ترجمة سورة القيامة

الترجمة الطاجيكية - عارفي

ترجمة معاني سورة القيامة باللغة الطاجيكية من كتاب الترجمة الطاجيكية - عارفي.
من تأليف: فريق متخصص مكلف من مركز رواد الترجمة بالشراكة مع موقع دار الإسلام .

Ба рӯзи қиёмат савганд мехӯрам
Ва ба нафси маломатгар савганд мехӯрам
Оё инсон мепиндорад, ки [пас аз марг] ҳаргиз устухонҳояшро ҷамъ нахоҳем кард?
Оре, Мо қодирем, ки [ҳатто хутути сари] ангуштонашро яксону мураттаб кунем.
Балки инсон мехоҳад, ки [озодона ва бидуни тарс аз охират] дар гуноҳу бадкорӣ мудовимат кунад
[Аз ин рӯ] Мепурсад: «Рӯзи қиёмат кай хоҳад буд?»
Пас, ҳангоме ки чашм хира шавад
Ва моҳ тира [ва бе нур] гардад
Ва хуршеду моҳ як ҷо ҷамъ шаванд
Он рӯз инсон мегӯяд: «Роҳи гурез куҷост?»
Ҳаргиз! Ҳеҷ гурезгоҳе нест
Он рӯз қароргоҳ [-и ниҳоне] ба сӯйи Парвардигори туст
Ва дар он рӯз инсонро аз тамоми корҳое, ки аз пеш ё пас фиристода, огоҳ мекунанд
Балки инсон ба хубӣ бар хештан огоҳ аст
Агарчи [дар дифоъ аз худ] узрҳояшро дар миён оварад
[Эй паёмбар, ҳангоми нузули Қуръон] забонатро барои [такрор ва хондани] он шитобзада ҳаракат мадеҳ
Мусалламан, ҷамъоварӣ ва хондани он бар [уҳдаи] Мост
Пас, ҳар гоҳ [тавассути Ҷабраил] онро [бар ту] хондем, аз хондани ӯ пайравӣ кун
Сипас баён карданаш бар [уҳдаи] Мост
Ҳаргиз чунин нест [ки шумо мушрикон мепиндоред]! Балки дунё [-и зудгузар]-ро дӯст медоред
Ва охиратро раҳо мекунед
Он рӯз чеҳраҳое тоза [ва шодоб] аст
Ба сӯйи Парвардигораш менигарад
Ва дар он рӯз чеҳраҳое абус [ва дарҳамкашида] аст
Яқин дорад, ки осебе камаршикан ба ӯ мерасад
Оре, чун [ҷон] ба гулугоҳаш бирасад
Ва гуфта шавад: «Чи касест, ки афсун бихонад? [Ва ӯро наҷот диҳад]
Ва яқин кунад, ки замони ҷудоӣ [аз дунё] аст.
Ва [кор боло гирад ва] соқҳо[-и пояш аз сахтии ҷон додан] ба ҳам печад.
Дар он рӯз масири ҳама ба сӯйи Парвардигорат хоҳад буд
Пас, [мункири меод] на тасдиқ карда ва на намоз гузоридааст
Балки [Қуръонро] такзиб кард ва [аз имон] рӯ гардонд
Сипас хиромон ба сӯйи хонаводааш бозгашт
Вой бар ту! Пас, вой бар ту!
Боз ҳам вой бар ту! Пас, вой бар ту!
Оё инсон гумон мекунад, ки [бе ҳадаф ва бидуни ҳисоб ва ҷазо] ба худ раҳо мешавад?
Оё [ӯ] нутфае аз манӣ набуд, ки [дар раҳим] рехта мешавад?
Он гоҳ ба сурати хуни баста даромад ва [Аллоҳ таоло ӯро] офарид ва дурусту устувор сохт
Сипас аз ӯ ду завҷи нару мода падид овард
Оё [чунин Офаридгоре] қодир нест, ки мурдагонро [дубора] зинда кунад?
سورة القيامة
معلومات السورة
الكتب
الفتاوى
الأقوال
التفسيرات

سورة (القيامة) من السُّوَر المكية، نزلت بعد سورة (القارعة)، وقد تحدَّثتْ عن القيامة، وما يقترن بها من أهوالٍ، وحالِ الإنسان في هذا اليوم العصيب، مقارنةً بما كان عليه في الدنيا من غفلةٍ واستبعاد لهذا اليوم، مع الدعوةِ للاستعداد لهذا اليوم.

ترتيبها المصحفي
75
نوعها
مكية
ألفاظها
165
ترتيب نزولها
31
العد المدني الأول
39
العد المدني الأخير
39
العد البصري
39
العد الكوفي
40
العد الشامي
39

* قوله تعالى: {لَا تُحَرِّكْ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِۦٓ} [القيامة: 16]:

عن موسى بن أبي عائشةَ، قال: حدَّثَنا سعيدُ بن جُبَيرٍ، عن ابنِ عباسٍ رضي الله عنهما في قوله تعالى: {لَا تُحَرِّكْ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِۦٓ} [القيامة: 16]، قال: «كان النبيُّ صلى الله عليه وسلم يُعالِجُ مِن التنزيلِ شِدَّةً، وكان يُحرِّكُ شَفَتَيهِ - فقال لي ابنُ عباسٍ: فأنا أُحرِّكُهما لك كما كان رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم يُحرِّكُهما، فقال سعيدٌ: أنا أُحرِّكُهما كما كان ابنُ عباسٍ يُحرِّكُهما، فحرَّكَ شَفَتَيهِ -؛ فأنزَلَ اللهُ عز وجل: {لَا تُحَرِّكْ بِهِۦ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِۦٓ ١٦ إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُۥ وَقُرْءَانَهُۥ} [القيامة: 16-17]، قال: جَمْعُه في صدرِك، ثم تَقرَؤُه، {فَإِذَا قَرَأْنَٰهُ فَاْتَّبِعْ قُرْءَانَهُۥ} [القيامة: 18]، قال: فاستمِعْ له وأنصِتْ، ثم إنَّ علينا أن تَقرأَه، قال: فكان رسولُ اللهِ صلى الله عليه وسلم إذا أتاه جِبْريلُ عليه السلام استمَعَ، فإذا انطلَقَ جِبْريلُ قرَأَه النبيُّ صلى الله عليه وسلم كما أقرأَه». أخرجه البخاري (٧٥٢٤).

* سورة (القيامة):

سُمِّيت سورة (القيامة) بهذا الاسم؛ لافتتاحها بقَسَمِ الله بهذا اليومِ العظيم.

1. أهوال يوم القيامة (١-١٥).

2. طريق النجاة (١٦-١٩).

3. عَوْدٌ لمَشاهدِ القيامة (٢٠-٢٥).

4. ساعة الموت (٢٦-٤٠).

ينظر: "التفسير الموضوعي لسور القرآن الكريم" لمجموعة من العلماء (8 /487).

يقول ابن عاشور رحمه الله: «اشتملت على إثباتِ البعث، والتذكيرِ بيوم القيامة، وذِكْرِ أشراطه، وإثبات الجزاء على الأعمال التي عملها الناسُ في الدنيا، واختلاف أحوال أهل السعادة وأهل الشقاء، وتكريم أهل السعادة، والتذكير بالموت، وأنه أول مراحلِ الآخرة، والزَّجر عن إيثار منافعِ الحياة العاجلة على ما أُعِدَّ لأهل الخير من نعيم الآخرة». "التحرير والتنوير" لابن عاشور (29 /337).