه.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /20) ، "التَّحرير والتنوير" لابن عاشور (14 /7).