ترجمة سورة القيامة

Elmir Kuliev - Russian translation

ترجمة معاني سورة القيامة باللغة الروسية من كتاب Elmir Kuliev - Russian translation.

Воскресение (Ал-Кияма)


Нет, клянусь Днем воскресения!

Клянусь душой попрекающей!

Неужели человек полагает, что Мы не соберем его костей?

Конечно! Мы способны восстановить даже кончики его пальцев (или сделать всего его пальцы одинаковыми, так что он не сможет пользоваться ими, как прежде).

Но человек желает и впредь совершать грехи.

Он спрашивает, когда же наступит День воскресения?

Когда взор будет ошеломлен,

луна затмится,

а солнце и луна сойдутся.

В тот день человек скажет: «Куда бежать?».

О нет! Не будет убежища!

В тот день возвращение будет к твоему Господу.

В тот день человеку возвестят о том, что он совершил заранее и что оставил после себя.

Но человек будет свидетельствовать против самого себя,

даже если он будет оправдываться.

Не шевели своим языком, повторяя его (Коран), чтобы поскорее запомнить.

Нам надлежит собрать его и прочесть.

Когда же Мы прочтем его, то читай его следом.

Нам надлежит разъяснять его.

Но нет! Вы любите жизнь ближнюю

и пренебрегаете Последней жизнью.

Одни лица в тот день будут сиять

и взирать на своего Господа.

Другие же лица в тот день будут омрачены.

Они убедятся о том, что их поразит беда.

Но нет! Когда душа достигнет ключицы,

будет сказано: «Кто же прочтет заклинание?».

Умирающий поймет, что наступило расставание.

Голень сойдется с голенью (тяготы мирской жизни объединятся с тяготами последней жизни или голени человека будут сложены вместе в саване),

и в тот день его пригонят к твоему Господу.

Он не уверовал и не совершал намаз.

Напротив, он счел это ложью и отвернулся,

а затем горделиво отправился к своей семье.

Горе тебе, горе!

Еще раз горе тебе, горе!

Неужели человек полагает, что он будет оставлен без присмотра?

Разве он не был каплей из семени источаемого?

Потом он превратился в сгусток крови, после чего Он создал его и придал ему соразмерный облик.

Он сотворил из него чету: мужчину и женщину.

Неужели Он не способен воскресить мертвых?
سورة القيامة
معلومات السورة
الكتب
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الأقوال
التفسيرات

سورة (القيامة) من السُّوَر المكية، نزلت بعد سورة (القارعة)، وقد تحدَّثتْ عن القيامة، وما يقترن بها من أهوالٍ، وحالِ الإنسان في هذا اليوم العصيب، مقارنةً بما كان عليه في الدنيا من غفلةٍ واستبعاد لهذا اليوم، مع الدعوةِ للاستعداد لهذا اليوم.

ترتيبها المصحفي
75
نوعها
مكية
ألفاظها
165
ترتيب نزولها
31
العد المدني الأول
39
العد المدني الأخير
39
العد البصري
39
العد الكوفي
40
العد الشامي
39

* قوله تعالى: {لَا تُحَرِّكْ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِۦٓ} [القيامة: 16]:

عن موسى بن أبي عائشةَ، قال: حدَّثَنا سعيدُ بن جُبَيرٍ، عن ابنِ عباسٍ رضي الله عنهما في قوله تعالى: {لَا تُحَرِّكْ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِۦٓ} [القيامة: 16]، قال: «كان النبيُّ صلى الله عليه وسلم يُعالِجُ مِن التنزيلِ شِدَّةً، وكان يُحرِّكُ شَفَتَيهِ - فقال لي ابنُ عباسٍ: فأنا أُحرِّكُهما لك كما كان رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم يُحرِّكُهما، فقال سعيدٌ: أنا أُحرِّكُهما كما كان ابنُ عباسٍ يُحرِّكُهما، فحرَّكَ شَفَتَيهِ -؛ فأنزَلَ اللهُ عز وجل: {لَا تُحَرِّكْ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِۦٓ ١٦ إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُۥ وَقُرْءَانَهُۥ} [القيامة: 16-17]، قال: جَمْعُه في صدرِك، ثم تَقرَؤُه، {فَإِذَا قَرَأْنَٰهُ فَاْتَّبِعْ قُرْءَانَهُۥ} [القيامة: 18]، قال: فاستمِعْ له وأنصِتْ، ثم إنَّ علينا أن تَقرأَه، قال: فكان رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم إذا أتاه جِبْريلُ عليه السلام استمَعَ، فإذا انطلَقَ جِبْريلُ قرَأَه النبيُّ صلى الله عليه وسلم كما أقرأَه». أخرجه البخاري (٧٥٢٤).

* سورة (القيامة):

سُمِّيت سورة (القيامة) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بقَسَمِ الله بهذا اليومِ العظيم.

1. أهوال يوم القيامة (١-١٥).

2. طريق النجاة (١٦-١٩).

3. عَوْدٌ لمَشاهدِ القيامة (٢٠-٢٥).

4. ساعة الموت (٢٦-٤٠).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (8 /487).

يقول ابن عاشور رحمه الله: «اشتملت على إثباتِ البعث، والتذكيرِ بيوم القيامة، وذِكْرِ أشراطه، وإثبات الجزاء على الأعمال التي عملها الناسُ في الدنيا، واختلاف أحوال أهل السعادة وأهل الشقاء، وتكريم أهل السعادة، والتذكير بالموت، وأنه أول مراحلِ الآخرة، والزَّجر عن إيثار منافعِ الحياة العاجلة على ما أُعِدَّ لأهل الخير من نعيم الآخرة». "التحرير والتنوير" لابن عاشور (29 /337).