ترجمة سورة الليل

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة الليل باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

रात्रि की शपथ, जब छा जाये!
तथा दिन की शपथ, जब उजाला हो जाये!
और उसकी शपथ जिसने नर और मदा पैदा किये!
वास्तव में, तुम्हारे प्रयास अलग-अलग हैं।[1]
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1. (1-4) इन आयतों का भावार्थ यह है कि जिस प्रकार रात दिन तथा नर मादा (स्त्री-पुरुष) भिन्न हैं, और उन के लक्षण और प्रभाव भी भिन्न हैं, इसी प्रकार मानव जाति (इन्सान) के विश्वास, कर्म भी दो भिन्न प्रकार के हैं। और दोनों के प्रभाव और परिणाम भी विभिन्न हैं।
फिर जिसने दान दिया और भक्ति का मार्ग अपनाया,
और भली बात की पूष्टि करता रहा,
तो हम उसके लिए सरलता पैदा कर देंगे।
परन्तु, जिसने कंजूसी की और ध्यान नहीं दिया,
और भली बात को झुठला दिया।
तो हम उसके लिए कठिनाई को प्राप्त करना सरल कर देंगे।[1]
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1. (5-10) इन आयतों में दोनों भिन्न कर्मों के प्रभाव का वर्णन है कि कोई अपना धन भलाई में लगाता है तथा अल्लाह से डरता है और भलाई को मानता है। सत्य आस्था, स्वभाव और सत्कर्म का पालन करता है। जिस का प्रभाव यह होता है कि अल्लाह उस के लिये सत्कर्मों का मार्ग सरल कर देता है। और उस में पाप करने तथा स्वार्थ के लिये अवैध धन अर्जन की भावना नहीं रह जाती। ऐसे व्यक्ति के लिये दोनों लोक में सुख है। दूसरा वह होता है जो धन का लोभी, तथा अल्लाह से निश्चिन्त होता है और भलाई को नहीं मानता। जिस का प्रभाव यह होता है कि उस का स्वभाव ऐसा बन जाता है कि उसे बुराई का मार्ग सरल लगने लगता है। तथा अपने स्वार्थ और मनोकामना की पूर्ति के लिये प्रयास करता है। फिर इस बात को इस वाक्य पर समाप्त कर दिया गया है कि धन के लिये वह जान देता है परन्तु वह उसे अपने साथ ले कर नहीं जायेगा। फिर वह उस के किस काम आयेगा?
और जब वह गढ़े में गिरेगा, तो उसका धन उसके काम नहीं आयेगा।
हमारा कर्तव्य इतना ही है कि हम सीधा मार्ग दिखा दें।
जबकि आलोक-परलोक हमारे ही हाथ में है।
मैंने तुम्हें भड़कती आग से सावधान कर दिया है।[1]
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1. (11-14) इन आयतों में मानव जाति (इन्सान) को सावधान किया गया है कि अल्लाह का, दया और न्याय के कारण मात्र यह दायित्व था कि सत्य मार्ग दिखा दे। और क़ुर्आन द्वारा उस ने अपना यह दायित्व पूरा कर दिया। किसी को सत्य मार्ग पर लगा देना उस का दायित्व नहीं है। अब इस सीधी राह को अपनाओगे तो तुम्हारा ही भला होगा। अन्यथा याद रखो कि संसार और परलोक दोनों ही अल्लाह के अधिकार में हैं। न यहाँ कोई तुम्हें बचा सकता है, और न वहाँ कोई तुम्हारा सहायतक होगा।
जिसमें केवल बड़ा हत्भागा ही जायेगा।
जिसने झुठला दिया तथा (सत्य से) मुँह फेर लिया।
परन्तु, संयमी (सदाचारी) उससे बचा लिया जायेगा।
जो अपना धन, दान करता है, ताकि पवित्र हो जाये।
उसपर किसी का कोई उपकार नहीं, जिसे उतारा जा रहा है।
वह तो केवल अपने परम पालनहार की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए है।
निःसंदेह, वह प्रसन्न हो जायेगा।[1]
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1. (15-21) इन आयतों में यह वर्णन किया गया है कि कौन से कुकर्मी नरक में पड़ेंगे और कौन सुकर्मी उस से सुरक्षित रखे जायेंगे। और उन्हें क्या फल मिलेगा। आयत संख्या 10 के बारे में यह बात याद रखने की है कि अल्लाह ने सभी वस्तुओं और कर्मों का अपने नियमानुसार स्वभाविक प्रभाव रखा है। और क़ुर्आन इसी लिये सभी कर्मों के स्वभाविक प्रभाव और फल को अल्लाह से जोड़ता है। और यूँ कहता है कि अल्लाह ने उस के लिये बुराई की राह सरल कर दी। कभी कहता है कि उन के दिलों पर मुहर लगा दी, जिस का अर्थ यह होता है कि यह अल्लाह के बनाये हुये नियमों के विरोध का स्वभाविक फल है। (देखियेः उम्मुल किताब, मौलाना आज़ाद)
سورة الليل
معلومات السورة
الكتب
الفتاوى
الأقوال
التفسيرات

سورة (اللَّيل) مكية، نزلت بعد سورة (الأعلى)، وقد افتُتحت بقَسَم الله عز وجل بـ(اللَّيل)، وهو آيةٌ من آيات الله الدالةِ على عظمته وقُدْرته وتصرُّفه في هذا الكون، وبيَّنت السورة الكريمة تبايُنَ مَساعي البشر، المؤديَ إلى تبايُنِ مستقرَّاتهم في الدار الآخرة، وفي ذلك دعوةٌ إلى السعيِ إلى الخير، وتركِ الشر.

ترتيبها المصحفي
92
نوعها
مكية
ألفاظها
71
ترتيب نزولها
9
العد المدني الأول
21
العد المدني الأخير
21
العد البصري
21
العد الكوفي
21
العد الشامي
21

* سورة (اللَّيل):

سُمِّيت سورة (اللَّيل) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بقَسَمِ الله عز وجل بـ(اللَّيل).

1. القَسَم على تبايُنِ سعي البشر (١-٤).

2. اعملوا فكلٌّ مُيسَّر (٥-١٣).

3. إنذار وتحذير (١٤- ٢١).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (9/172).

بيانُ قدرة الله عزَّ وجلَّ، وتصرُّفِه في هذا الكون، وتبايُنِ سعيِ البشر المؤدي إلى تباين مآلاتهم.

ينظر: "التحرير والتنوير" لابن عاشور (30 /378).