ترجمة سورة ص

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة ص باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

साद। शपथ है शिक्षाप्रद क़ुर्आन की!
बल्कि, जो काफ़िर हो गये, वे एक गर्व तथा विरोध में ग्रस्त हैं।
हमने विनाश किया है इनसे पूर्व, बहुत-से समुदायों का। तो वे पुकारने लगे और नहीं होता वह बचने का समय।
तथा उन्हें आश्चर्य हुआ कि आ गया उनके पास, उन्हीं मेंसे एक सचेत करने[1] वाला! और कह दिया काफ़िरों ने कि ये तो बड़ा झूठा जादूगर है।
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1. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)
क्या उसने बना दिया है सब पूज्यों को एक पूज्य? ये तो बड़े आश्चर्य का विषय है।
तथा चल दिये उनके प्रमुख, (ये) कहते हुए कि चलो, दृढ़ रहो अपने पूज्यों पर। इस बात का कुछ और ही लक्ष्य[1] है।
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1. अर्थात एकेश्वरवाद की यह बात सत्य नहीं है और ऐसी बात अपने किसी स्वार्थ के लिये की जा रही है।
हमने नहीं सुनी ये बात प्राचीन धर्मों में, ये तो बस मनघड़त बात है।
क्या उसीपर उतारी गई है ये शिक्षा हमारे बीच में से? बल्कि वे संदेह में हैं मेरी शिक्षा से। बल्कि उन्होंने अभी यातना नहीं चखी है।
अथवा उनके पास हैं, आपके अत्यंत प्रभुत्वशाली प्रदाता पालनहार की दया के कोष?[1]
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1. कि वह जिसे चाहें नबी बनायें?
अथवा उन्हीं का है राज्य, आकाशों तथा धरती का और जो कुछ उन दोनों के मध्य है? तो उन्हें चाहिये कि चढ़ जायें (आकाशों में) रस्सियाँ तान[1] कर।
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1. और मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर प्रकाशना के अवतरण को रोक दें।
ये एक तुच्छ सेना है, यहाँ प्राजित सेनाओं[1] में से।
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1. अर्थात इन मक्का वासियों के पराजित होने में देर नहीं लगेगी।
झुठलाया इनसे पहले नूह़ तथा आद और शक्तिवान फ़िरऔन की जाति ने।
तथा समूद और लूत की जाति एवं वन के वासियों[1] ने। यही सेनायें हैं।
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1. इस से अभिप्राय शुऐब (अलैहिस्सलाम) की जाति है। (देखियेः सूरह शुअरा, आयतः176)
इन सभी ने झुठलाया रसूलों को, तो मेरी यातना सिध्द हो गयी।
और ये नहीं प्रतीक्षा कर रहे हैं, परन्तु एक कर्कश ध्वनि की जिसके लिए कुछ भी देर नहीं होगी।
तथा उन्होंने कहा कि हे हमारे पालनहार! शीघ्र प्रदान कर दे हमारे लिए हमारी (यातना का) भाग ह़िसाब के दिन से पहले।[1]
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1. अर्थात वह उपहास स्वरूप कहते हैं कि प्रलय से पहले ही संसार में हमें यातना मिल जाये। अर्थ यह है कि हमें कोई यातना नहीं दी जायेगी।
आप सहन करें उसपर, जो वे कह रहे हैं तथा याद करें हमारे भक्त दावूद को, जो अत्यंत शक्तिशाली था। निश्चय वह ध्यानमग्न था।
हमने वश्वर्ती कर दिया था पर्वतों को, जो उसके साथ पवित्रता गान करते थे, संध्या तथा प्रातः।
तथा पक्षियों को एकत्रित किये हुए, प्रत्येक उसके अधीन ध्यानमग्न रहते थे।
और हमने दृढ़ किया उसके राज्य को और हमने प्रदान की उसे नबूवत तथा निर्णय शक्ति।
