ترجمة سورة الإنفطار

الترجمة الطاجيكية - عارفي

ترجمة معاني سورة الإنفطار باللغة الطاجيكية من كتاب الترجمة الطاجيكية - عارفي.
من تأليف: فريق متخصص مكلف من مركز رواد الترجمة بالشراكة مع موقع دار الإسلام .

Он гоҳ ки осмон шикофта шавад
Он гоҳ ки ситорагон пароканда шаванд [ва фуру резанд]
Ва он гоҳ ки дарёҳо [ба ҳам омезанд ва] равон гарданд
Ва он гоҳ ки қабрҳо зеру рӯ шавад

[Дар он ҳангом] Ҳар кас медонад, чи чизҳоеро пешопеш фиристода ва чи чизҳоеро вопас ниҳода [ва бар ҷой гузоштааст]

Эй инсон, чи чизе туро [нисбат] ба Парвардигори каримат мағрур сохтааст?
Он [Парвардигоре], ки туро офарид ва сипас сару сомонат дод ва он гоҳ мутаодил ва муносибат кардааст
Ва ба ҳар шакле [ва сурате], ки хост, туро таркиб намуд
Ҳаргиз чунин нест [ки шумо гумон мекунед]; балки шумо рӯзи ҷазоро такзиб мекунед
Ва бе гумон, нигоҳбононе [аз фариштагон] бар шумо гуморида шудаанд
Ки нависандагоне бузургворанд
Он чиро анҷом медиҳед, медонанд [ва аъмоли неку бади шуморо сабт мекунанд]
Мусалламан, накукорон дар неъмат [-ҳои биҳишт] ҳастанд
Ва яқинан бадкорон дар [оташи] ҷаҳаннаманд
Рӯзи ҷазо ба он дароянд [ва бисӯзанд]
Ва ҳаргиз онон аз он ҷо ба дур ва [дар амон] набошанд
Ва ту чи донӣ, ки рӯзи ҷазо чист?
Боз ту чи медонӣ, ки рӯзи ҷазо чист?
Рӯзе, ки ҳеҷ кас қодир ба анҷоми коре барои дигаре нест; ва дар он рӯзи ҳукм [ва фармон] аз они Аллоҳ таоло аст
سورة الإنفطار
معلومات السورة
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الأقوال
التفسيرات

سورة (الانفطار) من السُّوَر المكية، نزلت بعد سورة (النَّازعات)، وقد افتُتحت بإثباتِ البعث وما يَتقدَّمه من أهوالٍ بوصف دقيق؛ تحذيرًا من عقاب الله، ودلالة على عظمتِه سبحانه، ثم جاءت بالتحذير من الانهماك في الدنيا، والاغترارِ بنِعَمِ الله على خَلْقِه، ومن نسيان اليوم الذي يَفصِل اللهُ فيه بين عباده، ويحاسبهم على كلِّ صغيرة وكبيرة.

ترتيبها المصحفي
82
نوعها
مكية
ألفاظها
81
ترتيب نزولها
82
العد المدني الأول
19
العد المدني الأخير
19
العد البصري
19
العد الكوفي
19
العد الشامي
19

* سورة (الانفطار):

سُمِّيت سورة (الانفطار) بذلك؛ لافتتاحها بقوله تعالى: {إِذَا اْلسَّمَآءُ اْنفَطَرَتْ} [الانفطار: 1].

* سورة (الانفطار) من السُّوَر التي وصفت أحداثَ يوم القيامة بدقة؛ لذا كان يدعو الصحابةُ إلى قراءتها:

عن عبدِ اللهِ بن عُمَرَ رضي الله عنهما، قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: «مَن سَرَّه أن ينظُرَ إلى يومِ القيامةِ كأنَّه رأيَ عينٍ، فَلْيَقرأْ: {إِذَا اْلشَّمْسُ كُوِّرَتْ}، و{إِذَا اْلسَّمَآءُ اْنفَطَرَتْ}، و{إِذَا اْلسَّمَآءُ اْنشَقَّتْ}». أخرجه الترمذي (٣٣٣٣).

1. إثبات البعث وأهواله (١-٥).

2. التحذير من الانهماك في الدنيا (٦-٨).

3. علَّةُ تكذيب الإنسان ليوم الحساب (٩-١٦).

4. ضخامة يوم الحساب (١٧-١٩).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (9 /57).

يقول البقاعي: «مقصودها: التحذيرُ من الانهماك في الأعمال السيئة؛ اغترارًا بإحسانِ الربِّ وكرمِه، ونسيانًا ليوم الدِّين، الذي يحاسِبُ فيه على النَّقِير والقِطْمِير، ولا تغني فيه نفسٌ عن نفس شيئًا.
واسمها (الانفطار) أدلُّ ما فيها على ذلك». "مصاعد النظر للإشراف على مقاصد السور" للبقاعي (3 /165).

وينظر: "التحرير والتنوير" لابن عاشور (30 /170).