ترجمة سورة العاديات

الترجمة الهندية

ترجمة معاني سورة العاديات باللغة الهندية من كتاب الترجمة الهندية.
من تأليف: مولانا عزيز الحق العمري .

उन घोड़ों की शपथ, जो दौड़कर हाँफ जाते हैं!
फिर पत्थरों पर टाप मारकर चिंगारियाँ निकालने वालों की शपथ!
फिर प्रातः काल में धावा बोलने वालों की शपथ!
जो धूल उड़ाते हैं।
फिर सेना के बीच घुस जाते हैं।
वास्तव में, इन्सान अपने पालनहार का बड़ा कृतघ्न (नाशुकरा) है।
निश्चित रूप से, वह इसपर स्वयं साक्षी (गवाह) है।[1]
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1. (1-7) इन आरंभिक आयतों में मानव जाति (इन्सान) की कृतघ्नता का वर्णन किया गया है। जिस की भूमिका के रूप में एक पशु की कृतज्ञता को शपथ स्वरूप उदाहरण के लिये प्रस्तुत किया गया है। जिसे इन्सान पोसता है, और वह अपने स्वामी का इतना भक्त होता है कि उसे अपने ऊपर सवार कर के नीचे ऊँचे मार्गों पर रात दिन की परवाह किये बिना दौड़ता और अपनी जान जोखिम में डाल देता है। परन्तु इन्सान जिसे अल्लाह ने पैदा किया, समझ बूझ दी और उसके जीवन यापन के सभी साधन बनाये, वह उस का उपकार नीं मानता और जान बूझ कर उस की अवज्ञा करता है, उसे इस पशु से शिक्षा लेनी चाहिये।
वह धन का बड़ा प्रेमी है।[1]
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1. इस आयत में उस की कृतघ्नता का कारण बताया गया है कि जिस इन्सान को सर्वाधिक प्रेम अल्लाह से होना चाहिये वही अत्याधिक प्रेम धन से करता है।
क्या वह उस समय को नहीं जानता, जब क़ब्रों में जो कुछ है, निकाल लिया जायेगा?
और सीनों के भेद प्रकाश में लाये जायेंगे?[1]
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1. (9-10) इन आयतों में सावधान किया गया है कि संसारिक जीवन के पश्चात एक दूसरा जीवन भी है तथा उस में अल्लाह के सामने अपने कर्मों का उत्तर देना है जो प्रत्येक के कर्मों का ही नहीं उन के सीनों के भेदों को भी प्रकाश में ला कर दिखा देगा कि किस ने अपने धन तथा बल का कुप्रयोग कर कृतघ्नता की है, और किस ने कृतज्ञता की है। और प्रत्येक को उस का प्रतिकार भी देगा। अतः इन्सान को धन के मोह में अन्धा तथा अल्लाह का कृतघ्न नहीं होना चाहिये, और उस के सत्धर्म का पालन करना चाहिये।
निश्चय उनका पालनहार उस दिन उनसे पूर्ण रूप से सूचित होगा।[1]
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1. अर्थात वह सूचित होगा कि कौन क्या है, और किस प्रतिकार का भागी है?
سورة العاديات
معلومات السورة
الكتب
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الأقوال
التفسيرات

سورة (العاديَات) من السُّوَر المكية، نزلت بعد سورة (العصر)، وقد افتُتحت بقَسَم الله عز وجل بـ(العاديَات)؛ وهي: خيلُ الغُزَاة، أو رواحلُ الحَجيج، وذكَّرتْ بالآخرة، وذمَّتْ خِصالًا تؤدي بصاحبها إلى الخسران والنِّيران؛ منها الجحود، والطَّمَعُ في هذه الدنيا ومَلذَّاتها وشهواتها.

ترتيبها المصحفي
100
نوعها
مكية
ألفاظها
40
ترتيب نزولها
14
العد المدني الأول
11
العد المدني الأخير
11
العد البصري
11
العد الكوفي
11
العد الشامي
11

* سورة (العاديَات):

سُمِّيت سورة (العاديَات) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بقَسَمِ الله عزَّ وجلَّ بـ(العاديَات)؛ قال تعالى: {وَاْلْعَٰدِيَٰتِ ضَبْحٗا} [العاديات: 1].

1. القَسَم على جحود الإنسان (١-٨).

2. مشهد البعث والحشر (٩-١١).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (9 /299).

التذكيرُ بالآخرة، وذمُّ الخصالِ التي تؤدي إلى الخسران والنِّيران.

يقول ابنُ عاشور رحمه الله عن مقاصدها: «ذمُّ خصالٍ تفضي بأصحابها إلى الخسران في الآخرة، وهي خصالٌ غالية على المشركين والمنافقين، ويراد تحذيرُ المسلمين منها، ووعظُ الناس بأن وراءهم حسابًا على أعمالهم بعد الموت؛ ليتذكرَه المؤمن، ويُهدَّد به الجاحد.

وأُكِّد ذلك كلُّه بأن افتُتح بالقَسَم، وأدمج في القَسَم التنويه بخيلِ الغزاة، أو رواحلِ الحجيج». "التحرير والتنوير" لابن عاشور (30 /498).