तथा क्या आया आपके पास दो पक्षों का समाचार, जब वे दीवार फाँदकर मेह़राब (वंदना स्थल) में आ गये?
जब उन्होंने प्रवेश किया दावूद पर, तो वह घबरा गया उनसे। उन्होंने कहाः डरिये नहीं। हम दो पक्ष हैं, अत्याचार किया है, हममें से एक ने, दूसरे पर। तो आप निर्णय कर दें हमारे बीच सत्य (न्याय) के साथ तथा अन्याय न करें तथा हमें दर्शा दें सीधी राह।
ये मेरा भाई है, इसके पास निन्नान्वे भेड़ हैं और मेरे पास भेड़ है। ये कहता है कि वह (भी) मुझे दे दो और ये प्रभावशाली हो गया मुझपर बात करने में।
दावूद ने कहाः उसने तुमपर अवश्य अत्याचार किया, तुम्हारी भेड़ को (मिलाने की) माँग करके अपनी भेड़ों में तथा बहुत-से साझी एक-दूसरे पर एत्याचार करते हैं, उनके सिवा, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये और बहुत थोड़े हैं ऐसे लोग और दावूद ने भाँप ली कि हमने उसकी परीक्षा ली है, तो सहसा उसने क्षमा याचना कर ली और गिर गया सज्दे में तथा ध्यानमग्न हो गया।
तो हमने क्षमा कर दिया उसके लिए वह तथा उसके लिए हमारे पास निश्चय सामिप्य है तथा अच्छा स्थान।
हे दाऊद! हमने तुझे राज्य दिया है धरती में। अतः, निर्णय कर, लोगों के बीच सत्य (न्याय) के साथ तथा अनुसरण न कर आकांक्षा का। अन्यथा, वह कुपथ कर देगी तुझे अल्लाह की राह से। निःसंदेह, जो कुपथ हो जायेंगे अल्लाह की राह[1] से, तो उन्हीं के लिए घोर यातना है, इस कारण कि वे भूल गये ह़िसाब का दिन।
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1. अल्लाह की राह से अभिप्राय उस का धर्म विधान है।
तथा नहीं पैदा किया है हमने आकाश और धरती को तथा जो कुछ उनके बीच है, व्यर्थ। ये तो उनका विचार है, जो काफ़िर हो गये। तो विनाश है उनके लिए, जो काफ़िर हो गये अग्नि से।
क्या हम कर देंगे उन्हें, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनके समान, जो उपद्रवी हैं धरती में? या कर देंगे आज्ञाकारियों को उल्लंघनकारियों के समान?[1]
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1. यह प्रश्न नकारात्मक है और अर्थ यह है कि दोनों का परिणाम समान नहीं होगा।
ये (क़ुर्आन) एक शूभ पुस्तक है, जिसे हमने अवतरित किया है आपकी ओर, ताकि लोग विचार करें उसकी आयतों पर और ताकि शिक्षा ग्रहण करें मतिमान।
तथा हमने प्रदान किया दावूद को सुलैमान (नामक पुत्र)। वह अति ध्यानमग्न था।
जब प्रस्तुत किये गये उसके समक्ष संध्या के समय सधे हुए वेगगामी घोड़े।
तो कहाः मैंने प्राथमिक्ता दी इन घोड़ों के प्रेम को अपने पालनहार के स्मरण पर। यहाँ तक कि वे ओझल हो गये।
उन्हें वापिस लाओ मेरे पास। फिर हाथ फेरने लगे उनकी पिंडलियों तथा गर्दनों पर।
और हमने परीक्षा[1] ली सुलैमान की तथा डाल दिया उसके सिंहासन पर एक धड़। फिर वह ध्यानमग्न हो गया।
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1. ह़दीस से भाष्यकारों ने लिखा है कि सुलैमान अलैहिस्सलाम ने एक बार कहा कि मैं आज रात अपनी सभी पत्नियों जितनी संख्या 70 अथवा 90 थी, से संभोग करूँगा। जिन से योध्दा घुड़सवार पैदा होंगे जो अल्लाह की राह मे जिहाद करेंगे। तथा उन्हों ने यह नहीं कहाः यदि अल्लाह ने चाहा। जिस का परिणाम यह हुआ कि केवल एक ही पत्नि गर्भवति हुई। और उस ने भी अधूरे शिशु को जन्म दिया। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहाः वह ((यदि अल्लाह ने चाहा)) कह देते तो सब योध्दा पैदा होते। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्याः6639, सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस संख्याः1656)
उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे क्षमा कर दे तथा मुझे प्रदान कर ऐसा राज्य, जो उचित न हो किसी के लिए मेरे पश्चात्। वास्तव में, तू ही अति प्रदाता है।
तो हमने वश में कर दिया उसके लिए वायु को, जो चल रही थी धीमी गति से उसके आदेश से, वह जहाँ चाहता।
तथा शैतानों को प्रत्येक प्रकार के निर्माता तथा ग़ोता ख़ोर को।
तथा दूसरों को बंधे हुए बेड़ियों में।
ये हमारा प्रदान है। तो उपकार करो अथवा रोक लो, कोई ह़िसाब नहीं।
और वास्तव में, उसके लिए हमारे पास सामिप्य तथा उत्तम स्थान है।
तथा याद करो हमारे भक्त अय्यूब को। जब उसने पुकारा अपने पालनहार को कि शैतान ने मुझे पहुँचाया[1] है दुःख तथा यातना।
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1. अर्थात मेरे दुःख तथा यातना के कारण मुझे शैतान उकसा रहा है तथा वह मुझे तेरी दया से निराश करना चाहता है।
अपना पाँव (धरती पर) मार। ये है शीतल स्नान तथा पीने का जल।
और हमने प्रदान किया उसे उसका परिवार तथा उनके साथ और उनके समान, अपनी दया से और मतिमानों की शिक्षा के लिए।
तथा ले अपने हाथ में तीलियों की एक झाड़ तथा उससे मार और अपनी शपथ भंग न कर। वास्तव[1] में, हमने उसे पाया धैर्यवान। निश्चय, वह बड़ा ध्यानमग्न था।
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1. अय्यूब (अलैहिस्सलाम) की पत्नी से कुछ चूक हो गई जिस पर उन्हों ने उसे सौ कोड़े मारने की शपथ ली थी।
तथा याद करो हमारे भक्त इब्राहीम, इस्ह़ाक़ एवं याक़ूब को, जो कर्म शक्ति तथा ज्ञानचक्षू[1] वाले थे।
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1. अर्थात आज्ञा पालन में शक्तिवान तथा धर्म का बोध रखते थे।
हमने उसे विशेष कर लिया बड़ी विशेषता, परलोक (आख़िरत) की याद के साथ।
वास्तव में, वह हमारे यहाँ उत्तम निर्वाचितों में से थे।
तथा आप चर्चा करें इस्माईल, यसअ एवं ज़ुल्किफ़्ल की और ये सभी निर्वाचितों में से थे।
ये (क़ुर्आन) एक शिक्षा है तथा निश्चय आज्ञाकारियों के लिए उत्तम स्थान है।
स्थायी स्वर्ग, खुले हुए हैं उनके लिए (उनके) द्वार।
वे तकिये लगाये होंगे उनमें। माँगेंगे उनमें बहुत-से फल तथा पेय पदार्थ।
तथा उनके पास आँखे सीमित रखनी वाली समायु पत्नियाँ होंगी।
ये है जिसका वचन दिया जा रहा था तुम्हें, ह़िसाब के दिन।
ये है हमारी जीविका, जिसका कोई अन्त नहीं है।
ये है और अवज्ञाकारियों के लिए निश्चय बुरा स्थान है।
नरक है, जिसमें वे जायेंगे, क्या ही बुरा आवास है।
ये है। तो तुम चखो, खौलता पानी तथा पीप।
तथा कुछ अन्य इसी प्रकार की विभिन्न यातनायें।
ये[1] एक और जत्था है, जो घुसा आ रहा है तुम्हारे साथ। कोई स्वागत नहीं है उनका। वास्तव में, वे नरक में प्रवेश करने वाले हैं।
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1. यह बात काफ़िरों के प्रमुख जो पहले से नरक में होंगे अपने उन अनुयायियों से कहेंगे जो संसार में उन के अनुयायी बने रहे उस समय जब उन के अनुयायियों का गिरोह नरक में आने लगेगा।
वे उत्तर देंगेः बल्कि तुम। तुम्हारा कोई स्वागत नहीं। तुम ही आगे लाये हो इस (यातना) को हमारे। तो ये बुरा निवास है।
(फिर) वे कहेंगेः हमारे पालनहार! जो हमारे आगे लाया है इसे, उसे दुगनी यातना दे नरक में।
तथा (नारकी) कहेंगेः हमें क्या हुआ है कि हम कुछ लोगों को नहीं देख रहे हैं, जिनकी गणना हम बुरे लोगों में कर[1] रहे थे?
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1. इस से उन का संकेत उन निर्धन-निर्बल मुसलमानों की ओर होगा जिन्हें वह संसार में उपद्रवी कह रहे थे।
क्या हमने उन्हें उपहास बना रखा था अथवा चूक रही हैं उनसे हमारी आँखें?
निश्चय सत्य है नारकियों का आपस में झगड़ना।
हे नबी! आप कह दें: मैं तो मात्र सचेत करने वाला[1] हूँ तथा कोई ( सच्चा) पूज्य नहीं है, अकेले प्रभावशाली अल्लाह के सिवा।
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1. क़ुर्आन ने इसे बहुत सी आयतों में दुहराया है कि नबियों का कर्तव्य मात्र सत्य को पहुँचाना है। किसी को बल पूर्वक सत्य को मनवाना नहीं है।
वह आकाशों तथा धरती का और जो कुछ उन दोनों के मध्य है, सबका पालनहार, अति प्रभावशाली, क्षमी है।
आप कह दें कि ये[1] बहुत बड़ी सूचना है।
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1. परलोक की यातना तथा तौहीद (एकेश्वरवाद) की जो बातें तुम्हें बता रहा हूँ।
और तुम हो कि उससे मुँह फेर रहे हो।
मुझे कोई ज्ञान नहीं है, उच्च सभा वाले (फ़रिश्ते) जब वाद-विवाद कर रहे थे।
मेरी ओर तो मात्र इसलिए वह़्यी (प्रकाशना) की जा रही है कि मैं खुला सचेत करने वाला हूँ।
जबकि कहा आपके पालनहार ने फ़रिश्तों सेः मैं पैदा करने वाला हूँ एक मनुष्य, मिट्टी से।
तो जब मैं उसे बराबर कर दूँ तथा फूँक दूँ उसमें, अपनी ओर से रूह़ (प्राण), तो गिर जाओ उसके लिए सज्दा करते हुए।
तो सज्दा किया सभी फ़रिश्तों ने एक साथ।
इब्लीस के सिवा, उसने अभिमान किया और हो गया काफ़िरों में से।
अल्लाह ने कहाः हे इब्लीस! किस चीज़ ने तुझे रोक दिया सज्दा करने से उसके लिए, जिसे मैंने पैदा किया अपने हाथ से? क्या तू अभिमान कर गया अथवा वास्तव में तू ऊँचे लोगों में से है?
उसने कहाः मैं उससे उत्तम हूँ। तूने मुझे पैदा किया है अग्नि से तथा उसे पैदा किया मिट्टी से।
अल्लाह ने कहाः तू निकल जा यहाँ से, तू वास्तव में धिक्कृत है।
तथा तुझपर मेरी दया से दूरी है, प्रलय के दिन तक।
उसने कहाः मेरे पालनहार! मुझे अवसर दे उस दिन तक, जब लोग पुनः जीवित किये जायेंगे।
अल्लाह ने कहाः तुझे अवसर दे दिया गया।
निर्धारित समय के दिन तक।
उसने कहाः तो तेरे प्रताप की शपथ! मैं अवश्य कुपथ करके रहूँगा सबको।
तेरे शुध्द भक्तों के सिवा उनमें से।
अल्लाह ने कहाः तो ये सत्य है और मैं सत्य ही कहा करता हूँ:
कि अवश्य भर दूँगा नरक को तुझसे तथा जो तेरा अनुसरण करेंगे उनसबसे।
(हे नबी!) कह दें कि मैं नहीं माँग करता हूँ तुमसे इसपर किसी पारिश्रमिक की तथा मैं नहीं हूँ अपनी ओर से कुछ बनाने वाला।
नहीं है ये (क़ुर्आन), परन्तु एक शिक्षा, सर्वलोक वासियों के लिए।
तथा तुम्हें अवश्य ज्ञान हो जायेगा उसके समाचार (तथ्य) का, एक समय के पश्चात्।
سورة ص
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التفسيرات

سورةُ (ص) من السُّوَر المكِّية، افتُتِحت بالإشارة إلى عظمةِ القرآن، وما كان من الكفار مِن تعجُّبٍ وتعنُّتٍ واستكبار، وقد ذكَّرهم اللهُ بما نال أسلافَهم من العذاب؛ تحذيرًا لهم، ودعوةً إلى الإيمان بالله والرُّجوع إلى الحق، كما جاءت السورةُ على ذِكْرِ قصص الأنبياء، وبيانِ مهمة الأنبياء، مختتمةً بذِكْرِ خَلْقِ الله لآدمَ وإكرامِه.

ترتيبها المصحفي
38
نوعها
مكية
ألفاظها
736
ترتيب نزولها
38
العد المدني الأول
86
العد المدني الأخير
86
العد البصري
86
العد الكوفي
88
العد الشامي
86

* سورة (ص):

سُمِّيت سورةُ (ص) بهذا الاسم؛ لافتتاحِها بهذا اللفظ.

* هي السُّورة التي سجَد لسماعها الشَّجَرُ واللَّوح، والدَّواةُ والقلم:

عن عبدِ اللهِ بن عباسٍ رضي الله عنهما، قال: «جاءَ رجُلٌ إلى النبيِّ ﷺ، فقال: يا رسولَ اللهِ، رأَيْتُ كأنِّي نائمٌ إلى جَنْبِ شجرةٍ وأنا أقرَأُ سورةَ {صٓ}، فلمَّا بلَغْتُ إلى قولِه تعالى: {وَخَرَّۤ رَاكِعٗاۤ وَأَنَابَ ۩} [ص: 24]، سجَدتُّ، فرأَيْتُ الشَّجرةَ سجَدتْ، وقالت: يا ربِّ، أعظِمْ بها أجري، واجعَلْها لي عندك ذُخْرًا، وتقبَّلْها منِّي كما تقبَّلْتَ مِن عبدِك داودَ». قال ابنُ عباسٍ: «رأيتُ النبيَّ ﷺ سجَدَ، وقال في سجودِه ما قال ذلك الرَّجُلُ حاكيًا عن تلكَ الشجرةِ». "الإرشاد في معرفة علماء الحديث" للخليلي (1 /353).
وقريبٌ منه ما جاء عن أبي سعيدٍ - رضي الله عنه -، قال: «رأيتُ رُؤْيا وأنا أكتُبُ سورةَ {صٓ}، قال: فلمَّا بلَغْتُ السَّجْدةَ، رأَيْتُ الدَّواةَ والقلَمَ وكلَّ شيءٍ بحَضْرتي انقلَبَ ساجدًا، قال: فقصَصْتُها على رسولِ اللهِ صلى الله عليه وسلم، فلم يَزَلْ يسجُدُ بها». أخرجه أحمد (11799).

اشتمَلتْ سورةُ (ص) على الموضوعات الآتية:

1. موقف الكافرين من القرآن (١-١١).

2. تذكير الكافرين بما نال أسلافَهم من العذاب (١٢-١٦).

3. قصص الأنبياء (١٧-٥٤).

4. قصة داودَ (١٧-٢٦).

5. الحِكْمة من خَلْقِ الأكوان، وإنزالِ القرآن (٢٧-٢٩).

6. قصة سُلَيمانَ (٣٠-٤٠).

7. قصة أيُّوبَ (٤١-٤٤).

8. قصة إبراهيمَ وذُرِّيته (٤٥-٥٤).

9. عقاب الطاغين الأشقياء (٥٥-٦٤).

10. مهمة الرسول، ووَحْدانية الله (٦٥-٧٠).

11. خَلْقُ آدمَ وإكرامُه (٧١-٨٨).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (6 /439).

مقصدُ سورة (ص) هو بيانُ موقفِ الكفار من هذا الكتابِ، وتعنُّتِهم واستكبارهم، وخِذْلانِ الله لهم، وكذلك بيان نُصْرةِ الله لجنده، وعِزَّةِ المؤمنين وقُوَّتهم بعد ضَعْفٍ، وإعلائهم بمَعِيَّةِ الله لهم.

ينظر: "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (2 /416).